महंगाई इस बजट से नहीं, चुनाव के बाद बढ़ेगी 

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इस बार  भारत में बजट के बाद महंगाई तेजी से बढ़ेगी, यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता। महंगाई बढ़ेगी मार्च के महीने से। आगामी 7 मार्च को पांच राज्यों में होनेवाले चुनाव के अंतिम चरण का मतदान हो जायेगा और फिर पेट्रोल तथा डीज़ल की कीमतों में आग लगना शुरू होगी। कच्चे तेल की कीमतें अभी उच्चतम शिखर पर हैं और रूस तथा यूक्रेन के बीच संबंधों को लेकर उसमें और भी तेजी हो सकती है।

एक फरवरी को देश का आम बजट प्रस्तुत होने वाला है और सरकार के सामने अनेक तरह की चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जो बजट पेश करेंगी, वह कई मामले में चुनौती भरा होगा। 2019 में वित्त मंत्री बनने के बाद यह उनका चौथा बजट होगा। बजट से लोगों को कई सारी आशाएं हैं। लोगों को लगता है कि इनकम टैक्स में छूट मिल जाएगी, रोजगार में बढ़ोतरी वाली योजनाएं सामने आएंगी। लघु और सीमांत उद्योगों को भी सरकार से अनेक उम्मीद है। बैंकिंग सेक्टर सरकार की तरफ ताक रहा है।

किसान अनेक तरह की उम्मीद लगाए बैठे हैं। पांच राज्यों के होने वाले चुनाव भी सरकार के सामने कई चुनौतियां पेश कर रहे हैं, क्योंकि पांच राज्यों के चुनाव के कारण भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमत करीब डेढ़ महीने से नहीं बढ़ी है। सरकार ने पांच राज्यों में चुनाव को देखते हुए पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों को किसी तरह रोक कर रखा है।  7 मार्च को मतदान का अंतिम चरण पूर्ण होते ही पेट्रोल व डीजल की कीमतें बेलगाम होकर एक बार फिर तेजी से बढ़ेगी। अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल के दाम सर्वोच्च शिखर पर हैं। कच्चे तेल के दाम बढ़ गए हैं इसलिए पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ाना भी सरकार की मजबूरी है। आगामी कुछ महीनों में  पेट्रोल और डीजल की कीमत 150 रुपये प्रति लीटर तक हो जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए।

कोरोना काल में जहां आम आदमी की आमदनी में कमी हुई, वहीं महंगाई इस तरह बढ़ती जा रही है कि लोगों की बचत खत्म हो गई।  लाखों लोगों ने अपनी जरूरतों के लिए अपने घरों में रखे खानदानी सोने के आभूषणों को बेचना शुरू किया।  टाइम्स ऑफ इंडिया की  रिपोर्ट के अनुसार अकेले गुजरात में ही लोगों ने 28 टन सोना लोगों ने अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए बेच दिया ताकि खाने-पीने और जरूरी चीजों का जुगाड़ किया जा सके। बोलचाल में दस ग्राम सोने को एक तोला कहा जाता है।  इसका अर्थ यह निकला कि केवल गुजरात में ही लोगों ने 28 लाख तोला सोना बेच दिया।  इंडिया बुलियन एंड ज्वेलर्स एसोसिएशन के डायरेक्टर हरीश आचार्य का कहना है कि कोरोना के समय देश में निम्न और निम्न मध्यमवर्गीय लोगों को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

भारतीय अर्थव्यवस्था का विरोधाभास यही है कि कोरोना काल में जब लोग अपनी आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे थे, तब भारत में एक ऐसा वर्ग था जिसने सोने की जमकर खरीदारी की। 2021-22 के पहले 9 महीनों में भारत में रिकॉर्ड सोना आयात किया।  यह सोना 37.98 अरब डॉलर का था।  2021-22 में गुड़गांव में डीएलएफ के सुपर लक्ज़री आवास की बिक्री जुलाई से सितंबर के बीच के तीन महीनों में 1,037 करोड़ रुपये  की रही। मेहंदी और लग्जरी गाड़ियां खूब बिकीं। कोरोना के बावजूद विलासितापूर्ण अपार्टमेंट्स की बिक्री भी बहुत हुई।

