देश के क़ानूनी फंदे से बचाव के लिए परदेस में पुकार-रुदन

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देश के क़ानूनी फंदे से बचाव के लिए परदेस में पुकार-रुदन

राजीव गाँधी की 1985 की अमेरिका यात्रा के दौरान चुनिंदा पत्रकारों की टीम में मैं भी शामिल था | तब वाशिंगटन प्रेस क्लब में उनकी चर्चा को पसंद किया गया , लेकिन उन्होंने भारत या अमेरिका में सक्रिय इंदिरा और कांग्रेस विरोधी लोगों पर कोई टिप्पणी नहीं की थी | जबकि निक्सन से लेकर तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन के प्रशासन से न केवल इंदिरा गाँधी और उनके वरिष्ठतम नेता डॉ. शंकर दयाल शर्मा और कांग्रेस पार्टी से बहुत नाराज थे और भारत में अस्थिरता लाने के लिए सक्रिय संगठनों को अमेरिकी एजेंसियों से सहयोग के आरोप तक लगा रहे थे | लेकिन आज स्थिति बदल गई है |

राहुल गाँधी अमेरिका में जाकर भारत में लोकतंत्र को खतरे , आर्थिक अपराधों के लिए कार्यरत सरकारी जांच एजेंसियों की कार्रवाई से परेशानी , अभिव्यक्ति की आज़ादी के संकट आदि के गंभीर आरोप का दुखड़ा सुना रहे हैं | सबसे दिलचस्प बात यह है कि राजीव गाँधी राज से उदार आर्थिक नीतियों की शुरुआत के कारण अब बड़े पूंजीपतियों की कंपनियों के विस्तार को अनुचित बता रहे हैं | राहुल गाँधी के ख़ास सलाहकारों द्वारा आमंत्रित लोगों के कार्यक्रमों में खालिस्तानी नारे कैसे लग गए ?

 कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नेता को देश विदेश में घूमने का पूरा अधिकार है | एक जवाब में  वह लोकतंत्र पर खतरे की बात कर रहे हैं , वहीं दूसरे जवाब में कन्याकुमारी से कश्मीर तक सफल पद यात्रा , हिमाचल और कर्नाटक विधान सभाओं के हाल के चुनाव में कांग्रेस की भारी सफलता का दावा कर रहे हैं | दुनिया इस  किस खतरे का प्रमाण  समझेगी ? संसद का सत्र हो रहे हैं , नए भव्य संसद भवन के उद्घाटन की अमेरिका , ब्रिटेन ही नहीं चीन तक प्रशंसा कर रहा है | हाँ भ्रष्टाचार या आर्थिक अपराधों के गंभीर मामलों पर सी बी आई , ई डी ( प्रवर्तन निदेशालय ) , इंकम टैक्स विभाग आदि जांच पड़ताल करती है और कुछ नेताओं  उनके साथियों – शराब या विदेशी हथियारों के दलालों को अदालत जेल में रखती है , तो राहुल गाँधी के अलावा प्रतिपक्ष के अन्य नेता अरविन्द केजरीवाल , लालू – तेजस्वी यादव , स्टालिन , के चंद्रशेखर राव आदि सरकार के पूर्वाग्रह के आरोप लगाकर बेहद नाराज हो रहे हैं , सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं | लेकिन मनी लॉन्ड्रिंग के कई मामलों में अमेरिकी , ब्रिटिश  या अन्य संपन्न देशों की सरकारें तथा एजेंसिया भारत का सहयोग कर रही हैं | अमेरिका में जांच एजेंसियां डोनाल्ड ट्रम्प की या ब्रिटेन में बोरिस जॉनसन तक की जांच पड़ताल कर रहे हैं | जापान सहित कई देशों के पूर्व प्रधान मंत्री या राष्ट्रपति गंभीर आर्थिक अपराधों में दण्डित होकर जेल भेजे गए हैं |

