कांग्रेस द्वारा मंदिर मस्जिद की राजनीति पर वर्चस्व का प्रयास 

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कांग्रेस द्वारा मंदिर मस्जिद की राजनीति पर वर्चस्व का प्रयास 

अयोध्या में श्रीराम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह पर कांग्रेस के विरोध का असली कारण यह है कि वह मंदिर मस्जिद की राजनीति पर अपना वर्चस्व चाहती रही है | वह प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा पर मंदिर के नाम पर राजनीति के आरोप लगा रही है , जबकि कांग्रेस के नेता ही 1986 से अयोध्या को लेकर विभिन्न मंचों , संगठनों , सरकारों का उपयोग करती रही हैं | हम जैसे पत्रकार ही नहीं दस्तावेजों से इस बात की पुष्टि हो सकती है कि राजीव गाँधी , वी पी सिंह , चंद्रशेखर , नरसिंह राव सहित प्रधान मंत्रियों और अन्य कांग्रेसी नेताओं ने मंदिर मस्जिद के मुद्दों को उलझाने के लिए हर संभव तरीके अपनाए | हिन्दू मुस्लिम संगठनों के नेताओं से सौदेबाजी , धर्म गुरुओं , प्रभावशाली अधिकारियों , नामी पत्रकारों , सत्ता से जुड़े विवादस्पद तांत्रिक चंद्रास्वामी तक का उपयोग किया और चुनावों में इसका लाभ उठाने में कोई परहेज नहीं किया |सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस समय कांग्रेस जिस इंडिया गठबंधन के नेतृत्व जैसी भूमिका निभाने की कोशिश कर रही है , उस गठबंधन के एक सहयोगी उद्धव ठाकरे और संजय राउत की शिव सेना को 1992 से 2020 तक अयोध्या में विवादास्पद ढांचा ( बाबरी मस्जिद ) गिराने का उत्तरदायी मानती रही | हाँ संजय राउत भी इसे गौरव के साथ सी बी आई की चार्ज शीट का दावा करते रहे हैं | दूसरे सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार पर 1993 के मुंबई दंगों के लिए जिम्मेदार माना जाता रहा है |

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राहुल गांधी और उनके करीबी साथी सलाहकार संभवतः पुराने कांग्रेसी नेताओं से राय  नहीं  लेते अथवा उनकी बात सुनना समझना नहीं चाहते | इसी कारण उन्होंने कांग्रेस की ओर से  राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के निमंत्रण को ठुकरा दिया |

इसीलिए पार्टी के कई प्रादेशिक नेताओं ने निर्णय पर असहमति सार्वजनिक रूप से व्यक्त कर दी | पुराने नेताओं को ध्यान है कि अरुण नेहरु की सलाह पर राजीव गाँधी ने 1986 में पहले मंदिर के दरवाजे खुलवाए , ताकि हिन्दू मतदाताओं का समर्थन मिले | फिर    नरसिंह राव  पार्टी अध्यक्ष और प्रधान मंत्री रहते हुए विवादास्पद ढांचे को गिरने देकर मंदिर की राजनीति अपने हाथ में लेने की कोशिश करते रहे | किस तरह उनके सहयोगी बिहार झारखंड के नेता  सुबोधकांत सहाय और चंद्रास्वामी , नरेश चंद्र ( अफसर सलाहकार ) 1993 में मंदिर मस्जिद का निर्माण करने के लिए राजनैतिक प्रशासनिक प्रयास कर रहे थे | सही मायने में प्रधान मंत्री कार्यालय से ही जोड़ तोड़ चल रही थी , ताकि विधान सभा लोक सभा चुनावों में कांग्रेस को लाभ मिल सके |कई बड़े साधु संत चंद्रास्वामी को संत मानने को तैयार नहीं थे | मंत्री पद पर रहते हुए सुबोधकांत सहाय ने जून 1993 में अयोध्या में सोम यज्ञ करवाया | फिर ट्रस्ट बनाने , मामला अदालत में जाने का सिलसिला चलता रहा | बाद में मनमोहन सिंह के राज में कपिल सिब्बल जैसे नेता तो अदालत में भी मंदिर निर्माण रुकवाने का प्रयास करते रहे | मतलब कांग्रेस मंदिर मस्जिद की राजनीति से स्वयं   सर्वाधिक लाभ चाहती रही | अब भाजपा को मंदिर निर्माण का श्रेय मिलने से राहुल नेतृत्व के नेता हर कदम पर मंदिर के कार्यक्रमों का विरोध करना चाहते हैं |

