अपनी लकीर खींच रहे दादाभाई, सोच यही कि सदन की गरिमा और प्रतिष्ठा पर आंच न आने पाए…

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अपनी लकीर खींच रहे दादाभाई, सोच यही कि सदन की गरिमा और प्रतिष्ठा पर आंच न आने पाए...
“दादा भाई” के संबोधन से लोकप्रिय विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम ने एक साल का सफर 22 फरवरी को तय कर लिया है। अपनी स्पष्ट सोच, अपनी समृद्ध विचारधारा के धनी दादा भाई अपनी नई लकीर खींच रहे हैं। किसी से कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है कि लकीर बड़ी हो जाए। यही मानना है कि जो लकीर खिंचे उसका आकलन ईमानदारी से हो। भरोसा यही है कि समस्याओं का समाधान पूरे समर्पण और नेक नीयत के साथ करेंगे। और एक साल के कार्यकाल में यह साबित करने की पूरी कोशिश भी की है और उसमें सफलता भी पाई है।
बात चाहे महिला विधायकों के सम्मान की हो, चाहे पहली बार के विधायकों को पर्याप्त अवसर देने की हो, पूर्व विधायकों की हो, चाहे अधिकारियों-कर्मचारियों की बात सुनने और सहूलियतें मुहैया कराने की हो…दादा भाई ने कोई कसर नहीं छोड़ी है और असर भी सामने है। तो बात चाहे संसदीय परंपराओं की हो, लुप्त हो चुके सम्मान और पुरस्कारों की हो या फिर पक्ष-विपक्ष में संतुलन बनाने की हो, दादाभाई के विधानसभा सदस्य के रूप में लंबे अनुभव का निचोड़ सामने आ रहा है। यहां तक कि समय-समय पर मीडिया को तवज्जो देने में भी दादाभाई ने कोई कंजूसी नहीं बरती है। दादाभाई की यह सोच विधानसभा अध्यक्ष के रूप में उनके व्यक्तित्व की झलक दिखाती है कि कोशिश यही है कि विधानसभा की गरिमा और प्रतिष्ठा पर कोई आंच न आने पाए। शायद ऐसा दिन दादाभाई के पद पर रहते खुद ही कोसों दूर रहेगा, यह भरोसा किया जा सकता है।
विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम
एक साल की उपलब्धियां यही हैं कि संसदीय परंपराओं का पालन करने और कराने की कोशिश पूर्ण समर्पण, सेवा और सादगी के साथ की है, जिसमें सफलता भी मिली है। सदन एवं सदस्यों से संबंधित विभिन्न विषयों-मुद्दों पर अध्यक्ष को परामर्श देने संबंधी समिति बनाकर आश्वस्त किया है कि सदन और सदस्य दोनों की गरिमा का पूरा ख्याल है। विशेषाधिकार समिति से अलग सदस्यों के प्रोटोकॉल का पालन हो, समिति बनाकर यह चिंता भी की है।पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण समितियां बनाकर सभी वर्गों का ध्यान रखा है।
शिष्टाचार एवं सम्मेलन अनुरक्षण समिति संबंधी चार समितियों का पहली बार गठन किया गया। महिला दिवस पर झूमा सोलंकी ने कार्यवाही का संचालन किया, तो सवाल भी महिलाओं ने ही पूछे। 1956 से लेकर 2021 तक असंसदीय माने गए 1161 शब्द एवं वाक्यों का संकलन तैयार कर प्रकाशित किया गया ताकि सदस्य इनका प्रयोग सदन में न करें। प्रश्नकाल में अधिक से अधिक प्रश्नों पर चर्चा हो, यह कोशिश रंग ला रही है। विधायकों की ब्रीफिंग करने की व्यवस्था, पहली बार के 82 सदस्यों को एक दिन प्रश्नकाल में पूरा स्थान देने जैसे प्रयोग सराहनीय हैं।
