
Devi Ahilyabai Holkar.नारी शक्ति की अद्भुत मिसाल, दूरदर्शी प्रशासक और समाज सुधारक
आज पुण्यतिथि पर विशेष
रुचि बागड़देव की खास रिपोर्ट
इंदौर ;13 अगस्त लोकमाता देवी अहिल्याबाई की पुण्यतिथि: आज हम भारत की उन महानतम महिला शासकों में से एक, देवी अहिल्याबाई होल्कर जी को श्रद्धापूर्वक स्मरण कर उनके अदम्य साहस, सशक्त नेतृत्व और निस्वार्थ जनसेवा को नमन करते हैं। 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के चोंडी गांव में जन्मी अहिल्याबाई ने खंडेराव होल्कर के निधन के बाद 1767 से 1795 तक मालवा की शासन-गद्दी संभाली और शासन काल में अपने दूरदर्शी दृष्टिकोण व कर्तव्यनिष्ठा से एक स्वर्णिम युग की स्थापना की।
प्रखर नेतृत्व और कुशल प्रशासन:
अपने पति की मृत्यु के बाद अहिल्याबाई ने न केवल राज्य की बागडोर संभाली, बल्कि उसे समृद्धि, न्याय, और सामाजिक सौहार्द का प्रतीक बनाया। महेश्वर को उन्होंने सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक केंद्र के रूप में विकसित किया। उनके शासनकाल में भ्रष्टाचार समाप्त हुआ और ऐसी न्याय व्यवस्था विकसित हुई जो आम जनता के हित में थी। अहिल्याबाई न केवल न्याय प्रिय थीं, बल्कि जन समस्याओं को सुनने और उनके समाधान में तत्पर रहती थीं। उनसे सीखना आज भी जरूरी है कि नेतृत्व का सबसे बड़ा गुण समर्पण और निष्ठा है।

धार्मिक पुनर्निर्माण और सांस्कृतिक संवर्धन:
अहिल्याबाई होल्कर का नाम उन महान शासकों में शामिल है, जिन्होंने भारतीय संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए कई मंदिरों का जीर्णोद्धार और पुनर्निर्माण किया। वे काशी विश्वनाथ, सोमनाथ, द्वारका, उज्जैन, प्रयाग जैसे पावन तीर्थों का जीर्णोद्धार करने के साथ ही यात्रियों के लिए घाट, धर्मशालाएं, कुएं और सड़कें बनवाने का काम भी लगातार करती रहीं। उनकी प्रेरणा से महेश्वरी साड़ी जैसी कलाकृतियां भी फली-फूलीं, जो आज देश विदेश मैं भारत की पहचान है। उनकी धार्मिक सहिष्णुता और समर्पण आज भी भारतीय समाज के लिए मार्गदर्शक हैं।

समाज सुधार और नारी सशक्तिकरण की प्रणेता:
अहिल्याबाई ने अपने शासनकाल में महिलाओं के सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने महिलाओं को नेतृत्व से जोडा, जो उनके शासन की ताकत बनी। शिक्षा को बढ़ावा दिया, गुरुकुल, विद्यालय और अस्पताल बनवाए। उनका न्याय इतना निर्मम था कि उन्होंने कभी भी अपने और पराए का भेद नहीं किया। न्याय के लिए उन्होंने अपने परिजनों को भी दंडित किया, यह उनकी चरित्र की महानता और न्यायप्रियता का प्रतीक है। उनका जीवन प्रेरणा देता है कि अलोकतांत्रिक और अपराधपूर्ण व्यवहार कानून-शासन के आगे समान है।
देवी अहिल्याबाई के संदेश की प्रासंगिकता:
वर्तमान समय में जब नेतृत्व में ईमानदारी, धैर्य और जनसेवा की कमी दिखती है, तब देवी अहिल्याबाई का जीवन आदर्श के रूप में खड़ा होता है। वे सिखाती हैं कि शक्ति का सही उपयोग सेवा में होना चाहिए, सत्ता का उद्देश्य केवल लोगों की भलाई हो। जाति, धर्म या लिंग से ऊपर उठकर उनका समर्पण, एकता और न्याय का पाठ हम सभी के लिए प्रेरणा है। उनके जीवन से हम सीखते हैं कि महिलाओं में नेतृत्व की अपार क्षमता होती है और सही दिशा मिले तो वे इतिहास रच सकती हैं।

देवी अहिल्याबाई होल्कर केवल एक शासक नहीं थीं, बल्कि एक दूरगामी दृष्टि वाली समाज सुधारक, निष्ठावान माँ और न्यायप्रिय प्रशासक थीं। उनकी विरासत आज भी भारत के प्रशासन, संस्कृति और नारी सशक्तिकरण के क्षेत्र में प्रासंगिक है। उनका जीवन, नेतृत्व और आदर्श देश के हर नागरिक के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
उनकी छवि काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित है, जो उनके धार्मिक समर्पण और सेवा का प्रतीक है। आज उनके योगदान को याद करते हुए हम उन्हें नमन करते हैं।






