कुप्रचार के बावजूद भारत की लोकतान्त्रिक और शांति उपासक छवि पर लगी मुहर

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कुप्रचार के बावजूद भारत की लोकतान्त्रिक और शांति उपासक छवि पर लगी मुहर

राहुल गाँधी और उनकी समर्थक देशी विदशी टोलियों ने पिछले महीनों के दौरान  भारत में लोकतंत्र ख़त्म होने , मीडिया के दमन , अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की मातमी धुन के कुप्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी | पाकिस्तान , चीन द्वारा पाले पोसे संगठनों अथवा मानव अधिकारों के नाम पर यूरोप , अमेरिका में दूकान चला रहे संगठनों और नेताओं ने निरंतर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और भारत विरोधी अभियान चलाया | लेकिन सारे हथकंडे विफल हो गए | अमेरिकी संसद में इस बार प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के ऐतिहासिक धारदार भाषण में लोकतान्त्रिक आदर्शों , सम्पूर्ण समाज के हितों के लिए मिल रही सफलता , आर्थिक विकास की ऊंचाइयों और अंतरराष्ट्रीय शांन्ति सद्भावना के संकल्पों पर अमेरिकी सांसद में 15 बार खड़े होकर तालियां बजाकर उनका अभिनन्दन किया | मुझे पिछले पांच दशकों में राजीव गाँधी , नरसिंह राव , इंद्रकुमार गुजराल , अटलबिहारी वाजपेयी , मनमोहन सिंह जैसे कई प्रधान मंत्रियों के साथ प्रेस टीम में अमेरिका जाने और संसद तथा संयुक्त राष्ट्र महासभा में उनके भाषण को कवर करने के अवसर मिले हैं | लेकिन मोदी के लिए संसद में और प्रवासी भारतीयों के बीच इतना उत्साह और समर्थन देखने को नहीं मिला | मोदी  सार्वजनिक रुप से यह बात भी स्वीकारते हैं कि इस तरह का सम्मान असल में भारत  की 140 करोड़ जनता के सामर्थ्य और तेजी बढ़ रही आर्थिक शक्ति का सम्मान है |

अमेरिका की इस यात्रा में हुए सामरिक सुरक्षा समझौते और  पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद के पोषण तथा चीन के विस्तारवादी रवैय्ये के  विरुद्ध भारत के साथ विश्व के अधिकांश देशों के लिए महत्वपूर्ण हैं | इसी तरह टेक्नोलॉजी और आर्थिक क्षेत्रों में नई साझेदारी अमेरिका और भारत को समान रुप से लाभ देने वाली हैं | यह पहला अवसर है जबकि भारत की  सीमाओं पर आतंकवादी हमलों से निपटने के लिए अमेरिका की सहमति का उल्लेख संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में किया गया | अमेरिका ही नहीं दुनिया के सर्वाधिक देश आतंकवाद से निपटने और भारत द्वारा यूक्रेन सहित विभिन्न क्षेत्रों में शांति के लिए किए जा रहे प्रयासों की सराहना कर रहे हैं | भारत अमेरिकी संबंधों के इस नए मोड़ पर कुछ पुराने तथ्य भी याद आते हैं | जून 1985 में भारतीय प्रधान मंत्री राजीव गाँधी की अमेरिका यात्रा में राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन और प्रशासन ने पुराने बैर भाव भुलाकर स्वागत अच्छा किया और युवा नेता को प्रसन्न करने की कोशिश की | हमें नासा अंरिक्ष केंद्र देखने का लाभ भी दिया | इस यात्रा में शामिल नेता , अधिकारी , पत्रकार कभी भारत की अंतरिक्ष योजनाओं में अमेरिकी साझेदारी के सपने देखने लगे | लेकिन बाद में अमेरिका द्वारा सुपर कम्प्यूटर तक देने से इंकार करने और  भारत विरोधी खालिस्तानी आतंकवादियों के प्रशिक्षण की गतिविधियों को नियंत्रित नहीं किए जाने पर हमने अमेरिका की तीखी आलोचना की थी |इसी तरह परमाणु परीक्षणों पर भारत के विरुद्ध कुछ प्रतिबन्ध लगाने या बाद में मनमोहनसिंह के साथ परमाणु समझौते के बावजूद टेक्नोलॉजी हस्तांतरण में रुकावट से अमेरिका के प्रति पूरी सद्भावना नहीं बन सकती थी | लेकिन पिछले कुछ वर्षों के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के कई राष्ट्रीय अंतर्रराष्ट्रीय क़दमों से अमेरिका ने न केवल आधुनिकतम जेट 414 फाइटर विमान के इंजिन की टेक्नोलॉजी को देने पर सहमति दी है , वरन इसरो और नासा द्वारा अंतरिक्ष अनुसन्धान की यात्राओं में साझेदारी का समझौता किया है | यह भारत के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि है , क्योंकि अमेरिका अपने नाटो के कई साथी देशों तक को टेक्नोलॉजी के हस्तांतरण के लिए राजी नहीं होता है | इस समय चीन को कड़ा मुकाबला देने में भारत की क्षमता तथा अमेरिका यूरोपीय देशों की आर्थिक समस्याओं से राहत के लिए उसे भारत एकमात्र सही साझेदार दिख रहा है |

