सत्ता के लिए कांग्रेस फिर बैलगाड़ी युग में ले जाने की तैयारी में
आलोक मेहता
हाल के चुनावों में भारी पराजय से परेशान कांग्रेस के नेताओं को पुराने चुनाव चिन्ह बैलों की जोड़ी याद आ रही है | वैसे बैलों की गाड़ी से देश में फिर सत्ता में आने की तैयारी हो रही है |कांग्रेस ने ऐलान किया है कि बैलट पेपर से चुनाव कराने की मांग पर देशव्यापी अभियान चलाएगी। संविधान दिवस के मौके पर पार्टी के संविधान रक्षक सम्मेलन में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर सवाल उठाते हुए बैलेट पेपर से चुनाव की मांग उन्होंने कहा कि जितनी भी शक्ति लगाकर एससी-एसटी, ओबीसी, गरीब तबके के लोग, छोटे समुदाय के लोग जो अपना वोट दे रहे हैं वो वोट फिजूल जा रहा है। हमने जैसे भारत जोड़ो यात्रा निकाली थी, वैसे ही बैलेट पेपर से चुनाव के लिए एक देशव्यापी अभियान चलाएंगे। खरगे ने कहा, अहमदाबाद में कई गोदाम हैं। ईवीएम को वहां रख देना चाहिए। जब बैलेट पेपर से चुनाव होगा तब भाजपा को अपनी हालत का पता चलेगा। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में भी वोटिंग मशीन के खिलाफ अभियान का निर्णय हुआ | खरगे ने कहा कि वे अन्य पार्टियों को भी इस मुहिम में शामिल करेंगे।पुराने कांग्रेसी शरद पवार ने भी अपनी पार्टी के हारे हुए उम्मीदवारों को वोटिंग मशीन के जरिए गड़बड़ी के सबूत इकट्ठा करने का निर्देश दे चुके हैं। इसके बाद नाना पटोले ने भी ऐलान कर दिया कि कांग्रेस ईवीएम के खिलाफ पूरे महाराष्ट्र में सिग्नेचर कैंपेन चलाएगी। पटोले ने कहा कि महाराष्ट्र में लोगों का वोट चुराया गया इसलिए कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में ईवीएम की जगह बैलेट से वोट कराने की लड़ाई भी लडेगी।
इससे तीन दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम की बजाय बैलट पेपर से चुनाव कराने की जनहित याचिका खारिज कर दी। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पीबी वराले की बेंच ने याचिकाकर्ता से कहा- ईवीएम से पार्टियों को दिक्कत नहीं है, आपको क्यों है। ऐसे आइडिया कहां से लाते हो ?इस पर याचिकाकर्ता केए पॉल ने कहा- चंद्रबाबू नायडू और वाईएस जगन मोहन रेड्डी जैसे नेताओं ने भी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से छेड़छाड़ पर सवाल उठाए हैं।बेंच ने कहा, ‘चंद्रबाबू नायडू या जगन मोहन रेड्डी जब चुनाव हारते हैं तो कहते हैं कि वोटिंग मशीन से छेड़छाड़ होती है और जब वे जीतते हैं तो वे कुछ नहीं कहते हैं।हम इसे कैसे देख सकते हैं। हम इसे खारिज कर रहे हैं। ये वो जगह नहीं है जहां आप इस सब पर बहस करें। ‘ इससे पहले भी उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट ने वोटिंग मशीन को लेकर आई याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान अनेक टेक्नोलॉजी विशेषज्ञों तथा सभी पक्षों को सुनने के बाद वोटिंग मशीन के उपयोग को श्रेष्ठ माना था |
