Dhar Kalika Mata Temple: “धार की गढ़कालिका मॉं”-दिव्य मातृ ऊर्जा का प्रतीक

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Dhar Kalika Mata Temple: “धार की गढ़कालिका मॉं”-दिव्य मातृ ऊर्जा का प्रतीक

नीति अग्निहोत्री

   जिला मुख्यालय धार पर इंदौर-अहमदाबाद मार्ग स्थित देवी सागर तालाब के किनारे स्थित पहाड़ी पर गढ़ कालिका माता मंदिर है। यह मंदिर प्राचीन होने के साथ-साथ आस्था का केंद्र है। मॉं गढ़कालिका का प्राचीन मंदिर धार नगरी की सबसे ऊंचे पहाड़ी शिखर पर, देवी सागर तालाब के पास स्थित है ,जैसे की आम तौर पर देवी के मंदिर ऊंची पहाड़ियों पर होते है इसलिए उन्हें पहाड़ां वाली भी कहा जाता है।गढ़कालिका मॉं की छवि महाराष्ट्र के कोठे गांव से लाई गई थी। मंदिर प्राचीन वास्तुकला का एक अनुपम उदाहरण है।मंदिर का शिखर स्थापत्य शैली में निर्मित है। मंदिर परिसर के अंदर सभा मंडप ,भोजन कक्ष और सीढ़िया हैं।
मॉं गढ़कालिका की पूजा एक विवाहित महिला द्वारा ही की जाती है और इन्हें पवार वंश की कुलदेवी माना जाता है। संपूर्ण देश के भक्त यहां आकर पूजा करते हैं और मानता मानते हैं, जिसमें उल्टा स्वस्तिक बनाया जाता है । मानता पूरी होने पर सीधा स्वस्तिक बनाया जाता है। स्वस्तिक चिन्ह हिंदू धर्म में शुभ माना जाता है।

 मंदिर धार के maxresdefault 1 e1743850554628पंवार राजवंश द्वारा स्थापित किया गया था और यह प्राचीन भारतीय मंदिर वास्तुकला का एक अनूठा उदाहरण है। वर्ष 1770 में, स्वर्गीय यशवंत राव पंवार प्रथम (वर्ष 1736 से 1761) की पत्नी सकवर बाई ने अपने पति की मृत्यु के बाद इस मंदिर का निर्माण कराया था। उन्होंने गढ़ कालिका मंदिर के साथ सात और मंदिर भी बनवाए जिनमें नौगांव गणेश मंदिर और मांडू राम मंदिर शामिल हैं। देवी कालिका की प्रेरक मूर्ति वास्तव में महाराष्ट्र के कोठे गांव से लाई गई थी।

 

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मंदिर का शिखर परमार स्थापत्य शैली का बताया जाता है। मंदिर के सामने काले पत्थर से बनी खूबसूरत दीपों की श्रृंखला भी स्थित है। आनंद राव पंवार (वर्ष 1782 से 1807) की पत्नी मैना देवी इस मंदिर की एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि यहाँ देवी की पूजा एक विवाहित महिला के रूप में की जाती है। गढ़ कालिका को स्पष्ट रूप से पंवार वंश की कुलदेवी माना जाता है।

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कुलदेवी की पूजा पूरे वंश द्वारा की जाती है और देश भर के भक्त भी देवी गढ़ कालिका के दर्शन और पूजा करते हैं। इस मंदिर से जुड़ी एक और आकर्षक रस्म यह है कि भक्त यहाँ उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं और जब उनकी इच्छा पूरी हो जाती है तो वे फिर से यहाँ आते हैं और सही स्वास्तिक बनाते हैं। स्वास्तिक एक ज्यामितीय आकृति है और इसका उपयोग भारतीय धर्मों में देवत्व और आध्यात्मिकता के प्रतीक के रूप में किया जाता है।

यह मंदिर 1770 में यशवंतराव पंवार की मृत्यु उपरांत सकवार बाई ने बनवाया था । इसके साथ ही सात मंदिर और भी बनवाए ,जिनमें नौ गांव गणेश मंदिर व मांडू राम मंदिर भी हैं । आनंद राव पंवार की पत्नी मैना बाई ने भी गढ़कालिका मंदिर के विकास में अपना योगदान दिया था । मंदिर के सामने काले पत्थरों के दीपों की श्रृंखला स्थित है।

Kalkaji Temple, Delhi :माँ कालिका: शक्ति,ब्रह्मांड की दिव्य मातृ शक्ति की अजस्त्र ऊर्जा 

आराधना :आरती दशरथ नंदन की