Jhooth Bole Kauva Kaate: कांग्रेस का विक्टिम कार्ड चलेगा या खेत को चर जाएगी मेड़
कांग्रेस और गांधी नामधारी परिवार बुरी तरह बौखलाहट का शिकार है। एक तरफ, नेशनल हेराल्ड मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) नाक में दम किये हुए है, दूसरी तरफ इस मामले के सूत्रधार सुब्रमण्यम स्वामी जले पर नमक छिड़क रहे कि सोनिया-राहुल दोनों जेल जाएंगे। लेकिन, ईडी की कार्रवाई के माध्यम से डराने की कोशिश का आरोप हो, या ‘हर घर तिरंगा’ पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को देशद्रोही संगठन बताना हो, कांग्रेस नेता राहुल गांधी के निशाने पर हमेशा की तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही हैं। ‘चौकीदार चोर है’ से लेकर ‘हम मोदी से नहीं डरते’ तक का सफर कांग्रेस को 2024 में कहां पहुंचाएगा, विक्टिम कार्ड चलेगा या फिर कहीं मेड़ ही खेत को पूरी तरह चर जाएगी? पिक्चर अभी बाकी है।
ईडी ने गुरुवार को अखबार नेशनल हेराल्ड की होल्डिंग कंपनी यंग इंडियन के कार्यालय पर उसके प्रधान अधिकारी और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की उपस्थिति में तलाशी अभियान चलाया, पूछताछ की। उधर, कांग्रेस ने विपक्षी नेताओं के खिलाफ ईडी की कार्रवाई का मुद्दा राज्यसभा में उठाया। इस मुद्दे पर कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने उच्च सदन में जोरदार हंगामा किया। दूसरी ओर, राहुल के आरोपों पर संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेडकर ने कहा,‘‘ऐसी चीजों का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए। आरएसएस पहले ही ‘हर घर तिरंगा’ और ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ कार्यक्रमों को समर्थन दे चुका है।
एक दिन पहले ईडी ने सबूतों को सुरक्षित रखने’ के लिए अस्थायी तौर पर यंग इंडियन ऑफिस को सील कर दिया था। तब मीडिया में खुलासा हुआ था कि तलाशी के दौरान जांच एजेंसी ने यंग इंडिया लिमिटेड दफ्तर से दस्तावेजी सबूत बरामद किए, जो मुंबई और कोलकाता के हवाला ऑपरेटरों से हवाला लेनदेन को दर्शाता है। दूसरी ओर, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने दावा किया कि जल्द ही राहुल-सोनिया जेल जाएंगे और उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध में सजा होगी। स्वामी ने दैनिक भास्कर से इस बातचीत में चल रही ईडी की जांच पर संतुष्टि जताई।
इसके पहले, सोनिया गांधी से पूछताछ हुई थी और जिस दिन वह ईडी ऑफिस पहुंची, कांग्रेस ने खूब धरना-प्रदर्शन किया था। राहुल गांधी ने इसे तानाशाही बताया था। इससे पहले राहुल से पूछताछ के दौरान भी कांग्रेस ने प्रदर्शन करके विरोध जताया था। उधर, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के निलंबित नेता और पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी तथा अर्पिता मुखर्जी और महाराष्ट्र में पूर्व मंत्री तथा शिवसेना के ताकतवर नेता संजय राउत भी ईडी के शिकंजे में हैं। इस कारण और कुछ अन्य मामलों के चलते अनेक विपक्षी दल बौखलाए हुए हैं। देश के 17 विपक्षी दलों ने धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत ईडी को मिले अधिकारों के संदर्भ में पिछले दिनों आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर निराशा जताई थी।
137 साल की पार्टी है कांग्रेस लेकिन आज़ादी के बाद इतनी बड़ी दुर्गति पहले कभी नही हुई। अशोका यूनिवर्सिटी के त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा (टीसीपीडी) की ओर से इकट्ठा किए गए आंकड़ों के मुताबिक, देश में कई सीटों से पार्टी का नामोनिशान मिट गया है। 1999 के बाद से पांच लोकसभा चुनावों में, कम से कम 61 सीटें ऐसी रही हैं, जहां कांग्रेस ने हर बार चुनाव लड़ा है, लेकिन एक बार भी जीतने में कामयाब नहीं रही। पिछले पांच लोकसभा चुनावों में 11 फीसदी लोकसभा सीटों पर वोटर कांग्रेस को लगातार नकारते रहे हैं। यह संख्या हर चुनाव में बढ़ती रही है।