इसलिए अब कांग्रेस और उनके समर्थक दलों , संगठनों , स्वयंसेवी संगठनों अथवा कुछ पूर्वाग्रही मीडिया चुनाव विश्लेषकों द्वारा ईवीएम और चुनाव आयोग पर पक्षपात की रुदाली शुरु करने पर यह सवाल उठने लगता है कि कांग्रेस के नेता क्या पहले की तरह अपने वफादार या समर्थक चुनाव आयुक्त होने पर ही चुनाव नतीजों पर भरोसा कर सकते हैं ? इसमें कोई शक नहीं कि टी एन सेशन , नवीन चावला , एम एस गिल , जे एम लिंगदोह , एस वाई कुरैशी बहुत काबिल और ईमानदार अधिकारी एवं कुशल चुनाव आयुक्त रहे थे | हाँ यह भी तथ्य है कि टी एन सेशन सरकारी पद से हटने के बाद राष्ट्रपति पद और फिर कांग्रेस के उम्मीदवार के रुप में लोक सभा का चुनाव लड़े , लेकिन दोनों चुनावों में पराजित हुए | नवीन चावला प्रशासनिक सेवा के प्रारम्भिक दौर में एस डी एम के रुप में संजय मेनका गाँधी के विवाह की क़ानूनी प्रक्रिया में शामिल होने के कारण इंदिरा गाँधी , संजय , फिर राजीव सोनिया गाँधी के साथ पारिवारिक संबंधों के लिए चर्चित रहे | एम एस गिल चुनाव आयुक्त रहने के बाद कांग्रेस पार्टी से राज्य सभा के सदस्य और मनमोहन सिंह सरकार के ख़ास मंत्री रहे | लिंगदोह पर भी कांग्रेस के साथ संबंधों के आरोप लगे | एस वाई कुरेशी कांग्रेस पार्टी से नहीं जुड़े लेकिन कांग्रेस राज में चुनाव आयुक्त रहे और वैचारिक दृष्टि से अलप संख्यकों के मुद्दों पर उनके विचार और लेखन भाजपा से भिन्न कहे जा सकते हैं |
इस पृस्ठभूमि के बावजूद सबसे दिलचस्प बात यह है कि पहले से अब महाराष्ट्र चुनाव के बाद भी नवीन चावला , एस वाई कुरेशी और ओ पी रावत जैसे पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त सार्वजनिक रुप से बता रहे हैं कि विश्व में भारत की वर्तमान ईवीएम मतदान व्वयवस्था बिल्कुल सर्वश्रेष्ठ है | इसमें किसी तरह की गड़बड़ी नहीं हो सकती है | एक अरब चालीस करोड़ के देश में साठ सत्तर प्रतिशत मतदान गौरवशाली है | महानगरों से सुदूर ग्रामीण और दुर्गम इलाकों में लाखों मतदान केंद्र और सत्तर लाख से अधिक कर्मचारी लगते हैं | यही नहीं हर मतदान केंद्र पर पार्टियों और उम्मीदवारों के प्रतिनधियों के सामने और नियमानुसार निर्धारित फॉर्म पर निष्पक्षता के हस्ताक्षर के साथ मशीनें सील होती हैं | फिर यह भ्रम भी गलत है कि पांच बजे की समय सीमा होने पर भी मतदान का आंकड़ा क्यों बढ़ जाता है ? असली कारण यह है कि मतदान केंद्र में पांच बजे तक प्रवेश कर चुके पंक्तिबद्ध अंतिम मतदाता देर तक वोट डालते हैं | वहीं त्रिपुरा या अन्य आदिवासी क्षेत्रों में समुचित संचार व्यवस्था नेटवर्क नहीं होने से कुछ केन्दों के मतदान के आंकड़े देर से आते हैं | सभी चुनाव आयुक्त और विशेषज्ञ केवल प्रमाणिकता के लिए कुछ प्रतिशत वीवीपैट के प्रबंध को उचित मानते हैं | उनका तर्क है कि सौ प्रतिशत वीवीपैट होने पर तो फिर पर्चे से मतदान मतगणना जैसी स्थिति होगी और परिणाम कई हफ़्तों में आएँगे | चुनाव में धन के प्रलोभन के मुद्दे पर अदालत ने भी कहा कि वोटिंग मशीन के बजाय कागजी मतपत्र और पेटी होने पर भी प्रलोभन दिया जाता था या दिया जा सकता है |
