
RTI एक्टिविस्ट की शिकायत पर न्यायालय की कार्यवाही, नीमच संयुक्त कलेक्टर को जुर्माना के लिए शोकॉज नोटिस!
Nagda : स्वाधीनता संग्राम की 50वीं वर्षगांठ पर मप्र शासन की योजना के तहत प्रकाशित एक स्मारिका की सूचना अधिकार में भ्रामक, गुमराह पूर्ण, मिथ्या एवं अधूरी जानकारी देने के एक मामले को मप्र राज्य सूचना आयोग भोपाल ने गंभीरता से लिया है। इस प्रकरण में आयोग ने एक अपील सुनवाई में तत्कालीन झाबुआ की लोकसूचना अधिकारी एवं इन दिनों संयुक्त कलेक्टर के पद पदस्थ प्रीति संघवी पर नामजद 25 हजार का जुर्माना करने के लिए शोकाज नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा है। शोकाज में लिखा है कि अब आपको क्योंना जुर्माना से दंडित किया जाए। जवाब के लिए संयुक्त कलेक्टर को आयोग न्यायालय भोपाल में व्यक्तिगत सुनवाई के लिए 27 फरवरी को तलब किया है। सूचना आयोग ने यह कार्यवाही नागदा जिला उज्जैन के आरटीआई एक्टिविस्ट कैलाश सनोलिया की अपील सुनवाई के बाद निर्णय दिया।
पीठासीन राज्य सूचना आयुक्त डॉक्टर उमाशंकर पचौरी की पीठ के आदेश पर यह कार्यवाहीं हुई। इस प्रकरण में कलेक्टर झाबुआ जो कि प्रथम अपीलीय अधिकारी हैं उन्हें अपना पक्ष समर्थन के लिए भी सूचना प्रेषित की है। इतना ही नहीं वर्तमान में पदस्थ लोक सूचना अधिकारी अर्थात संयुक्त कलेक्टर झाबुआ अक्षय सिंह मरकाम को आयोग ने यह भी आदेशित किया हैं कि सूचना अधिकार में मांगी गई जानकारियां श्री सनोलिया को 15 दिनों की समय सीमा में अब निशुल्क उपलब्ध कराएं। इसकी पुष्टि का पालन प्रतिवेदन वे 27 फरवरी तक आयोग में प्रेषित करें। इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि देशबंधु के पास सुरक्षित हैं।
क्या है पूरा मामला!
निर्णय में उल्लेखित सूचना अधिकार में आवेदन में यह स्पष्ट किया गया हैं कि मप्र शासन ने वर्ष 1997-98 में स्वाधीनता आंदोलन में झाबुआ जिले का योगदान विषय पर एक पुस्तक प्रकाशित करने का निर्णय लिया था। यह स्मारिका 1999 में प्रकाशित हुई। इस पुस्तक का विमोचन 6 अगस्त 2000 को मप्र शासन के तत्कालीन झाबुआ जिला प्रभारी मंत्री घनश्याम पाटीदार के हाथों हुआ। सूचना अधिकार में इस स्मारिका के प्रकाशन के लिए कलेक्टर द्धारा गठित विशेषज्ञों की कमेटी के नामों की प्रति, कमेटी के सदस्यों की बैठक की प्रासेडिंग, स्मारिका मुद्रण खर्च, कमेटी सदस्यों को प्रदत पारिश्रमिक एवं स्मारिका की प्रति कलेक्टर कार्यालय झाबुआ से मांगी गई थी। 30 मार्च 2022 को सूचना अधिकार आवेदन कार्यालय में पहुंचा था। जानकारियां कुल 10 बिंदुओं में मांगी थी। गौरतलब हैं कि इन जानकारियों को प्रदान करने के लिए कलेक्टर कार्यालय झाबुआ से 1308 रूपए का शुल्क जमा कराने का निर्देश आवेदक को मिला था और राशि जमा भी की गई थी।
गुमराह पूर्ण जानकारी दी!
तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी प्रीति के हस्ताक्षर से जानकारियां प्राप्त हुई उसमें मांगी गई कुल 10 बिंदुओं में से मात्र 1 बिंदु की जानकारी दी गई। जो भी झूठी और गुमराह पूर्ण है। स्मारिका की जगह पर राजभाषा एवं संस्कृति संचालनालय मप्र भोपाल द्धारा मप्र स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिचय ग्रंथ मप्र की एक पुस्तक की प्रेषित कर दी। ऐसी स्थिति में सनोलिया ने सूचना अधिकार में प्रथम अपीलीय अधिकारी अर्थात तत्कालीन कलेक्टर झाबुआ के समक्ष कार्यवाहीं की लेकिन अपील का निराकरण समय सीमा में नहीं किया गया। बाद में यह मामला मप्र राज्य सूचना आयोग भोपाल पहुंचा।
न्यायालय ने निर्णय में प्रमाणित माना!
सूचना आयुक्त पचौरी ने अपने निर्णय में लिखा कि तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी प्रीति ने विधि-विरूद्ध तरीके से कार्यवाहीं करते हुए आवेदक को भ्रामक जानकारी प्रदत की जो कि सूचना अधिकार अधिनियम का उल्लंघन है। वांछित जानकारी बेहद सरल एवं सुलभ रूप से कार्यालय में उपलब्ध थी। यदि जानकारी को नहीं देना थी तो आवेदन का निराकरण अधिनियम के तहत 30 दिनों की समय सीमा में युक्तियुक्त आधार लिखते आवेदक को सूचित करना था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। अधिनियम उल्लंधन पर सूचना अधिकार अधिनियम की दंडात्मक घारा 20 के तहत 25 हजार के जुर्माने अथवा अनुशासनहीनता के लिए शोकाज नोटिस जारी किया जाता है।





