Conspirasy against Bjp govt:विपक्षी राजनीति के खतरनाक संकेत
इस बार लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत क्या नहीं मिला,विपक्ष को लगा जैसे उसकी लॉटरी लग गई।जबकि चुनाव पूर्व गठबंधन के कारण राजग को पूर्ण बहुमत प्राप्त है। जो विपक्षी दल सरकार बनाने का सपना संजो रहे थे, उनके अरमानों पर राजग 3.0 कुठाराघात है। इसे वे पचा ही नही पा रहे और पहले ही सत्र में उन्होंने साफ संकेत भी दे दिये कि वे पांच साल तक कैसे पेश आने वाले हैं। संभवत उनकी साझा साजिश यह हो कि संसद के अंदर और सड़क पर इतनी अराजकता मचाई जाये कि मोदी सरकार आपातकाल लगाने को विवश हो जाये। फिर विपक्ष तांडव मचाये। ऐसा कुछ भी हो जाना कोई बहुत बड़ी बात भी नहीं है।
आप पिछले कुछ महीनों के घटनाक्रम को गौर से देखें तो पाते हैं कि कांग्रेस कुंवर राहुल गांधी और विपक्ष के नेता अपने-अपने दायरे में ऐसे हालात पैदा कर रहे हैं, जिससे समाज अलगाव,संघर्ष,अविश्वास की गहरी खाई की ओर फिसलता चले। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब विपक्ष थोड़ा मजबूत हुआ, तब इसका फायदा देश के लोकतंत्र को मिलने की बजाय इसे निजी लाभ में बदलने के जतन हो रहे हैं। इसमें यह भी नहीं देखा जा रहा कि वह अपनी मूल जिम्मेदारी को निभाते हुए सरकार को मुद्दों पर,विकास नीति पर,अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा के लिये घेरे और इस बात के लिये बाध्य करे कि वह लोक हित से विमुख न हो। ऐसा वह तभी कर सकता है, जब उसे लोकहित की चिंता हो।
भारतीय राजनीति का यह दौर बेहद विसंगति पूर्ण होता जा रहा है। एक तरफ सरकार विकास के नित नये प्रतिमान कायम कर रही है और दुनिया की बड़ी ताकत बनने में जी-जान से लगी है तो दूसरी तरफ विपक्ष उसकी राह में निजी महत्वाकांक्षा के कांटों की बाड़ लगा रहा है। यदि यह सिलसिला ऐसा ही चलता रहा तो यह देश को कमजोर करेगा, जिसका कोई फायदा विपक्ष को तो कतई नहीं मिलने वाला।
संसद में प्रतिदिन ही जो दृश्य सामने आ रहे हैं, वह देश,समाज के शुभचिंतकों के लिये परेशानी व चिंता भरे हैं। जब 2 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलने लगे, तब विपक्ष ने बिना रुके शोर मचाकर उनकी बातों को अनसुना किया। वे सदन की मर्यादा भूलकर भाषण के बीच बोलते रहे। हद तो यह थी कि राहुल गांधी अपने दूत भेजकर विपक्षी सांसदों को पीछे की सीट से बुलाकर अध्यक्षीय आसंदी के सामने नारेबाजी के लिये उकसा रहे थे। उनका यह आचरण विशुद्ध बचकाना था, जैसा गली-मोहल्ले में गिल्ली-डंडा खेलते हुए,साइकिल चलाते हुए बच्चे बेवजह अपनी श्रेष्ठता दिखाने के लिये करते हैं।