महाराष्ट्र के चुनाव को लेकर कांग्रेस की दलील ये है कि लोकसभा चुनाव में उनके गठबंधन ने 48 में से 30 सीटें जीतीं थीं। पांच महीने बाद विधानसभा में 288 में से सिर्फ 48 सीटें कैसे आ सकती हैं? कांग्रेस के नेता भूल गए कि दिल्ली में जून 2019 में लोकसभा की 7 की 7 सीटें बीजेपी ने जीती थी। 8 महीने बाद विधानसभा चुनाव हुए। बीजेपी को 70 में से सिर्फ 8 सीटें मिलीं। इससे थोड़ा पहले चले जाएं। दिल्ली में 2014 में बीजेपी ने लोकसभा की सातों सीटें जबरदस्त मार्जिन से जीती थीं लेकिन कुछ महीने बाद जब चुनाव हुए तो केजरीवाल ने ऐतिहासिक जीत हासिल की, 70 में से 67 सीटें हासिल कीं। तो मतदाता कुछ महीनों में अपना मन कैसे बदल लेता है?
इसका जवाब यह है कि लोकसभा चुनाव में जब बीजेपी 240 पर अटकी तो कांग्रेस के लिए वोटिंग मशीन अति उत्तम थी, ना बैटरी पर सवाल उठाया, ना वी वी पेट पर मिलवाया। अगर उस समय बीजेपी 300 सीटें पार कर जाती तो कांग्रेस जरूर कहती कि वोटिंग मशीन में गड़बड़ की गई। राहुल गांधी अबतक बैलेट यात्रा निकाल चुके होते। हरियाणा में हार के बाद कांग्रेस ने वोटिंग मशीन पर सवाल उठाए। मशीनों की 99 परसेंट बैटरी का जिक्र किया। चुनाव आयोग ने 1500 पेज का जवाब भेजा। जब वीवीपैट के मिलान पर सवाल पूछा गया तो चुनाव आयोग ने बताया कि 4 करोड़ वोटों का वीवीपैट से मिलान किया गया और एक भी गलती नहीं निकली। एक और दिलचस्प बात ये है कि जब पहली बार की शिकायतें आईं तो चुनाव आयोग ने एक कार्यक्रम आयोजित किया। कहा, जिसको भी शिकायत है आए वो वोट हैक करके दिखाए लेकिन कोई नहीं आया।
दूसरी तरफ कांग्रेस के ही नेता जी. परमेश्वर स्वीकारते हैं कि महाराष्ट्र में कांग्रेस और महा विकास अघाड़ी (एमवीए) ने बहुत खराब प्रदर्शन किया है। यह हर कोई जानता है। हमने और महाराष्ट्र के कुछ नेताओं ने कल एक साथ बैठकर विश्लेषण किया।उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी गठबंधन सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) जैसी योजना बनाई गई थी, वैसा चुनावी अभियान चलाने में विफल रहीं। परमेश्वर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के पर्यवेक्षक थे। उन्होंने कहा, लडकी बहिन योजना उनके लिए काफी प्रभावशाली रही। पिछले छह महीनों तक उन्होंने इसे प्रचारित किया,ये सब उनके हाथ में था। आखिरकार हमने टिकटों का एलान कर दिया और पार्टी में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई। शरद पवार और उद्धव ठाकरे के गुट आपस में अच्छी तरह से गठबंधन नहीं बना पाए, उन्होंने जैसी योजना बनाई गई थी, वैसा प्रचार नहीं किया। खासकर विदर्भ में हमें कम सीटें मिलीं।
उन्होंने आगे कहा, हमें विदर्भ से कम से कम 50 सीटें मिलने की उम्मीद थी। लेकिन चुनाव परिणाम इसके विपरीत आए। परमेश्वर ने कहा, महाराष्ट्र में कांग्रेस और महा विकास अघाड़ी (एमवीए) ने बहुत खराब प्रदर्शन किया है। यह हर कोई जानता है। हमने और महाराष्ट्र के कुछ नेताओं ने कल एक साथ बैठकर विश्लेषण किया। पूर्व मुख्यमंत्री (राजस्थान) अशोक गहलोत और भूपेश बघेल (छत्तीसगढ़) और हम एक साथ बैठे। महा विकास अघाडी (एमवीए) के घटक दल के रूप में कांग्रेस ने 101 सीटों पर चुनाव लड़ा था। लेकिन उसे सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा और उसे सिर्फ 16 सीटों पर जीत मिली। यह कांग्रेस का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है।
