Bidi industry पर संकट बढ़ा, केंद्र ने कमेटी बनाई, पर सही प्रतिनिधित्व नहीं!
विनोद आर्य की विशेष रिपोर्ट
केंद्रीय स्वास्थ एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 12 अक्टूबर को तम्बाकू उत्पादों पर जीएसटी एवं अन्य करों पर विचार-विमर्श के लिए विशेषज्ञों की समिति का गठन किया है।
इस समिति में केंद्रीय स्वास्थ मंत्रालय, विश्व स्वास्थ संगठन, नीति आयोग, जीएसटी एवं केंद्रीय वित्त मंत्रालय एवं स्वास्थ-अर्थशास्त्री डॉ रिजो एम जॉन शामिल हैं।
हैरत की बात है कि इस समिति में श्रमिकों के या तम्बाकू-उत्पाद निर्माताओं के प्रतिनिधियों को शामिल नहीं किया गया। इस एक तरफ़ा समिति की संरचना को देखते हुए इसका एक ही लक्ष्य प्रतीत होता है तम्बाकू का अंत।
बीड़ी कामगार यूनियन के अध्यक्ष अजीत जैन के अनुसार तम्बाकू उत्पादों में से एक बीड़ी ही है, जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में करोंडों श्रमिकों को रोज़गार देती है।
इन श्रमिकों में तेंदू-पत्ता संग्राहक भी शामिल हैं, जिनमें अधिकांश आदिवासी हैं।
हाल ही में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तेंदू-पत्ता संग्रहण की नीति में सुधार कर इस उद्योग को आदिवासियों के लिए और लाभदायक बनाने की घोषणा भी की थी।
यदि बीड़ी ही नहीं बचेगी तो तेंदू-पत्ते का क्या उपयोग रह जाएगा! ऐसी स्थिति में बिना पर्याप्त श्रमिक-प्रतिनिधित्व के स्वास्थ विभाग की यह समिति के निर्णय या सुझाव एक-तरफ़ा ही कहलाएंगे, क्योंकि इनमें उद्योग से जुड़े सभी हितधारकों को अपना पक्ष रखने का अवसर ही नहीं मिल रहा।
वैसे तम्बाकू पर केंद्रीय स्वास्थ एवं परिवार कल्याण मंत्रालय एवं विश्व स्वास्थ संगठन (WHO) का विशेष ध्यान है। वे इसे नशे की अपेक्षा विष समझने लगे हैं।
यद्यपि कई विश्व स्तरीय शोध-संस्थाओं ने यह प्रमाणित कर प्रकाशित किया है कि तम्बाकू-पीने वालों के फेफड़ों पर कोरोना कम घातक होता है। कोरोना की दूसरी लहर के चलते भी कोरोना-नियंत्रण की अपेक्षा कोटपा एवं अन्य तम्बाकू-विरोधी गतिविधियों पर केंद्रीय-स्वास्थ मंत्रालय और WHO को ज़्यादा ध्यान देना उचित लगा।
Khandwa By-Election : हेमा मालिनी को महंगाई बोलकर अरुण यादव फंसे
ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्रीय और राज्य सरकारों के सभी विभागों ने केवल तम्बाकू-उत्पादों को नशे का इकलौत ज़रिया समझ रखा है। 11 अक्टूबर 2021 को मध्य प्रदेश शासन के वाणिज्यिक कर विभाग के उपसचिव के आबकारी आयुक्त के पत्र का विषय था ‘मदिरा की खपत में वृद्धि के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बैठक।’ कई आलीशान क्रूज़ जहाज़ों पर कई प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले भी बहुत हो गए हैं।
आज कई नामी सितारे पान-मसाले के विज्ञापनों में दिखाई देते हैं। लेकिन, सरकारों और विश्व स्वास्थ संगठन (WHO) को नहीं लगता की ये नशे हैं या इनसे कोई स्वास्थ-सम्बन्धी या सामाजिक हानि होती है। उनके लिए तम्बाकू ही सबसे बड़ी समस्या है।
