The Great Betrayal: कंजर कथा

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The Great Betrayal: कंजर कथा

 

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के छल प्रपंच और दुष्टता से संसार भली भाँति परिचित है .एक महान सभ्यता का सर्वांग और समूल नाश का अपराध भूरे बन्दरों के माथे पर है .उन्हीं के मानसिक वंशजों ने शेष सभ्यता संस्कृति को छिन्न भिन्न करने का दायित्व उत्साह पूर्वक उठाया हुआ है .ब्राह्मणों को पाखण्डी और क्षत्रियों को अत्याचारी इतनी बार और इतने तरीक़ों से चित्रित किया गया है कि पाठ्य पुस्तकों से फ़िल्मों तक ही नहीं हमारे अपने दिल दिमाग़ों तक ये चित्र ही अंकित सत्य हो गये हैं.वैश्यों के अर्थ प्रबंधन कौशल की कोई सराहना किसी फ़िल्म या साहित्य में देखी हो तो बताइये.भारतीय समाज की सबसे उद्यमी ,साहसी ,जुझारू जातियों को जरायम पेशा बता दिया गया .नल के साधारण पाइप से पिस्तौल बना देने वाले सिकलीगर ब्रिटिश काल से अब तक पुलिस कार्यवाही के निशाने पर रहे हैं.उनके कौशल को राष्ट्र हित में उपयोग करने का विचार न कल किसी को आया न आज .

विमुक्त और घुमंतू जातियों के कल्याण की बातें उस धरातल पर नहीं उतरीं जिनका वादा संविधान सभा ने किया था .

हमारी व्यवस्था और समाज को कंजर,पारदी,सिकलीगर जैसे बंधुओं के प्रति और अधिक संवेदना पूर्ण होने की आवश्यकता है .वे इतने ही अच्छे बुरे हैं जितना कि हम .

 

ये क़िस्सा एक विश्वास का है जो कंजरों ने मुझ पर और व्यवस्था पर किया था .हुआ यों था कि २०१५ की मई की तपती कड़क धूप में जब मप्र शासन ने मुझे कलेक्टर बनाकर शाजापुर भेजा तब ज़िले में आपराधिक वारदातों विशेषकर चोरी से लोग परेशान थे .पुराने एसपी जा चुके थे नये को कुछ और हफ़्ते आना नहीं था .मैंने ज़िला दंडाधिकारी के रूप में जोखिम मोल लिया और सीधे कंजर डेरों पर चला गया .जाने से पहले उनसे संवाद क़ायम कर सदिच्छा का विश्वास दिलाया .उनके गाँव में लगी चौपाल में बैठकर उनकी पीड़ा सुनी समझी .उनको निःशुल्क बीज ,कृषि यंत्र ,ऋण सुविधा देकर खेती में सहायता दी .उनके बच्चों को तुरत फ़ुरत विद्यालयों में प्रवेश ,पाठ्य सामग्री और छात्र वृत्ति स्वीकृत हुई .

वे अपराध छोड़कर मुख्य धारा में आना चाहते थे .उन्होंने हम पर विश्वास किया और आधा दर्जन फ़रार युवा हमें सौंप दिये जिन्हें पुलिस वर्षों से ढूढ़ रही थी .हमारे बहादुर और कर्मठ प्रभारी एसपी श्री महेन्द्र तारनेकर ने दिल से इस पुनर्वास अभियान में योगदान दिया .परिणाम चमत्कारी थे. ज़िले में चोरी और छीना झपटी एक दम से घट गई .लोग राहत की साँस ले रहे थे .कंजर समाज के पढ़े लिखे युवा मेरे सीधे संपर्क में थे .श्री महेश हाड़ा और उनके शिक्षक पिता अपनी कंजर जाति के माथे से अपराध का कलंक मिटाने प्राण पण से लगे हुए थे .मीडिया की सुर्ख़ियों में कंजरों के नये संकल्प शिक्षा और कृषि खूब जगह पा रहे थे .

कुछ महीनों बाद पता नहीं क्या हुआ ? कंजर दोबारा अपराध की अँधेरी गलियों में धकेल दिये गये .वसूली का दमन चक्र दो गुनी रफ़्तार से चलने लगा .व्यवस्था में व्याप्त लालच ने कुछ महीनों में ही संयम तोड़ दिया .विश्वास को सहेजने और निभाने की मेरी कोशिश विफल रही .एक सुंदर स्वप्न टूट गया .कंजर फिर मकड़जाल में थे .वारदातें दुबारा बढ़ गई थीं .

भूरे बंदर फिर सफल हो गये थे,भले इस बार उनका रंग गोरा नहीं था .