Corona’s Pain Re-Emerged : कोरोना ने पतियों को छीना, पीड़ित महिलाओं का दर्द सरकार ने भी नहीं सुना!

700 से ज्यादा महिलाओं के लिए अब तक सरकार ने कुछ नहीं किया!

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Corona’s Pain Re-Emerged : कोरोना ने पतियों को छीना, पीड़ित महिलाओं का दर्द सरकार ने भी नहीं सुना!

Indore : इस बार मंगलवार को हुई जनसुनवाई में कोरोना में अपने पतियों को खो चुकी महिलाओं की पीड़ा लगता है, दूर होने वाली है। इन सभी 700 महिलाओं की पीड़ा है, कि सरकार हमारी तरफ ध्यान नहीं देती। सरकार ने लाडली लक्ष्मी योजना भी उन महिलाओं के लिए शुरू की, जो सक्षम हैं। अब सिवाए खुदकुशी के हमारे पास कोई हल नहीं है। ऐसे में बच्चों को कुछ तो मदद मिलेगी।

जनसुनवाई में महिला एवं बाल विकास विभाग से इनके आवेदन लिए गए। इन सभी महिलाओं की डिटेल्स मंगवाई जा रही है, ताकि प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजा जा सके। जन सुनवाई में एडीएम अभय बेडेकर और महिला एवं बाल विकास अधिकारी रामनिवास बुधौलिया के सामने अपना दर्द साझा करते-करते पीड़िता रीना राठौर और प्रमिला माहेश्वरी तो रो पड़ी।

रीना ने बताया कि जिन बच्चों को माता-पिता गुजर चुके हैं, उन्हें सरकार ने अच्छी खासी सहायता की। लेकिन, हम सिंगल पेरेंट्स के लिए कुछ नहीं किया। हम दो साल से इधर-उधर चक्कर काट रहे हैं, लेकिन कोई ध्यान नहीं देता। कोरोना में पति की मौत हो चुकी है। हमें एनजीओ के जरिए 2 हजार रु. महीना देना शुरू किया था, जो तीन-चार माह में ही बंद हो गया। नगर निगम से 600 रु. की पेंशन शुरू की उसके लिए भी स्टाफ रिश्वत मांगता हैं। हमारा न तो ससुराल बचा है और न मायका। महंगाई चरम पर है। बच्चों के स्कूल की फीस कैसे भरे।

उन्होंने कहा कि सरकार ने कोरोना में सिंगल पेरेंट्स केस में एक बार 50 हजार रु. दिए। इसके बाद सिर्फ चार महीने तक एनजीओ के माध्यम से 2-2 हजार रु. दिए और बंद कर दिए। सरकार ने हमें 4 हजार रु. प्रतिमाह देने की योजना बनाई थी, लेकिन उसका भी एक रुपया नहीं मिला। सरकार हम सिंगल पेरेंट्स को इच्छा मृत्यु दे दे ताकि हमारे बच्चे फिर अनाथ कहलाएंगे तो उन्हें फिर योजना का लाभ मिलेगा। समाज वाले विधवा महिलाओं को जीने नहीं देते।

मुख्यमंत्री ने भी आश्वासन ही दिए

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से कई बार अपील की, लेकिन वे ध्यान नहीं देते। कई मौकों पर नरसिंह वाटिका, ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर आदि स्थानों पर मुख्यमंत्री के सामने अपनी बात रख चुके हैं, लेकिन आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। विधायकों से भी मिले, उन्होंने भी लेटर हेड पर अधिकारियों तक को लिखकर दिया, लेकिन कोई मदद नहीं मिली। कैसे गुजारा करें, कैसे बच्चों को पाले! अधिकारियों के पास जाते हैं तो कहते हैं कि बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिला दिला दो। हम करा भी देते, लेकिन अभी स्कूल की जो फीस ड्यू है उसे देने के लिए भी पैसे नहीं है।

प्राइवेट जॉब तक नहीं दिलाया

पीड़ित महिलाओं ने बताया कि हम कई बार जनसुनवाई में आए और परेशानी बताई। अधिकारियों ने कहा कि प्राइवेट जॉब दिलवा देंगे। इसके बाद कई चक्कर लगाए और फिर कहा कि अभी कोई प्राइवेट जॉब नहीं है। एक बुजुर्ग महिला ने बताया कि कोरोना में मेरे दामाद व समधी की मौत हो गई। बेटी के ससुराल में अब कोई नहीं है। बेटी और उसकी 10 साल की बच्ची की जिम्मेदारी हम बुजुर्ग माता-पिता पर है, कैसे संभालें! हमें सरकार कोई मदद नहीं कर रही है।

लाडली योजना के बजाए हम पर ध्यान देते

महिलाओं ने बताया कि भोपाल गैस त्रासदी हुई तो उसका मुआवजा पीढ़ी दर पीढ़ी मिल रहा है। कोरोना में जिन बच्चों के माता-पिता गुजर चुके हैं, उन्हें 10 लाख रु, राशन, मुफ्त शिक्षा की सुविधा मिल रही है। लेकिन हम जैसे सिंगल पेरेंट्स के परिवारों को कोई सहायता नहीं मिल रही। हम जीवित रह गए यह हमारी गलती है। हम भी मर जाते तो बच्चों को सुविधाएं तो मिलती।