इन 61 लोकसभा सीटों में से आधे से ज्यादा, उत्तर प्रदेश (18), मध्य प्रदेश (11) और ओडिशा (8) राज्यों में स्थित हैं। शेष छत्तीसगढ़ (5), पश्चिम बंगाल (4), गुजरात (3), महाराष्ट्र (2), आंध्र प्रदेश (1), तेलंगाना (1), बिहार (1) और त्रिपुरा (2), हिमाचल प्रदेश (1 ), कर्नाटक (1), मेघालय (1), राजस्थान (1), और सिक्किम (1) में हैं।
साल 2019 के बाद से, इनमें से ज़्यादातर सीटों पर भाजपा का दबदबा रहा है। लेकिन, कई राज्यों जैसे कि उत्तर प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में क्षेत्रीय पार्टियों ने सबसे पहले कांग्रेस से सीट छीनी। इन 61 सीटों के चुनावी इतिहास को देखने पर पता चलता है कि कांग्रेस इन जगहों से गायब रही है।
झूठ बोले कौआ काटेः
कांग्रेस के पास न तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ सरीखा मजबूत और अनुशासित संगठन है, न ही शीर्ष नेतृत्व। मान्यता यही है कि पार्टी में गांधी नामधारी परिवार के वंशवाद में किसी तीसरे नेता के शीर्ष तक पनपने की कोई संभावना नहीं है। और तो और, 2017 में प्रियंका वाड्रा के पुत्र रेहान वाड्रा का नाम बदल कर रेहान राजीव वाड्रा करने की खबर जब आग की तरह फैली तो लोग मानने लगे कि कांग्रेस में एक और पारिवारिक उत्तराधिकारी के बीज पड़ गए।
कांग्रेस में असंतुष्ट जी-23 ग्रुप का उदय नेतृत्व के विवाद के कारण ही हुआ। ग्रुप में शामिल वरिष्ठ नेता और नामचीन अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने इसी साल मार्च में द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा था कि वो चाहते हैं कि कांग्रेस सभी की हो, मगर कुछ अन्य लोग ‘घर की कांग्रेस’ चाहते हैं। वे पहले ऐसे नेता हैं जिन्होंने खुलकर सोनिया गांधी से पद छोड़ने की अपील की। उन्होंने कहा कि अब गांधी परिवार को कांग्रेस नेतृत्व का भार छोड़ देना चाहिए और किसी दूसरे नेता को इसका दायित्व दे देना चाहिए।
बोले तो, आपातकाल के बाद एक बड़े जनसमूह का कांग्रेस से मोहभंग होना शुरू हो गया था। राजनैतिक अस्थिरता और जनता की नई आकांक्षाओं को पूरा करने में असमर्थ होने के कारण भी निरंतर कांग्रेस का जनाधार कम होता गया। क्षेत्रीय दलों ने क्षेत्रीयता, धर्म, और जाति के आधार पर कांग्रेस की वोट बैंक में सेंघ लगाय़ी। भारत के विभिन्न राज्यों में गठित क्षेत्रीय दलों ने मुख्यतः क्षेत्रीयता, जाति और धर्म के आधार पर नई तरह की राजनीति प्रारंभ कर दी। कांग्रेस धीरे-धीरे राज्यों में दोयम दर्जे की भूमिका में आ गई।
एक दौर था जब माना जाता था कि शहरी क्षेत्रों में ही भाजपा का वोट बैंक है और ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस का दबदबा कायम है। पर, तकनीक के बढ़ते दायरे ने समाज में नई क्रांति ला दी, योजनाओं में हो रहे भ्रष्टाचार की भनक अब गांव-गांव तक फैल चुकी थी।
1998 में सीता राम केसरी को कांग्रेस ने जिस प्रकार अपमानित करते हुए भगाया था आज राहुल गांधी को लेकर भी लगभग वही स्थिति दिखाई पड़ रही है। राहुल गांधी पर अयोग्य होने का आरोप लगाने वाली ममता बनर्जी ही अकेली नहीं हैं, कांग्रेस के भी कई बड़े नेता आए दिन राहुल गांधी पर अयोग्य होने का आरोप लगाते रहते हैं।