 कांग्रेस के नेता मंदिर के मुद्दे को साम्प्रदायिक रंग देने के लिए भाजपा के साथ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भूमिका पर भी सवाल उठा रहे हैं | जबकि कांग्रेस के नेता सरकारें समय समय पर संघ के नेताओं का सहयोग लेकर या गिरफ्तारियों का दबाव बनाते रहे हैं | दस्तावेजों से भी यह बात प्रमाणित होती है कि महात्मा गाँधी , सरदार पटेल ही नहीं डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन , इंदिरा गाँधी , नरसिंह राव , जयप्रकाश नारायण जैसे शीर्ष नेताओं ने समय समय पर संघ से सहयोग लिया | आपात काल में जरुर श्रीमती गाँधी ने संघ पर प्रतिबन्ध लगाया , लेकिन भारत चीन या पाकिस्तान से युद्ध के दौरान संघ के स्वयंसेवकों के सहायता कार्यों की सार्वजनिक सराहना की | राजीव राज में अरुण नेहरु और नारायणदत्त तिवारी और नरसिंह राव लगातार मंदिर मुद्दे पर संघ नेताओं के साथ वार्ताएं करते रहे | मुस्लिम समुदाय को लेकर डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन द्वारा 20 नवम्बर 1949 को मुंगेर – बिहार की सभा में कही गई बात का उल्लेख किया जा सकता है | डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन ने कहा था – ‘ ये आरोप पूर्णतः निराधार है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ मुसलमानों के प्रति हिंसा और घृणा का भाव रखता है | मुसलमानों को संघ से आपसी प्रेम भाईचारे और संगठन का पाठ सीखना चाहिए |’ यह उद्धरण हमने इसलिए दिया , क्योंकि कुछ राजनीतिक या अन्य संगठनों के नेता प्रवक्ता गुरु गोलवलकर के सरसंघचालक के समय की याद दिलाकर संघ पर आरोप लगाते हैं | वैसे भी संघ और भाजपा ने समय के साथ अपने को बदला है |

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 अब तो प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी अपनी जन लाभार्थी योजनाओं का लाभ हर धर्म , जाति , वर्ग को देने के साथ तलाक के पुराने कानूनों को ख़त्म कर महिलाओं को समान अधिकार देने , हज यात्रियों की सुविधाएं बढ़ाने के लिए सऊदी अरब से समझौते जैसे कदम उठा रहे हैं | वहीं अरब देशों , संयुक्त अरब अमीरात , ईरान , ओमान सहित इस्लामिक  देशों  अथवा अमेरिका , यूरोप , रुस   के साथ आर्थिक सामरिक समझौते कर रहे हैं | कम्युनिस्ट पार्टियों को कांग्रेस के सत्ता काल या बाद में भी रुस का सबसे अधिक सहयोग समर्थन मिलता रहा | अब  उन देशों के प्रमुख और सरकारें मोदी सरकार की प्रशंसा करते नहीं थक रही हैं | ऐसे दौर में कांग्रेस या उसके सहयोगी  लालू यादव , शरद पवार की पार्टियां या कम्युनिस्ट पार्टियां   क्या मंदिर मस्जिद मुद्दे पर मोदी सरकार और भाजपा के विरोध से कोई चुनावी लाभ उठा सकेंगी  ?

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।