जर्मन कार कंपनी बीएमडब्ल्यू ने 2021 में भारत में 35 प्रतिशत ग्रोथ हासिल की। बीएमडब्ल्यू ग्रुप में ही 8876 महंगी कारें बेची। लाखों रुपए की हाई एंड मोटरसाइकिल भी 5,191 बिकीं।  ऑडी कंपनी ने 3293 लक्ज़री कारें बेची, जबकि 2020 में उसकी केवल 1639 कारें ही बिकी थी। मर्सडीज़ बेंज ने 2021 के शुरू के 9 महीनों में ही उतनी कारें बेच दीं,  जितनी  उसने 2020 के पूरे वर्ष में नहीं बेचीं थीं। डीएलएफ ने 40,000 रुपये स्क्वायर फीट के भाव से 34 विलासी आवास बेचने में  कामयाबी पाई।  सीधा-सीधा यही कहा जा सकता है कि पूरे वर्ष के दौरान लग्जरी सामानों की बिक्री खूब हुई।  निम्न और निम्न मध्यवर्गीय लोगों ने अपने घर का सोना बेचा और फार्मास्यूटिकल कंपनियों, आईटी कंपनियों से जुड़े लोगों और डॉक्टरों ने जमकर खरीदारी की।

इस बार वित्त मंत्री के लिए यह राहत की बात है कि भारत में जीएसटी का कलेक्शन लगातार बढ़ रहा है, लेकिन आम बजट में अर्थव्यवस्था को गति देने वाली कोशिशें क्या होगी, इसको लेकर अभी भी संशय है। लोगों को रोजगार कैसे मिलेगा? लोगों की आय कैसे बढ़ेगी?  लोक कल्याणकारी योजनाओं में लोगों को लाभ कैसे मिलेगा ?  आमदनी में किस तरह वृद्धि होगी? राजस्व घाटा नियंत्रण में कैसे रहेगा ? अभी भारत में राजस्व घाटा 6. 5 प्रतिशत है और 2025 तक इसे 4.5 प्रतिशत तक लाने की कोशिश सरकार कर रही है। असलियत यह है कि केन्द्र  और राज्य सरकार का मिलाजुला राजस्व घाटा औसतन 12 प्रतिशत  तक जा पहुंचा है। आप अंदाज लगा सकते हैं कि 12 प्रतिशत के इस राजस्व घाटे को कम करते-करते 2025 तक साढ़े चार प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य कितना कठिन है।

कोरोना काल में देश में कारोबार की स्थिति बहुत खराब हो गई। छोटे और लघु उद्योगों के सामने बहुत चुनौतियां खड़ी हुई और देश में बेरोजगारी बहुत बढ़ गई। सरकार के पास राहत की बात यह रही कि पिछले साल सरकार को विभिन्न योजनाओं पर जो 35.8 लाख करोड़  रुपये  खर्च करने थे, सरकार उसका 60 प्रतिशत हिस्सा भी खर्च नहीं कर सकी।  दूसरी तरफ सरकार को डायरेक्ट टैक्स की रिकवरी काफी अच्छी हुई है। सरकार को डायरेक्ट टैक्स से 13.5 लाख करोड़ रुपये की उम्मीद है जो कि अनुमान से 30 प्रतिशत ज्यादा रहेगा। यानी सरकार को सीधे टैक्स से 30 प्रतिशत कमाई ज़्यादा हुई और खर्च केवल 60 प्रतिशत ही किया गया।

वित्त मंत्री के सामने अगर कोई सबसे बड़ी चुनौती है तो वह खाद्य सब्सिडी है, क्योंकि खाद्य सब्सिडी पर वर्ष 2022-23 में 4 लाख करोड़ रुपये खर्च होने की उम्मीद है।  यह राशि सरकार को खर्च करनी ही है। इसको पूरा करने के लिए सरकार अपने राजकोषीय व्यय को वित्त पोषित करती है।  यह राशि भारत के सकल उत्पाद के जीडीपी के 3 प्रतिशत तक सीमित है।  भारत सरकार पर 15 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है यह कर्ज हमारी जीडीपी का 6. 8 प्रतिशत है। हमारी सरकार की कमाई का एक बड़ा हिस्सा ब्याज, तनख्वाह और पेंशन पर चला  जाता है। इन खर्चों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। 2021-22 में ही 14 लाख करोड़ रुपये  इन पर खर्च हो गए।