दूसरी ओर, देश में राष्ट्रवाद का उत्थान हो रहा है। कांग्रेस सरकारों की तुष्टिकरण की नीति, आतंकवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर संदिग्ध विश्वसनीयता ने आग में घी का काम किया। नेशनल हेराल्ड मामला वरिष्ठ भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने जब 2012 में उठाया और 2014 में ईडी ने स्वत: संज्ञान लेते हुए मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया तो गांधी नामधारी परिवार और कांग्रेस इसकी आंच में झुलसने लगे।
तब भी भाजपा स्वयं इस मुद्दे को तूल देने से बचती रही। भाजपा जानती थी कि भले ही ये कथित भ्रष्टाचार का मामला है लेकिन, गांधी नामधारी परिवार और कांग्रेस विक्टिम कार्ड खेल कर चुनावों में भाजपा का खेल बिगाड़ सकती है, जैसा कि 1977 में इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी मामले में हुआ था। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस पार्टी ने 100 जीप खरीदी थी। उस खरीदारी को लेकर आरोप लगा था कि उसमें जो पैसा लगा है, वो उद्योगपतियों ने दिया था और सरकारी पैसे का इस्तेमाल किया गया था। लेकिन, इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी कांग्रेस के लिए सजा कम वरदान ज्यादा सिद्ध हुई। देश में इंदिरा गांधी के पक्ष में ऐसी सहानुभूति की ऐसी लहर चली कि इमरजेंसी की कड़वी यादें दफन हो गईं और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की जोरदार वापसी हुई।
बोले तो, सोनिया-राहुल गांधी वैसा ही विक्टिम कार्ड खेलकर पीएम मोदी और भाजपा को आगामी विधानसभा और 2024 के आम चुनावों में मजा चखाना चाहते हैं। इसीलिए, वे नेशनल हेराल्ड मामले और महंगाई, पुलिस-ईडी प्रताडना तथा ‘हर घर तिरंगा’ जैसे मुद्दों का घालमेल करके जनता की सहानुभूति बटोरने की कोशिश में आक्रामक तरीके से जुट गए हैं। राहुल गांधी ने महंगाई पर संसद के मानसून सत्र में आरोप लगाया कि देश की जनता परेशान है, लेकिन सरकार एक ‘अहंकारी राजा’ की छवि चमकाने के लिए अरबों रुपये फूंक रही है।
दरअसल, उन्हें अहसास है कि ये दांव आखिरी है। उन्हें और कांग्रेस को डूबने से यही बचा सकता है। अन्यथा सुब्रमण्यम स्वामी की मानें तो यह मामला ताबूत में अंतिम कील सिद्ध होगा।
और ये भी गजबः
राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह पर तथा भाजपा का बिना नाम लिए एक ट्वीट किया और लिखा- इतिहास गवाह है, ‘हर घर तिरंगा’ मुहिम चलाने वाले, उस देशद्रोही संगठन से निकले हैं, जिन्होंने 52 सालों तक तिरंगा नहीं फहराया। आजादी की लड़ाई से, ये कांग्रेस पार्टी को तब भी नहीं रोक पाए और आज भी नहीं रोक पाएंगे।
ऐसे में सवाल तो बनता है कि अगर आरएसएस देशद्रोही संस्था थी तो 70 साल कांग्रेस ने राज किया, बैन क्यों नहीं किया?
1962 में भारत पर चीन के आक्रमण के समय संघ के स्वयंसेवकों की सेवा से प्रभावित होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लालनेहरू ने 1963 की गणतंत्र दिवस की परेड में संघ को आमंत्रित किया था। संघ के कार्यक्रमों में भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन भी हिस्सा ले चुके हैं। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने संघ के सरसंघचालक गुरुजी गोलवलकर को सर्वदलीय बैठक में आमंत्रित किया था। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी 1977 में संघ के कहने पर स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा का अनावरण किया था। राजनीतिक हस्तियों के अतिरिक्त पूर्व जनरल फील्ड मार्शल करियप्पा 1959 में मंगलोर की संघ शाखा के कार्यक्रम में शामिल हुए थे। 2018 में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी आरएसएस के कार्यक्रम में शामिल हुए थे। इन सबके बारे में आप क्या कहेंगे?