तो 2008 से बंद पड़े विधान सभा संसदीय पुरस्कार फिर शुरू होंगे, इनमें श्रेष्ठ मंत्री, विधायकों के साथ ही विधान सभा के श्रेष्ठ अधिकारी एवं कर्मचारियों का चयन किया जाएगा। वहीं प्रिंट मीडिया में प्रदेश की प्रथम महिला नेता प्रतिपक्ष जमुना देवी की स्मृति में संसदीय पत्रकारिता पुरस्कार एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया में वरिष्ठ पत्रकार मानिकचंद्र बाजपेयी की स्मृति में देने के लिए समिति ने काम शुरू कर दिया है।विधायक पुरस्कार पूर्व मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा की स्मृति में तथा मंत्री पुरस्कार प्रथम मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल की स्मृति में दिया जाएगा। तो आमजन की समस्याओं का अभ्यावेदन स्वीकार कर निराकरण के प्रयास हो रहे हैं। यह बानगी है, सदन की गरिमा के साथ सबके सम्मान की फिक्र की।
राज्य के बाहर मध्यप्रदेश विधान सभा का प्रतिनिधित्व कर खुलकर अपनी राय रखी। 82वां अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन शिमला में राय दी कि बिना बहस के पास होने पर कानूनों के विषय पर विचार होना चाहिये। विशेषकर दांडिक अपराध के लिए तय होने वाले कानूनों पर सदन में बहस अत्यन्त आवश्यक है। दादाभाई के सुझाव को मानते हुए लोकसभा स्पीकर ने महिला डॉ.नीमाबेन को सभापति नियुक्त किया। लोकसभा में लोक लेखा समिति के शताब्दी वर्ष राष्ट्रीय सम्मेलन में वर्ष 2015 में लोक सभा में सम्मेलन में आए सुझावों को लागू करने और समिति को सशक्त बनाने का सुझाव दिया। यानि सदन के बाहर भी अपनी सोच का लोहा मनवाया।तो पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन मध्यप्रदेश में कराने का प्रस्ताव भी दिया।
 विधान सभा के तृतीय-चतुर्थ श्रेणी के 44 कर्मचारियों को पारी से बाहर आवास मुख्यमंत्री से आवंटित कराकर दिए। सभी अधिकारियों-कर्मचारियों की समस्याओं पर अभ्यावेदन समिति का गठन किया गया, समाधान की प्रक्रिया जारी है। उप सचिव स्तर के समस्त अधिकारियों को पहली बार राज्य शासन, मंत्रालय के उप सचिव के समान वाहन की सुविधा दी गई है। विधान सभा अध्यक्ष द्वारा पहली बार नई परम्परा शुरु कर अतिंम छोर के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के साथ एक अतिरिक्त कक्ष में बैठक कर न केवल समस्याएं सुनी बल्कि निराकरण का प्रयास किया।
तो विधायकों के साथ ही पूर्व विधायकों की गरिमा और सम्मान के लिए कदम उठाए हैं। पूर्व विधायकों का सम्मेलन भी प्रस्तावित है। तो विंध्य के विकास पर खास नजर है। और अपनी विधानसभा में जन संवाद कर समस्याओं का निराकरण हेतु “साइकिल यात्रा” निकालकर सहजता की मिसाल पेश की है। खेतों में काम करते किसानों की समस्याओं का त्वरित निदान किया तो गरीबों-मजदूरों और अंतिम छोर के जरूरतमंद व्यक्ति की बात सुनी, समाधान किया। कम्युनिस्ट विचारधारा से राजनीति में कदम रखने वाले दादाभाई भाजपा का दामन थामकर अंत्योदय की विचारधारा पर लगातार आगे बढ़े जा रहे हैं। दादाभाई आपकी यात्रा यूं ही जारी रहे, सदन की गरिमा और प्रतिष्ठा नई ऊंचाईयां छुए और मध्यप्रदेश विधानसभा की उत्कृष्टता पर प्रदेश और पूरा देश गर्व करे।