ईवीएम की शुरुआत से पहले, पेपर बैलेट का इस्तेमाल किया जाता था। हालाँकि, चुनावी परिदृश्य में कई तरह की गड़बड़ियाँ थीं, जैसे वोट में हेराफेरी, जाली वोटिंग, बाहुबल के ज़रिए बूथ कैप्चरिंग और पेपर बैलेट को संभालने की समय लेने वाली प्रक्रिया। हज़ारों अवैध वोट भी थे। इसके अलावा, चुनावों के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले कागज़ की मात्रा ने पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव और संसाधनों की बर्बादी के बारे में चिंताएँ पैदा कीं। इन चुनौतियों के जवाब में, भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) ने नागरिकों के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए अधिक कुशल और सुरक्षित तरीका खोजा। ईवीएम के विकास का काम बीईएल (भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड) और ईसीआईएल (इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड) को सौंपा गया था। ईवीएम का पहला प्रयोग 1982 में केरल के उत्तरी पारूर विधानसभा क्षेत्र के लिए उपचुनाव के दौरान हुआ था, जिसके बाद दिल्ली, मध्य प्रदेश और राजस्थान के चुनिंदा निर्वाचन क्षेत्रों में इसका सफल परीक्षण किया गया। इन प्रयोगों के सकारात्मक परिणामों ने ई.वी.एम. को व्यापक रूप से अपनाने का मार्ग प्रशस्त किया। 1998 से, सभी राज्य चुनाव ई.वी.एम. द्वारा आयोजित किए गए। 2004 में लोकसभा चुनावों के लिए विशेष रूप से ई.वी.एम. का उपयोग करने का निर्णायक निर्णय एक परिवर्तनकारी बदलाव था, जिसने पारंपरिक पेपर बैलेट प्रणाली को अलविदा कह दिया।
ईवीएम के लिए लागू किए गए सुरक्षा उपाय एक व्यापक चार-स्तरीय ढांचे पर काम करते हैं। सुरक्षा के इन स्तरों को पहचानना और समझना महत्वपूर्ण है।
तकनीकी सुरक्षा उपाय: ईवीएम का निर्माण विशेष रूप से दो प्रमुख केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, बीईएल और ईसीआईएल द्वारा किया जाता है, जो उच्च सुरक्षा वाले रक्षा उपकरण बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं। उपयोग किए जाने वाले सॉफ़्टवेयर को एक सावधानीपूर्वक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जिसे एक बार प्रोग्राम करने योग्य/मास्क किए गए चिप पर जला दिया जाता है, जिससे इसे बदलने या छेड़छाड़ करने की अनुमति नहीं मिलती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि ये मशीनें पूरी तरह से गैर-नेटवर्क रहती हैं, जिससे हैकिंग को रोकने के लिए अन्य मशीनों या प्रणालियों के साथ किसी भी वायर्ड या वायरलेस कनेक्शन को समाप्त कर दिया जाता है।
