रविवारीय गपशप: ‘डोंट बिकम गामा, इन द लैंड ऑफ लामा’

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रविवारीय गपशप: ‘डोंट बिकम गामा, इन द लैंड ऑफ लामा’

    हर मैदानी इंसान की तरह, पहाड़ मुझे हमेशा से लुभाते रहे हैं। बर्फ से ढकी शफ़्फ़ाक़ चोटियों को निहारने का जो सुख है, वो अनिर्वचनीय है। इत्तिफ़ाक़ से मेरी श्रीमतीजी की राय मुझसे विपरीत है। पहाड़ों में चढ़ने पर घुमावदार सड़कों से उनका सर घूमने लगता है और घाटी पर सड़क के साथ चलती सर्पीली नदी के सौंदर्य पर जब मैं मुग्ध होकर झूमता हूँ। श्रीमतीजी सर को चकराने से बचाने के लिये आँख बंद कर कार की सीट से सर टिका कर नींद लेने का उपक्रम करती हैं। इन्ही सब कारणों से हम कभी उत्तराखण्ड की चारधाम यात्रा नहीं कर पाये और न कभी मानसरोवर की यात्रा करने का विचार बना पाये।

अलबत्ता अब चार धाम और मानसरोवर यात्रा के आकांक्षीयों के लिए ख़ुशख़बरी है कि दोनों जगह जाने के लिए हेलीकाप्टर कि सेवाएँ हो गई है। लेकिन, जो मज़ा सड़क यात्रा का है, यानी चलते बर्फीली चोटियों और सर्पीली सड़क के सौंदर्य को निहारने का वो वायु यात्रा में कहाँ! मानसरोवर की यात्रा करने के इच्छुक सज्जन हमारे साथी ओमप्रकाश श्रीवास्तव की लिखी ‘शिवांश से शिव तक’ अवश्य पढ़ें। मानसरोवर यात्रियों को यात्रा की आवश्यक तैयारियों के साथ यात्रा का महत्व और उसके आध्यात्मिक पहलू का ज्ञान इस पुस्तक के पठन से सहज उपलब्ध हो जाएगा।

मानसरोवर की इस यात्रा के लिए भारत सरकार की वेबसाइट में आपको अपना रजिस्ट्रेशन करना पड़ता है।  इसके बाद एक दल के रूप में चयनित हुए लोग यात्रा आरंभ करते हैं। मेरे एक और साथी श्री एके सिंह ने भी जो मेरी ही तरह रिटायर हैं भारत सरकार के सौजन्य से होने वाली इस यात्रा के द्वारा मानसरोवर की यात्रा की है। सिंह साहब ने इस यात्रा से जुड़ा एक मज़ेदार वाक़या सुनाया जो आप सबकी नज़्र कर रहा हूँ। सिंह साहब ने बताया की इस दल का एक सबसे बड़ा फ़ायदा ये रहता है कि चिकित्सा सुविधाओं से लैस डॉक्टर दल के साथ ही यात्रा करते हैं।

मेरे हिसाब से ये एक बड़ी राहत है। क्योंकि, उम्र के इस पड़ाव पर अनजान जगह जाने में यदि यह सुविधा मुहैया होने की गारंटी हो तो घर वाले हमें जाने देने में बेफिक्र हो जाते हैं। सिंह साहब ने बताया कि उनके दल ने जब यात्रा आरंभ की तो उसमें एक सज्जन योग के बड़े शौक़ीन थे। तरह तरह के आसान और व्यायाम दल के लोगों को बताते और दूसरों का मज़ाक़ भी बनाते कि आप लोगों को कुछ नहीं आता। ये तो हम सब जानते ही हैं कि पहाड़ों पर जाने में ऑक्सीजन की उपलब्धता कम हो जाता करती है। ग्रुप के कैप्टन ने डॉक्टर के साथ इसके लिए एहतियात बरतने का लेक्चर एक दिन पहले ही सबको दिया था, पर दूसरे दिन सुबह जब सब उठे तो देखा वही सज्जन ऊपर एक चट्टान में बैठे हैं।

भीड़ में दर्शकों को देख वे और उत्साहित हो गए और इधर उधर हाथ पाँव हिलाने के साथ साथ साँसों को खींचने छोड़ने की प्रक्रिया में फ़ूँ फ़ाँ प्रारंभ कर दिया। सांस खींचने और छोड़ने के क्रम में ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधक बनी और देखते ही देखते वे सज्जन चट्टान से लुढ़ककर बेहोश हो गये। लोग दौड़े , उन्हें सम्भाला। चिकित्सक महोदय दौड़े दौड़े आए उन्हें कैंप के चिकित्सा कक्ष में ऐडमिट कर लिया और दूसरे दिन हालात ठीक होने पर पूर्ण स्वस्थ होने के लिए वापस भेज दिया। दूसरे दिन सुबह सभी यात्रियों को इकट्ठा किया गया और ग्रुप मैनेजर ने फिर से सभी को सावधानियाँ तफ़सील से बयान की और कहा कि मैदानी आदतों को यहाँ बिना परखे दोहराना ठीक नहीं इसके बाद एक आख़िरी सीख से मीटिंग बर्खास्त हुई कि ‘डोंट बिकम गामा, इन दी लैंड ऑफ़ लामा।’