Dhar Bhojshala Case : आर्कियोलॉजिकल रिपोर्ट के मुताबिक 1903 में भोजशाला मंदिर था, हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा!

मंदिर के पुराने गुंबजों पर संस्कृत में लिखे श्लोक के फोटो भी कोर्ट में पेश!

1012

Dhar Bhojshala Case : आर्कियोलॉजिकल रिपोर्ट के मुताबिक 1903 में भोजशाला मंदिर था, हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा!

Indore : मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के इंदौर खंडपीठ में सोमवार को धार की भोजशाला मामले की सुनवाई हुई। हिन्दू पक्ष के वकील ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे की मांग की थी। इस विषय पर आज बहस हुई। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस मामले को भी अयोध्या जैसा मामला माना और टिप्पणी करते हुए कहा यह मामला भी अयोध्या जैसा ही है। इसलिए भोजशाला मामले में जितनी भी याचिका लगी है उनकी लिस्टिंग कर कोर्ट के सामने प्रस्तुत की जाए। साथ ही फैसले को फिलहाल कोर्ट ने सुरक्षित रख लिया है।

हिंदू पक्ष के वकील ने कोर्ट के समक्ष तथ्य रखे थे कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया की 1903 की रिपोर्ट में यहां सरस्वती मंदिर की पुष्टि हुई थी। यहां पर सरस्वती माता की मूर्ति लंदन के एक म्यूजियम में कैद है और इसके साथ ही मंदिर के पुराने गुंबजों पर संस्कृत में लिखे श्लोक के फोटो भी हिंदू पक्ष की वकील की तरफ से कोर्ट में प्रस्तुत किए गए हैं। इसीलिए इस मामले की भी ज्ञानवापी की तरह ही आर्कियोलॉजिकल सर्वे कराकर कोर्ट अपना फैसला सुनाए।

फिलहाल इस पूरे मामले में हाईकोर्ट ने फैसले को सुरक्षित रखते हुए जबलपुर हाईकोर्ट में भी याचियों की जानकारी मांगी है। याचिकाओं की जानकारी आने के बाद ही कोर्ट अब आगे अपना फैसला सुनाएगी।

राजा भोज ने की थी स्थापना
ऐतिहासिक भोजशाला, राजा भोज द्वारा स्थापित सरस्वती सदन है। परमार वंश के राजा भोज ने 1010 से 1055 ईस्वी तक शासन किया था। 1034 में उन्होंने सरस्वती सदन की स्थापना की थी। यह एक महाविद्यालय था जो बाद में भोजशाला के नाम से मशहूर हुआ। राजा भोज के शासनकाल में ही यहां मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की गई थी। इतिहासकारों के मुताबिक साल 1875 में खुदाई के दौरान यह प्रतिमा यहां मिली थी। 1880 में अंग्रेजों का पॉलिटिकल एजेंट मेजर किनकेड इसे लेकर इंग्लैंड चला गया था। यह वर्तमान में लंदन के संग्रहालय में सुरक्षित भी है।

हिंदू-मुस्लिम के अपने-अपने दावे
1305 से 1401 के बीच अलाउद्दीन खिलजी और दिलावर खां गौरी की सेनाओं के साथ माहकदेव और गोगादेव की लड़ाई हुई। 1456 में महमूद खिलजी ने मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण कराया। करीब एक हजार साल पहले भोजशाला शिक्षा का एक बड़ा संस्थान था। बाद में यहां पर राजवंश काल में मुस्लिम समाज को नमाज के लिए अनुमति दी गई, क्योंकि यह इमारत अनुपयोगी पड़ी थी। वे लंबे समय से यहां नमाज अदा करते रहे। हिंदुओं का दावा है कि भोजशाला सरस्वती का मंदिर है। दूसरी ओर मुस्लिम इसे कमाल मौलाना की दरगाह बताते हैं।

विवाद की शुरुआत
विवाद की शुरुआत 1902 में हुई जब धार के तत्कालीन शिक्षा अधीक्षक काशीराम लेले ने मस्जिद के फर्श पर संस्कृत के श्लोक खुदे देखे। इस आधार पर उन्होंने इसे भोजशाला बताया था। 1909 में धार रियासत ने भोजशाला को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया। इसके बाद यह पुरातत्व विभाग के अधीन आ गया।

1935 में नमाज की इजाजत
विवाद का दूसरा पड़ाव 1935 में आया, जब धार के महाराज ने इमारत के बाहर तख्ती टंगवाई। तख्ती पर भोजशाला और मस्जिद कमाल मौलाना लिखा था। धार स्टेट ने 1935 में ही इस परिसर में नमाज पढ़ने की अनुमति दी थी। दीवान नाडकर ने भोजशाला को कमाल मौलाना की मस्जिद बताते हुए शुक्रवार को नमनाज की अनुमति का आदेश जारी किया था। यही आदेश आगे चलकर विवाद का कारण बना। आजादी के बाद ये मुद्दा सियासी रंग में रंग गया। मंदिर में प्रवेश को लेकर हिंदुओं ने आंदोलन किया। इसके बाद से जब-जब वसंत पंचमी और शुक्रवार साथ होते हैं, तब-तब तनाव बढ़ता है।

पूजा के साथ नमाज की भी अनुमति
भोजशाला में हर मंगलवार को हिंदू समाज के लोग पूजा-अर्चना करते हैं। हरेक शुक्रवार को दोपहर एक से तीन बजे तक मुसलमानों को नमाज पढ़ने की अनुमति होती है। वसंत पंचमी पर हिंदू समाज को पूरे दिन पूजा-अर्चना की अनुमति होती है। यह अनुमति भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा दी गई है।