 इसमें कोई शक नहीं कि भारत में आर्थिक अपराधों के नए पुराने मामलों की संख्या बढ़ती गई है | सरकारी जांच एजेंसियों और अदालती कार्रवाई वर्षों तक चलती है | कुछ मामलों में देश विदेश से प्रमाण जुटाने में समय लगता है | बोफोर्स तोप खरीदी में दलाली का मामला वर्षों तक चला |  पिछले दिनों सीबीआई ने रोल्स रॉयस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड से हॉक विमान की खरीद के मामले में भारत सरकार को धोखा देने के आरोप में ब्रिटिश एयरोस्पेस कंपनी रॉल्स रॉयस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, रोल्स रॉयस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर टिम जोन्स  और हथियरों  के सौदागर  सुधीर चौधरी, भानु चौधरी और अन्य अज्ञात सरकारी नेता या अधिकारियों   के खिलाफ भी केस दर्ज कराया गया है।इस मामले में ब्रिटेन की जांच एजेंसियों ने ही जांच के बाद अपराध के प्रमाणों के साथ पुष्टि की है | यह कार्रवाई ब्रिटेन की मेसर्स रोल्स रॉयस टर्बोमेका लिमिटेड और उसके सहयोगी समूह की अन्य कंपनियों से किए गए लेनदेन के सिलिसले में की गई है। सीबीआई के अनुसार  तत्कालीन पब्लिक सर्वेंट ( नेता – अधिकारी ) ने आधिकारिक पदों का दुरुपयोग किया और 734.21 मिलियन ब्रिटिश पाउंड में कुल 24  हॉक 115 एडवांस जेट ट्रेनर (एजेटी) विमानों को मंजूरी दी और खरीदारी की। इसके अलावा उक्त निर्माता की ओर से आपूर्ति की गई सामग्री के लिए मैसर्स हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की ओर से बनाए जाने वाले 42 अतिरिक्त विमानों की सामग्री  के लिए 308.247 मिलियन डॉलर का भुगतान किया गया। विनिर्माण लाइसेंस फीस के लिए रूप में भी 7.5 मिलियन डॉलर के भुगतान की मंजूरी दी गई।  उक्त निर्माता और उसके अधिकारियों की ओर से बिचौलियों को भारी रिश्वत, कमीशन और लाइसेंस शुल्क का भुगतान किया गया।मुख्य आरोपी सुधीर चौधरी कांग्रेस राज के दौरान अपने संपर्कों के बल पर वी आई पी की तरह सत्ता के गलियारों में प्रभावशाली था | उस पर रुस और इसराइल से रक्षा खरीदी में दलाली लेने देने के आरोप भी रहे हैं | अब वह भारत से भागकर विदेश में बैठा है |

यह पूरा प्रकरण 2003 से 2012 के बीच का है और 2004 से 2013 तक कांग्रेस की सरकार केंद्र में थी | स्वाभाविक है कि जांच के दायरे में तत्कालीन नेता और अधिकारी आये हैं | अब ब्रिटिश जांच एजेंसी ने तो राजनीतिक पूर्वाग्रह से काम नहीं किया और बाद में भी उसका सहयोग मिलेगा |इससे पहले अगस्ता वेस्टलैंड वी आई पी हेलीकॉप्टर खरीद में दलाली का मामला भी अब तक चल रहा है | यह  प्रकरण  भी इटालियन अदालत में चल चुका है | इसी तरह दिल्ली या छत्तीसगढ़ के शराब घोटालों में करोड़ों रुपयों की गड़बड़ी के आरोपों की जांच हो रही है , पर्याप्त सबूत होने पर ही अदालत ने किसीको जेल में रखने या जमानत नहीं देने के निर्णय किए हैं |  राहुल गाँधी परिवार पर नेशनल हेराल्ड या राजस्थान में जमीन खरीदी घोटाले के प्रकरण अदालतों में चल रहे हैं |   असल में राजनीति में पहले कई सत्ताधारी नेता कुछ उदारता से विपक्ष के मामलों में पर्दे के पीछे समझौते करके जांच को धीमी कर देते या बचाव में मदद कर देते थे , ताकि संसद के कामकाज में प्रतिपक्ष का सहयोग अधिक मिल सके | मोदी सरकार को संसद में समुचित बहुमत है और वह भ्रष्टाचार और घोटालों – काली कमाई को उजागर करने के मुद्दे पर सत्ता में आई | इसलिए अब किसी मामले में उदारता नहीं दिखाई जा रही | राहुल गाँधी की कांग्रेस पार्टी कर्नाटक में भी इसे प्रमुख मुद्दा बनाई , तो वह भी जांच और कार्रवाई कर सकती है | लेकिन इस तरह की जांच और भारतीय क़ानूनी कार्रवाई को परदेस में उठाना क्या उचित कहा जा सकता है ?

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।