यूं देखें तो राहुल गांधी से ऐसी की कुछ अपेक्षायें की जा सकती हैं,जो गांभीर्य,तर्कपूर्ण और मर्यादा में बंधी न हो। वे अपने पहले संवैधानिक दायित्व को किस तरह से किस दिशा में आगे बढ़ायेंगे, इसकी झलक भी देखने को मिल चुकी है। नेता प्रतिपक्ष के लिये विषय की जानकारी,तैयारी,देश के प्रमुख मसलों का अध्ययन,प्रभावी उद्बोधन,अकाट्य तर्क उनके बस के हैं भी नहीं । वे या तो संविधान की प्रति लहराने की नौटंकी कर सकते हैं या हाथ में शिवजी की तस्वीर लेकर हिंदुओं को हिंसक आचरण करने वाला बता सकते हैं या साथी सासंद को आंख मार सकते हैं या संसद की सीढ़ीयों पर बहन प्रियंका को बिंदास चूम सकते हैं या साथी सासंदों को आसंदी के सामने आकर हुड़दंग करने के लिये उकसा सकते हैं। यह सब करते हुए वे अपने को धाकड़ प्रतिपक्ष नेता,निष्णात राजनीतिज्ञ,देश की सबसे पुरानी और पहली राजनीतिक पार्टी का तारणहार वगैरह होने का मुगालता पाल सकते हैं। लेकिन, वे नहीं जानते कि यदि उनके रवैये का यही स्वरूप कायम रहा तो वे भारतीय संसदीय इतिहास के सबसे कमजोर,विफल,गैर जिम्मेदार और मर्यादाहीन नेता ही प्रमाणित करेंगे।
कुछ उत्साहीलालों द्वारा कहा तो यह भी जा रहा है कि अभी तो यह ट्रेलर है,पिक्चर अभी बाकी है। भारतीयों ने ऐसी अनेक फिल्में देखी हैं, जिनका नायक किसी सुपर स्टार की औलाद रहा, लेकिन रंग बदलकर भी वह कभी शेर नही बन पाया। आने वाले समय में कांग्रेस नेतृत्व वाले विपक्ष द्वारा निरंतर ऐसे प्रयास किये जायेंगे, जिससे देश में चारों तरफ घनघोर निराशा का माहौल खड़ा कर दिया जाये। सांप्रदायिक सौहार्द को भी दांव पर लगाया जा सकता है, जिसका ठीकरा हमेशा की तरह भाजपा,संघ पर फोड़ा जायेगा। जबकि बीते दस साल में देश में कहीं कोई ऐसी वारदात नहीं हुई जो सांप्रदायिक रंग मे रंगी हो। जिस तरह से चुनाव प्रचार के दौरान संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने के झूठ को आसमान पर चढ़कर चिल्लाया गया, वैसी ही अनेक मुहिम चलती रहेगी,इतना तो तय है।
देश ने हाल ही में एक के बाद एक जिस तरह की घटनायें देखी हैं, वे उसे सुनहरे भविष्य के प्रति शंकित करती है । मसलन,चंडीगढ़ विमान तल पर सीआईएसएफ जवान कुलविंदर द्वारा सासंद कंगना को थप्पड़ मारना । संसद में राहुल गांधी द्वारा लोकसभा अध्यक्ष को यह कहना कि आप मोदीजी से झुककर मिलते हैं और मुझसे बिना कंधे झुकाये मिलते हैं। जिसे सामान्य शिष्टाचार तक पता नहीं,वही ऐसी निम्न स्तरीय सोच रख सकता है। कथित बाहुबली सांसद पप्पू यादव का आसंदी तक जाकर यह कहना कि वह उनसे ज्यादा अनुभवी है,इसलिये यह मत बताओ कि क्या करना है और क्या नहीं ? संसद में ही नेता प्रतिपक्ष जैसे संवैधानिक पद पर होकर राहुल गांधी का यह कहना कि हिंदू हिंसक होते हैं और नफरत फैलाते हैं। फिर प्रधानमंत्री के भाषण के समय लगातर हल्ला मचाना।
ये सारे संकेत बेहद खतरनाक है। इनसे विपक्ष की भविष्य की रणनीति समझी जा सकती है कि वह किसी भी कीमत पर मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा सरकार को तीसरी बार संवैधानिक तरीके से काम नहीं करने देगा और विरोध के लोकतांत्रिक हथियार के नाम पर बेजा आचरण जारी रखेगा।