
Court Decision:मामला सम्पत्ति का नहीं था फिर भी अदालत में लड़ रहे थे दो भाई ,क्या था मामला ?
जब भाई-भाई अदालत जाते हैं, तो लोग अक्सर यही सोचते हैं कि ज़रूर विरासत, ज़मीन या पैसों का झगड़ा होगा।
लेकिन सऊदी अरब से आई यह सच्ची घटना इस सोच को पूरी तरह बदल देती है और दिल को छू जाती है।
एक बुज़ुर्ग व्यक्ति हिज़ाम अल-ग़ामदी को अपने ही छोटे भाई के ख़िलाफ़ अदालत में खड़ा होना पड़ा। लेकिन यह मामला न पैसों का था,
न ज़मीन का, न विरासत का।
दोनों भाई सिर्फ एक बात पर अड़े हुए थे – अपनी कमज़ोर, बुज़ुर्ग माँ की सेवा करने के अधिकार पर।
हिज़ाम ने अदालत में भावुक होकर कहा: “मैं बचपन से अपनी माँ की देखभाल करता आ रहा हूँ। मेरी माँ ही मेरी पूरी ज़िंदगी है।”
लेकिन छोटे भाई ने कहा: “भाई खुद अब बुज़ुर्ग हो चुके हैं, उन्हें आराम की ज़रूरत है। अब माँ की ज़िम्मेदारी मुझे सँभालने दीजिए।”
अदालत का माहौल बेहद भावुक हो गया। दोनों भाई न्यायाधीश के सामने अपनी माँ की सेवा करने का अधिकार माँग रहे थे।
न्यायाधीश खुद फैसला नहीं कर पाए। उन्होंने माँ को बुलाया और पूछा:
“बताओ, तुम किस बेटे के साथ रहना चाहती हो?”
माँ की आँखों में आँसू आ गए और उन्होंने कहा:
“मैं कैसे चुनूँ?
मेरे दोनों बेटे मेरी दाईं और बाईं आँख जैसे हैं।”
जब माँ भी फैसला नहीं कर पाईं, तो न्यायाधीश को तर्क के आधार पर फैसला सुनाना पड़ा।
माँ की देखभाल की ज़िम्मेदारी छोटे बेटे को दे दी गई, क्योंकि वह उम्र में छोटा और शारीरिक रूप से अधिक सक्षम था।
फैसला सुनते ही अदालत का माहौल ग़मगीन हो गया। हिज़ाम फूट-फूट कर रो पड़े।
वह इस वजह से नहीं रोए कि फैसला उनके ख़िलाफ़ था, बल्कि इसलिए रोए क्योंकि उन्हें लगा कि उन्होंने अपनी माँ की बाकी ज़िंदगी में
उनकी सेवा करने का सबसे कीमती मौक़ा खो दिया।
प्रकाश हिन्दुस्तानी की वाल से