भारत में 81 करोड़ 34 लाख लोगों को खाद्य सब्सिडी दी जाती है।  अंत्योदय अन्न योजना औरप्रॉयरिटी हाउसहोल्ड के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत 3 रुपये किलो चावल दिए जाते हैं और गेहूं 2 रुपये प्रति किलो। मोटे अनाज सब्सिडी देकर केवल एक रुपये  किलो उपलब्ध कराया जाता है। भारत में कुल दो करोड़ 48 लाख परिवार ऐसे हैं जो अंत्योदय अन्न योजना के तहत अनाज पाते हैं।

इन परिवारों को 35 किलो अनाज हर महीने दिया जाता है।  इसके अलावा 72 करोड़ 43  लाख परिवार ऐसे हैं जो प्रॉयरिटी हाउसहोल्ड यानी पीएचएच योजना के तहत खाद्यान्न पाते हैं।  इन्हें हर महीने 5 किलो अनाज प्रति व्यक्ति दिया जाता है। कोविड-19 के दौरान राहत देने के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना शुरू की गई थी।  इस योजना में इन परिवारों के प्रत्येक सदस्य को 5 किलो गेहूं या चावल अतिरिक्त रूप से देना शुरू किया गया था, वह भी पूरी तरह मुफ्त। गेहूं और चावल की खरीद पर सरकार जो प्रोक्योरमेंट खर्च करती है, वह लगातार बढ़ता जा रहा है।

भारतीय खाद्य निगम मूल खरीद लागत से भी कम कीमत पर बाजार में चावल और गेहूं बेचता है।   2020-21 में गेहूं 2000 रुपये प्रति क्विंटल बेचा गया था।  आर्थिक लागत और फ़ूड कारपोरेशन की बाजार में बिक्री से होने वाली आय के बीच का फर्क भी सरकार को उपभोक्ता सब्सिडी के रूप में गिना जाता है।

सरकार का सब्सिडी बिल लगातार बढ़ता ही जा रहा है।  यह सरकार के लिए चिंता की बात है।  जैसे 2016-17 में खाद्य सब्सिडी का बिल 2 लाख 4,835 करोड़  रुपये  था जो अब लगातार बढ़ता जा रहा है। अनुमान है कि इस वित्तीय वर्ष में यह राशि लगभग दोगुनी तक हो सकती है। सरकार इस खाद्य सब्सिडी वाले कार्यक्रमों में बदलाव कर सकती है जैसे कि सरकार गरीबों को 5 रुपये किलो गेहूं दे और चावल 8 रुपये प्रति किलो के हिसाब से दे।  केवल इस तरीके से सरकार खाद्य सब्सिडी बिल लगभग 3 लाख 50 हजार करोड़ रुपये कम कर सकती है।

महामारी के काल में लोगों का ध्यान इस तरफ गया कि सरकार स्वास्थ्य और  शिक्षा के तरफ बहुत कम निवेश कर रही है। देश के लोगों की सेहत पर सरकार को ज्यादा खर्च करना चाहिए और शिक्षा पर भी सरकार को ज्यादा ध्यान देना चाहिए। जिससे पिछले आम बजट पर सरकार में शिक्षा पर केवल 93, 223 करोड़ रुपये  ही आवंटित किए थे। यह एक साल पहले के शिक्षा बजट से भी 6 प्रतिशत  कम था। जब अर्जुन सिंह शिक्षा मंत्री थे, तब भारत में शिक्षा का बजट 12 प्रतिशत  तक होता था।  लोगों को लगता है कि सरकार को इस बजट को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए और कम से कम 6 प्रतिशत  तो करना ही चाहिए। अमेरिका अपनी शिक्षा पर 17 प्रतिशत  तक राशि खर्च करता है। अमेरिका का बजट भारत के बजट से 9 गुना ज्यादा है। गत वर्ष सरकार ने पीएसयू में विनिवेश के जरिए पौने दो लाख करोड़ रुपये  इकट्ठा करने की आशा लगा रखी थी, लेकिन वह लक्ष्य अधूरा रहा। सरकार की विनिवेश नीति भी लगातार सवालों के घेरे में है।

लोग कहते हैं कि बजट आने के बाद पता चलता है कि क्या महंगा होगा और क्या सस्ता? लेकिन भारत के पांच राज्यों में चुनाव के नतीजे आने के बाद महंगाई बढ़ने की संभावना है।  पेट्रोल और डीजल में दाम बढ़ने का असर हर चीज पर पड़ेगा। जिसका भुगतान आम आदमी को भी करना ही होगा।