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नए आर्थिक सम्बन्ध बढाने के लिए अमेरिकन कंपनियां बेताब हैं | भारत का विशाल बाजार , शिक्षित , कुशल अर्ध कुशल श्रमिक , आधुनिक शिक्षित इंजिनियर, मजबूत वित्तीय संस्थाएं , समय की कसौटी पर खरी उतरने वाली लोकप्रिय नेतृत्व वाली प्रजातान्त्रिक व्यवस्था अमेरिकी सरकार और कंपनियों को बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश के अवसर दी रही है | यही नहीं टाटा समूह की एयर इंडिया द्वारा पांच सौ विमानों की खरीदी से अमेरिका में हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा | दूसरी तरफ अमेरिकी प्रशासन अपने देश के कुछ सांसदों के एक समूह या कुछ संगठनों द्वारा मानव अधिकारों के मुद्दे पर आलोचना को द्विपक्षीय संबंधों में आड़े नहीं लाने दे रहा | उनके लिए भारत का यह तर्क भारी है कि आतंकवादी या माओवादी हिंसा को कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है | उनकी हिंसा से हजारों मासूम लोगों की जान जा चुकी है | जहाँ तक प्रजातंत्र की बात है पंचायत से संसद तक चुनाव हो रहे हैं और विभिन्न राज्यों में करीब बीस पार्टियों की सरकारें हैं | मोदी सरकार की सभी कल्याणकारी योजनाएं हर वर्ग , जाति , धर्म सम्प्रदाय के लोगों को लाभान्वित कर रही हैं |

सफलता के इस दौर में अमेरिका और भारत में एक और दिलचस्प चर्चा सुनने में आने लगी है | यह समझा जा रहा है कि अमेरिका , रुस , ब्रिटेन , फ़्रांस , जर्मनी , जापान , ऑस्ट्रेलिया , कई अफ़्रीकी और इस्लामिक देश प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को जी -20 देशों के संगठन के नेता के साथ दुनिया के शांति दूत के रुप में देखने लगे हैं , तो अगले नोबेल शांति पुरस्कार के लिए उन्हें सबसे योग्य नेता भी चुना जा सकता है | आख़िरकार नोबेल शांति पुरस्कारों में करीब 31 प्रधान मंत्री या राष्ट्रपति रह चुके हैं | केवल ब्रिटिश प्रधान मंत्री चर्चिल को साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था | विली ब्रांट , अनवर सादात , नेल्सन मंडेला सहित कई छोटे देशों के राष्ट्राध्यक्षों को अंतर्राष्ट्रीय शांति प्रयासों के लिए यह सम्मान मिल चूका है | दलाई लामा और यासिर अराफात भी सम्मानित हो चुके हैं | इसलिए अब तो भारत हर तरह से विश्व समुदाय के हितों के लिए अग्रणी हो गया है |शांति स्थापना के लिए केवल वार्ताओं से काम नहीं चलता | भारत और अन्य देशों में समुचित शिक्षा , स्वास्थ्य , आवास , पेयजल , ऊर्जा क्षमता , परिवहन व्यवस्था , स्व रोजगार की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति होनी चाहिए | पिछले नौ वर्षों में भारत ने इसी लक्ष्य के लिए बड़े पैमाने पर प्रगति की है | महानगरों से सुदूर गांवों तक अद्भुत सामाजिक आर्थिक परिवर्तन दिखने लगा है | कोविड महामारी में करोड़ों लोगों को स्वदेशी वैक्सीन मुफ्त देने के साथ एक सौ से अधिक देशों को भी वैक्सीन पहुँचाने का काम भारत ने किया है | आख़िरकार शांति और सद्भावना का इससे अधिक पुनीत कार्य क्या हो सकता है |