Corruption:नमक में आटा मिलाएं ,कुछ नया कर दिखाएं

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व्यंग-Corruption:नमक में आटा मिलाएं ,कुछ नया कर दिखाएं

यूं तो भ्रष्टाचार को लेकर अखबारों में प्रतिदिन दो- चार खबरें तो छपती ही हैं । जिस दिन ऐसी खबर न छपे तो उस दिन का अखबार कुछ खाली-खाली सा लगता है । बिना समाचार छपे शासकीय प्रक्रिया में भ्रष्टाचार एक रस्मों रिवाज बन चुका है । ऊपर से लेकर नीचे तक लेन-देन एक सामान्य प्रक्रिया है । काम के मान से दाम भी तय है । दाम का भुगतान हुआ नहीं कि आपका कागज एक टेबल से दूसरी टेबल तक स्वत: चलेगा । यह चलन बरसों पुराना है । पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है । अंतर सिर्फ इतना आया कि पहले आटे में नमक मिलाया जाता था ।

अब नमक में आटा मिलाया जा रहा है । नमक में आटा मिलाना भी आज की पीढ़ी की मजबूरी है । कारण , आज शिक्षा , स्वास्थ्य एवं रोजगार सब उद्योग-धंधे बनते जा रहे हैं । ऐसे में आज की पीढी को कुछ नया करके दिखाना होगा । अपने लिए न सही अपने बच्चों के लिए कुछ तो जोड़ना ही होगा । वरना डार्विन की थ्योरी ‘ स्ट्रगल फार एक्जीसटेंट ‘ को तो भोगना ही है । सम्भवतः इसीलिए आजकल नमक में आटा मिलाने की खबरें ज्यादा पढ़ने में आ रही हैं । अभी कुछ दिनों पूर्व की ही खबर है ।

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प्रदेश के शहडोल जिले के दो स्कूलों की रंगाई-पुताई में 24 लीटर आयल पेंट लगाने में 443 मजदूर तथा 215 मिस्त्री लगाए गए । जिम्मेदारों ने 3.38 लाख रुपए के बिल का आहरण करवाकर राशि आपस में बांट ली । राशि का बंटवारा इतना महत्वपूर्ण नहीं है । महत्वपूर्ण है बिल बनाने का गणित ज्ञान । इस गणित ज्ञान को निखार देने के लिए भविष्य में गणित विषय में कुछ ऐसे सवाल भी पूछे जा सकते हैं । सवाल यूं कि किसी सरकारी भवन में 24 लीटर आयल पेंट लगाने में 443 मजदूर तथा 215 मिस्त्री लगाए जाए तो भुगतान हेतु कुल लागत का एक सुव्यवस्थित बिल बनाइये ।

ठीक ऐसे ही चंबल संभाग में पीएम जीवन ज्योति बीमा योजना के तहत करीब 1500 मामलों में मृतकों को जीवित बता दिया । बाद में फिर से इनके मृत्यु प्रमाण पत्र लगाकर 2 से 4 लाख रुपए का क्लेम भी ले लिया । इससे सिद्ध होता है कि भारत भूमि अनादिकाल से चमत्कारों की भूमि रही है । यहां मृत संजीवनी विद्या द्वारा मृत व्यक्ति को जीवन तथा मारण तंत्र प्रयोग द्वारा जीवित व्यक्ति को मृतक में बदल दिया जाता था । बदले रूप में यही सब-कुछ आज भी चल रहा है । ठीक ऐसा ही एक समाचार कुछ दिनों पूर्व प्रदेश के रीवा जिले से छपा था ।

समाचार में दूसरों के मृत माता-पिता को अपने माता-पिता बताते हुए फर्जी दस्तावेज के आधार पर ले ली अनुकंपा नियुक्तियां । आखिर पेट जो पापी ठहरा । पापी पेट के लिए ही सही दूसरों के माता-पिता को अपना मान लिया । वह भी मृत माता-पिता को । वरना आजकल तो लोग जिंदे मां-बाप को भी मां-बाप नहीं समझते । अनुकंपा नियुक्ति के बदले अब इन मृत माता-पिता पर भी थोड़ी अनुकंपा करो । अनुकंपा कुछ ऐसी जिससे इन्हें मृत रूप में इधर-उधर न भटकना पड़े । बस मोक्ष मिल जाए । समाचारों की इसी कड़ी में एक और चौंकाने वाला समाचार । समाचार में योजनाओं के लाभ हेतु एक महिला ने अपने जिंदा पति को मृत बता दिया । फिर विधवा बताकर अपने मायके ( कन्नौज – उप्र ) में आवासीय प्लाट भी प्राप्त कर लिया । जबकि एक पतिव्रता नारी वह भी थी , जो यमराज से तार्किक बहस करके अपने मृत पति को जिंदा लौटा लाती है । अब कलियुग में पतिहंता जो भी करें , कम है ।

अब अपने प्रदेश की राजधानी भोपाल को ही ले , जहां कुछ माह पूर्व राजधानी के नजदीक सुनसान जगह पर एक कार में से 54 किलो सोना और लगभग 10 करोड़ रुपए जप्त हुए । मजेदार बात यह कि लोकायुक्त पुलिस और आयकर विभाग द्वारा बरामद इतनी बड़ी रकम पर कोई हक जताने भी नहीं आया । दान की सार्थकता इसी में कि एक हाथ से किए दान का दूसरे हाथ को पता भी नहीं चले । ऐसे ही बीते शीतकालीन सत्र में संसद के उच्च सदन की सीट नम्बर 222 से पांच सौ के नोट की गड्डी मिली । इस तरह से उल्लेखित खबरें तो बानगी मात्र हैं । इनसे भी ज्यादा कमाल के वाकए हैं । जो अभी खबर नहीं बन पाए हैं । खबर से कुछ लेना-देना नहीं । बस नमक में आटा मिलते रहना चाहिए । इसे ही कहते हैं कौशल विकास ।

– डॉ . श्रीकांत द्विवेदी
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