मध्य प्रदेश बीड़ी उद्योग(bidi industry) संघ से जुड़े अनिरुद्ध पिंपलापुरे के अनुसार बीड़ी एक प्राकृतिक, श्रम-आधारित, असंगठित, ग्रामीण-कुटीर उद्योग है जिसका कार्बन-उत्सर्जन और कार्बन कण बहुत कम हैं।
इसके उत्पाद प्राकृतिक वस्तुओं से बनते हैं और फेंके जाने पर प्रकृति में विलीन हो जाते हैं। यह सिगरेट या अन्य तम्बाकू उत्पादों और उद्योगों से बहुत भिन्न है।
उनके अनुसार तम्बाकू-उत्पाद की कर सम्बन्धी समिति को बीड़ी पर कर बढ़ाने की अपेक्षा कर को वर्तमान दरों पर रखते हुए कर की चोरी रोकना ज़्यादा ज़रूरी है।
बीड़ी जंगलों में चोरी के पत्ते और सस्ती या चुराई हुई तम्बाकू से बिना बिजली या पानी के आसानी से निर्मित हो जाती है। ऐसे कर-चोर और नक्काल इस बीड़ी को नकद में बेचकर चैन से अपना धंधा करते हैं। ये हर प्रकार के कर बचा ले जाते हैं।
वर्तमान स्थिति यह है कि कर अदा करने वाले नियमबद्ध निर्माता बाज़ार में इन कर-चोरों और नक्कालों से मुक़ाबला नहीं कर पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में जीएसटी या सेस या एक्साइज़ की दर बढ़ाने पर कर चोरों को अधिक लाभ मिलेगा और कर चुकाने वाले निर्माताओं को अपना धंधा बंद करना पड़ेगा, जिससे टोटल कर कलेक्शन बढ़ने की जगह घट जाएगा।
अतः सरकारों को बीड़ी या सम्बंधित वस्तुओं पर कर की दरें बढ़ाने की अपेक्षा अपंजीकृत निर्माताओं को पंजीकृत कर इनसे कर भरवाने पर अधिक ज़ोर देना चाहिए। लेकिन, आज ऐसे छोटे उद्योगपतियों की बात कौन सुनता है!
स्वदेशी उद्योगों की बात
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 अक्टूबर को देश को 100 करोड़ वैक्सीन डोज़ लगाने के उपलक्ष पर बधाई देते हुए वोकल फ़ोर लोकल, मेड इन इंडिया और छोटे दुकानदारों और स्वदेशी उद्योगों को प्रोत्साहन की बात की थी।
पर फिर भी ऐसा क्यों लग रहा है की भारत के मध्य प्रदेश में जन्मा लगभग 250 साल पुराना यह बीड़ी उद्योग अब अपना आख़री कश ले रहा है!
पिछले 50 सालों से मजदूरों के हितों की लड़ाई लड़ रहे नेता अजित कुमार जैन कहते है कि केंद्र ने जो कमेटी बनाई है उसकी कभी मांग ही नही हुई। सिर्फ टेक्स बढाकर खजाना भरना है।
देश मे करोड़ों लोग इस कारोबार से जुड़े है। इनके हितों को नजर अंदाज करके एक तरफा कमेटी बनाई गई है। जिसमें मजदूर संघ, बीड़ी निर्माता(bidi industry0 और संग्राहक तबके से कोई शामिल नहीं है। अजित जैन के अनुसार पिछले 50 सालों से तम्बाकू के खिलाफ एक लॉबी काम कर रही है।
देश में गांजा, अफीम शराब को छूट मिल रही है। वही खेती के बाद सबसे ज्यादा लोगो को आत्मनिर्भर बनाने वाला बीड़ी का धंधा बन्द होने की कगात पर है।
कोरोना काल के बाद इसे राहत देने की बजाय टेक्स का शिकंजा बढ़ रहा है। बीड़ी(bidi industry )के खिलाफ शसक्त लॉबी काम कर रही है। ये कमेटी बीड़ी के हितों को नजर अंदाज करके बनाई जा रही है।