Indore : जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) ने भाजपा को उसके डीलिस्टिंग अभियान का जवाब दे दिया। शनिवार को प्रेस कांफ्रेंस में जनजाति सुरक्षा मंच द्वारा मध्यप्रदेश में चलाए जा रहे इस अभियान को असंवैधानिक बताया।
जयस के राष्ट्रीय प्रभारी लोकेश मुजाल्दा राज्य सरकार और जनजाति सुरक्षा मंच को लेकर जमकर बरसे। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के इशारों पर यह जनजाति सुरक्षा मंच आदिवासियों में भ्रम फैला रहा है। जबकि, भारत संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति में नोटिफाइड किया गया है।
उन्होंने कहा कि नोटिफिकेशन में स्पष्ट कहा गया है कि आदिवासी किसी भी धर्म से सम्बंधित नहीं है। यानी आदिवासी न ईसाई, न मुस्लिम, न हिन्दू और न सिख। इस पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय व अलग-अलग राज्यो के उच्च न्यायालय भी जजमेंट दे चुके है। आदिवासी लोग सभी धर्मों का सम्मान भी करते हैं, लेकिन आदिवासी समुदाय प्रकृति पूजक व धर्म पूजक हैं।
उन्होंने कहा कि आदिवासियों की अपनी रीति-रिवाज, रूढ़ि प्रथा व परम्परा है, इसलिए आदिवासी धार्मिक नहीं सांस्कृतिक समाज है। इसलिए ‘जयस’ का कहना है कि जो आदिवासी किसी भी धर्म में शामिल हुए हैं, उनकी डीलिस्टिंग नहीं प्रकृतिवाद और सांस्कृतिक रूप से घर वापसी होनी चाहिए। डीलिस्टिंग की जगह जनगणना कॉलम दिया जाना चाहिए। डीलिस्टिंग का भ्रम आदिवासियों की जनसंख्या कम करने के लिए फैलाया जा रहा है।
उन्होंने यह भी कहा कि दूसरी तरफ मध्यप्रदेश सरकार आदिवासियों के बेरोजगारी, महंगाई भुखमरी, पलायन स्वास्थ्य व मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के एक लाख पचास हजार खाली बैकलॉग पर्दो की भर्ती जैसे मुख्य मुद्दों से ध्यान भटकाने का कार्य कर रही है।
जहर घोलने का काम
भाजपा और संघ के लोग दिल्ली में बैठक करते है और कहते हैं कि ‘जयस’ और ‘भीम आर्मी’ समुदाय में जहर घोलने का काम कर रहे हैं। जबकि, ‘जयस’ आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के लिए नियम कानून व संविधान का पालन करते हुए आंदोलन करता है और न्याय की मांग करता है। ऐसे संगठनों को तो सम्मानित किया जाना चाहिए। लेकिन, इसके उलट राज्य सरकार और स्थानीय नेताओं के दबाव में आंदोलनकारियों पर मुकदमे दर्ज कर लिए जाते हैं।
उनका कहना था कि देश विधान से चलता है और संविधान करते हुए संवैधानिक तरीके से विधान में रहकर गरीब असहाय लोगों की आवाज को उठा रहा है।
गोमांस की शंका में हत्या
जयस पदाधिकारी ने सिवनी का मुद्दा उठाते हुए कहा कि गोमांस तस्करी की शंका में बजरंग दल और राम सेना के गुंडों ने दो गोंड आदिवासी बुजुर्गों की पीट पीटकर हत्या कर दी। लेकिन, मध्यप्रदेश सरकार का बुलडोजर अभी तक उन आरोपियों के घरों पर नहीं चला। प्रदेश के गृह मंत्री आरोपियों के बजरंग दल और राम सेना न जुड़े होने की क्लीन चिट दे दी। जबकि, एफआईआर में स्पष्ट बजरंग दल से जुड़े नाम आए हैं।
गाय को इंसान से ज्यादा महत्व
केंद्रीय राज्यमंत्री और भाजपा सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते भी आरोपियों के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। कांग्रेस भी आदिवासी वोट बैंक को रिझाने के लिए तीन दिन बाद मृतक परिवार के घर जाकर आदिवासी हितेषी होने का ढोंग कर रही है। इस देश और प्रदेश में इंसान से ज्यादा गाय को महत्व दिया जा रहा है। तथाकथित गुडे सरेआम हत्याएं कर रहे हैं।
जबकि, अनुसूचित क्षेत्र यानी आदिवासी क्षेत्र में गो रक्षा कानून जैसे सामान्य कानून को पहले राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और राष्ट्रीय जनजातीय मंत्रालय के समक्ष रखा जाना चाहिए। यह पूरे देश के आदिवासियों को प्रभावित करती है, जो असंवैधानिक है। इस सामान्य कानून को राष्ट्रपति और राज्यपाल को तत्काल संज्ञान में लेना चाहिए। साथ ही आदिवासी क्षेत्रों में धार्मिक उन्माद फैलाने वाले संगठनों को संविधान के अनुच्छेद 19 (5) के तहत अनुसूचित क्षेत्र में प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।