ईवीएम के परिवहन के दौरान सुरक्षित भंडारण कक्ष से लेकर मतदान केंद्रों तक हर चरण में पूर्णतया सुरक्षात्मक उपाय किए जाते हैं। इसमें तीन स्तर की जांच और मतदान के दिन एक सहित तीन मॉक पोल शामिल हैं, जो सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की सतर्क निगरानी में किए जाते हैं। पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए पूरी प्रक्रिया का वीडियो रिकॉर्डिंग के माध्यम से दस्तावेजीकरण किया जाता है। जिन कमरों में ईवीएम संग्रहीत की जाती हैं, उन्हें पूरे साल अर्धसैनिक बलों द्वारा सील और संरक्षित किया जाता है। राजनीतिक दलों को आमंत्रित किए बिना कोई भी कमरा नहीं खोला जा सकता है।
तकनीकी सलाहकार समिति द्वारा स्वतंत्र निगरानी: पांच विभिन्न भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के पांच प्रोफेसरों वाली एक स्वायत्त तकनीकी सलाहकार समिति, संपूर्ण ईवीएम प्रक्रिया की निगरानी की भूमिका निभाती है।ईसीआई-ईवीएम की कार्यप्रणाली को सर्वोच्च न्यायालय सहित कई न्यायालयों में चुनौती दी गई है, जो तकनीशियनों और कंप्यूटर विशेषज्ञों की जांच के बाद ईवीएम के साथ छेड़छाड़ न किए जाने के संबंध में संतुष्ट थे। सर्वोच्च न्यायिक जांच सर्वोच्च न्यायालय (सुब्रमण्यम स्वामी बनाम ईसीआई, 2013) द्वारा की गई थी। यह तर्क दिया गया था कि ईवीएम को पूरी तरह से छेड़छाड़-रहित बनाने और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए, वीवीपीएटी (वोटर वेरिफ़िएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) आवश्यक है। चुनाव आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया कि, अक्टूबर 2010 में एक सर्वदलीय बैठक के बाद ईवीएम को पेश करने का सुझाव दिया गया था, यह पहले से ही इस अवधारणा पर काम कर रहा था, और इसकी तकनीकी सलाहकार समिति ने 26 मई, 2011 को इसके लिए डिज़ाइन को पहले ही मंजूरी दे दी थी, और पांच जलवायु क्षेत्रों में एक फील्ड टेस्ट आयोजित किया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने ईसीआई की “व्यावहारिकता और उचित दृष्टिकोण” की सराहना की और टिप्पणी की: “… हम इस प्रणाली को शुरू करने में ईसीआई द्वारा किए गए प्रयासों और अच्छे इशारे की सराहना करते हैं”।इस निष्कर्ष पर पहुँचते हुए कि पेपर ट्रेल “स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की एक अपरिहार्य आवश्यकता है”, न्यायालय ने भारत सरकार को वीवीपीएटी मशीनों की खरीद के लिए अपेक्षित धनराशि उपलब्ध कराने का “निर्देश” दिया। न्यायालय ने ईसीआई को चरणबद्ध तरीके से मशीनें शुरू करने की अनुमति दी, जो किया गया। तब से, पूरे देश में ईवीएम का इस्तेमाल किया जा रहा है |सुरक्षित कागज़ रिकॉर्ड रखना महत्वपूर्ण है। “मतदाता सत्यापन” को प्रिंटर पर एक छोटी स्क्रीन के रूप में पेश किया गया था ताकि मतदाता अपनी आँखों से देख सके कि वोट वास्तव में उसके द्वारा चुने गए उम्मीदवार को जा रहा है। “पेपर ऑडिट ट्रेल” वह पर्ची है जिसे प्रिंट करके सीलबंद बॉक्स में डाला जाता है और जिसे जरूरत पड़ने पर गिना जा सकता है। वर्तमान में, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में पांच मशीनों से पर्चियों की गिनती की जाती है | इसके बाद अनावश्यक विवाद से जनता को भ्रमित करना एक तरह से अपराध ही कहा जा सकता है |