कांग्रेस; उजड़े दयार में एकजुटता की बयार, इस बार विन्ध्य में कांग्रेस की अप्रत्याशित एकजुटता के पीछे कौन..?

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REWA/ पिछले विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के लिए उजड़ा दयार बन चुके विन्ध्य में नगरीय निकाय के चुनाव में यह अप्रत्याशित एकता कैसे आई..? इस रहस्य से सभी हतप्रभ हैं। लेकिन कम लोग ही जानते हैं इसके पीछे जो एक चेहरा है उसका नाम है प्रतापभानु शर्मा..।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने इसी वर्ष फरवरी में उन्हें रीवा का संगठन प्रभारी बनाया। उनकी परिणामजनक कार्यशैली से प्रभावित कमलनाथ ने उन्हें जल्दी ही रीवा संभाग के संगठन की कमान सौंप दी।

ऐसी एकजुटता तीन दशक बाद 

नगरनिगम के चुनाव में अजय मिश्र बाबा महापौर पद के प्रत्याशी हैं। मेरी जानकारी में तीस वर्षों बाद कांग्रेस किसी चुनाव को लेकर एकजुट है। न कहीं श्रीनिवास गुट न ही अर्जुन सिंह गुट। अजय सिंह राहुल का भी कोई हस्तक्षेप नहीं। 1994 जब से नगरनिगम के चुनाव होने शुरू हुए पहलीबार टिकट पट्ठेबाजी में नहीं गई। जबकि पिछले चुनाव में अरुण यादव अध्यक्ष रहते अपने एक समर्थक की पत्नी को टिकट दिया तब पता चला कि इस नाम की भी कोई महिला कांग्रेस में है। चुनाव में कांग्रेस 10 हजार का आँकड़ा पार नहीं कर पाई थी। इससे पहले तक श्रीनिवास तिवारी अमहिया में बैठेठाले अपने पट्ठों को प्रत्याशी तय करते आए हैं। अजय मिश्र बाबा प्रतापभानु शर्मा की सभी गुटों से की गई रायशुमारी से निकले उम्मीदवार है शायद इसीलिए न तो कहीं विद्रोह फूटा न बगावत हुई। यहाँ तक कि हर चुनाव में कांग्रेस का खेल बिगाड़ने वाले मुस्लिम वर्ग से भी कोई प्रभाव वाला नेता नहीं खड़ा हुआ।

क्यों डूबी थी कांग्रेस..

कभी कांग्रेस का हाल यह था कि भोपाल और दिल्ली से कोई भी नेता यहाँ आने से मना कर देता था। विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गाँधी के खास पर्यवेक्षक दीपक बाबरिया को राजनिवास में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने ही पीट दिया था। इसकी धमक दिल्ली तक गई। मुकुल वासनिक के भी कुर्ते फाड़ डाले गए थे। रीवा के लिए तय किए गए प्रभारी चौधरी राकेश चतुर्वेदी को अजय सिंह राहुल गुट ने घुसने नहीं दिया। उनके बदले भेजे गए राजा पटेरिया आते ही कमलनाथ के कट्टर चेले कांग्रेस शहर अध्यक्ष की जेब में घुसकर अपना माहौल बनाने लगे। इन तीन दशकों में पार्टी के जो दो ठिकानों (अर्जुन सिंह-श्रीनिवास) में हुआ करते थे वे चार ठिकानों में फैल गए। एक तरह से कांग्रेस अपनी अराजकता की वजह से भाजपा को वाकओवर सा देती रही।

ऐसा क्या किया प्रतापभानु ने..

आखिर ऐसा क्या किया प्रतापभानु शर्मा ने कि सबकुछ उम्मीद के उलट एकजुट हो गए। शर्मा बताते हैं कि कमलनाथ जी ने एक दिन अचानक ही निर्देश दिया कि तुम्हें रीवा सँभालना है, जरूरत पड़े तो वहीं कैम्प करिए आपको हर तरह के निर्णय लेने के लिए फ्रीहैंड है। बस मैं फरवरी में यहाँ गई। वे बताते हैं- रीवा के कार्यकर्ता जरूरत से ज्यादा चेतना संपन्न और स्वाभिमानी हैं। उनकी कोई सुनता ही नहीं था। मैंने सबको एक साथ बैठाया सबकी बात सुनी और कहा कि अब यहाँ सिर्फ एक गुट चलेगा कांग्रेस का गुट और उसके नेता हैं हमारे प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ उन्हीं के नेतृत्व में कांग्रेस के खोए हुए गौरव को वापस लाना है। कार्यकर्ताओं को बात जमी। संगठन की दृष्टि से अब हम बूथ स्तर तक भाजपा से उन्नीस नहीं बीस ही हैं। रीवा में कांग्रेस कभी कमजोर नहीं रही। कार्यकर्ता एक दूसरे के खिलाफ ही अपनी ऊर्जा खपाते थे इससे हम कमजोर दिखते थे। अब न सबकुछ रीवा में ठीक है बल्कि सतना-सीधी-सिंगरौली में भी हमारा ठोस आधार बन चुका है। नगरीय निकाय तो आरंभ है। हमारे यही कार्यकर्ता मिलकर विधानसभा की भी बाजी पलटेंगे।

कौन हैं प्रतापभानु शर्मा..

राजीव गांधी के चरमोत्कर्ष काल में प्रतापभानु शर्मा की वो हैसियत थी कि मध्यप्रदेश में प्रधानमंत्री का कार्यक्रम पहले शर्मा जी के पास आता था बाद में सरकार के पास। प्रतापभानु ने 1980 में विदिशा से जनसंघ/भाजपा का तिलस्म तोड़ा और सांसद चुने गए। 1984 में भी अपनी जीत को दोहराया। इसके बाद यह सीट संघ के एजेंडे में चढ़ गई और अटलबिहारी वाजपेयी जैसे दिग्गज यहाँ से उतारे जाने लगे। विदिशा जनसंघ और कालांतर में भाजपा की पारंपरिक सीट रही। रामनाथ गोयनका जैसे मीडिया टायकून यहाँ से लोकसभा जीत कर गए तो शिवराज सिंह चौहान के बाद यह सुषमा स्वराज का चुनावी ठिकाना बना। स्वाभिमानी शर्मा जी ने स्वयं को संगठन के कार्यों में केन्द्रित कर लिया। युवा कांग्रेसियों को यह भी जानना चाहिए कि संजय गांधी के नेतृत्व में जब युवा कांग्रेस परवान पर चढ़ी थी तब मध्यप्रदेश में उसकी कमान प्रतापभानु शर्मा के हाथों में थी।
नगरनिकायों का यह चुनाव उनकी संगठन क्षमता के लिए एक चुनौती के मानिंद है। भाजपा जीते या कांग्रेस पर फिलहाल शर्मा जी किसी योद्धा की तरह किला तो लड़ा ही रहे हैं।