Dharali Disaster in Uttar Kashi : 5 अगस्त का वैज्ञानिक विश्लेषण और समाधान

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Dharali Disaster in Uttar Kashi
Dharali Disaster in Uttar Kashi: 5 अगस्त का वैज्ञानिक विश्लेषण और समाधान

 डॉ. तेज प्रकाश व्यास का त्वरित विश्लेषण 

 जैव विविधता विशेषज्ञ

1. धराली की भौगोलिक स्थिति और पारिस्थितिकी

धराली गांव, उत्तरकाशी जिले में समुद्रतल से लगभग 8500 फीट की ऊँचाई पर स्थित एक सुंदर पहाड़ी बस्ती है, जो गंगोत्री धाम के मार्ग में खीरगंगा नदी के किनारे स्थित है। यह क्षेत्र हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी (fragile ecosystem) का हिस्सा है।

हिमालय एक युवा पर्वत श्रृंखला है, जो निरंतर भूगर्भीय हलचलों (tectonic activities) से प्रभावित रहता है।

धराली के ऊपरी क्षेत्र में बहने वाली खीरगंगा नदी मानसूनी ऋतु में अत्यधिक जलधारण करती है।

जलवायु परिवर्तन के कारण इन दिनों बर्फ पिघलने और तीव्र वर्षा का चक्र बढ़ रहा है, जिससे आपदा की संभावना भी बढ़ गई है।

2. क्या होता है ‘बादल फटना’ (Cloudburst) और प्राकृतिक आपदा?

बादल फटना एक तीव्र वर्षा की घटना है, जिसमें कुछ ही घंटों में 100 मिमी से अधिक बारिश सीमित स्थान पर होती है। जब बादल अत्यधिक नमी लेकर पहाड़ों से टकराते हैं, तो जलवाष्प तीव्रता से वर्षा में बदल जाती है।
आज 5 अगस्त को धराली में आए इस बादल फटने का धराली में हुआ है । नदी के दोनों ओर घनी बस्ती है।
हजारों टन मलबा बहा और नदी किनारे धराली में खतरनाक हादसा हुआ है। 4 लोगों की अब तक मृत्यु और 50 लापता समाचार में बताए जा रही है। सेना राहत कार्य में द्रुत गति से कार्य कर रही है। उत्तरा खंड और भारत सरकार पूर्ण संवेदनशील है और राहतकारी कार्य में दबे हुए लोगों को निकालने का कार्य भी कर रही है।

Dharali Disaster in Uttar Kashi
Dharali Disaster in Uttar Kashi

वैज्ञानिक रूप से इसे Orographic Lift and Saturation कहा जाता है।

इन घटनाओं में Radar Doppler तकनीक से पूर्वानुमान संभव है, परंतु पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी सफलता सीमित है।

3. खतरनाक क्यों हुआ यह हादसा?

अनियंत्रित निर्माण: खीरगंगा तट पर होटल और होमस्टे भारी संख्या में बने, जो पारिस्थितिकी संतुलन के प्रतिकूल हैं।

वृक्षों की कटाई: बांध, सड़क, होटल आदि के लिए जंगलों की कटाई ने भूमि स्थिरता को कमजोर किया।

जल निकासी प्रणाली की कमी से पानी सीधा आबादी में घुसा।

मलबा, चट्टान और वृक्षों ने मात्र 10 मिनट में कहर ढा दिया।

4. 2013 की केदारनाथ त्रासदी से सबक

2013 में उत्तराखंड में हुई भीषण बाढ़ में हजारों जानें गईं। वजहें:

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अनियंत्रित पर्यटन

तीव्र वर्षा

ग्लेशियर झील फटना (GLOF – Glacial Lake Outburst Flood)

विकास कार्यों में भूगर्भीय अध्ययनों की अनदेखी

अब वही चूक 2025 में दोहराई जा रही है।

5. वैज्ञानिक एवं दीर्घकालिक समाधान

(क) सरकार द्वारा आवश्यक कदम:

1. Eco-sensitive zone में निर्माण कार्य पर प्रतिबंध।

2. Satellite-based early warning systems को मजबूत करना। 3. सर्वेक्षण द्वारा Landslide Zonation Mapping। 4. Forest Restoration (वनारोपण) और Catchment Area Treatment। 5. Tourism carrying capacity निर्धारित करना।

(ख) जनता और स्थानीय समुदाय की जिम्मेदारी:

1. तटों पर कंक्रीट निर्माण से परहेज।2. स्थानीय भवन निर्माण तकनीक (e.g. लकड़ी-पत्थर मिश्रित निर्माण) को अपनाना।3. बिना प्लास्टिक और प्रदूषण का पर्यटन क्षेत्र हो।4. आपदा जागरूकता प्रशिक्षण (Mock drills)।6. जलवायु परिवर्तन का योगदान

IPCC रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग से हिमालयी क्षेत्र में:

अत्यधिक वर्षा की घटनाएं 3 गुना बढ़ गई हैं।बर्फ पिघलने की गति 2x तेज हो गई है।मानसून पैटर्न अस्थिर हो गया है।

यह भी पढ़ें -Severe Natural Disaster : उत्तराखंड में बादल फटने से कई लोगों के बहने की आशंका, 4 की मौत की खबर,उत्तरकाशी के धराली गांव में मचा कोहराम 

जरूरत:

हम सबको जलवायु परिवर्तन को व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर गंभीरता से लेना होगा।

7. सुझाव: भविष्य में इस त्रासदी से कैसे बचें

क्षेत्र सुझाव

निर्माण केवल भूगर्भीय सर्वे के बाद अनुमति
जल-प्रबंधन नदियों के किनारे जल निकासी योजना
शिक्षा स्थानीयों के लिए आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण
पर्यावरण हरित क्षेत्र और जलधाराएं बचाना
विज्ञान AI आधारित warning systems का विकास

8. संवेदनशील शोक संदेश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह द्वारा जताया गया शोक राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। सरकार की तत्परता सराहनीय है।
परंतु, नैतिक और प्राकृतिक जिम्मेदारी का निर्वहन हम सबकी प्राथमिकता होनी चाहिए।

चेतावनी

धराली आपदा: प्रकृति की चेतावनी और हमारी जिम्मेदारी

बादल फटने की त्रासदी: धराली से सीखे सबक

धराली विनाश: जब प्रकृति ने संतुलन खोने का मूल्य दिखाया

उत्तरकाशी की पुकार: हिमालय में संकट, समाधान और सबक

प्रकृति का प्रतिशोध या हमारी लापरवाही? – धराली हादसे का के वैज्ञानिक विश्लेषण का राष्ट्र अवगाहन कर सीख लेवे।

धराली त्रासदी: क्या हम अब भी नहीं जागेंगे?

बादल फटा – पहाड़ों में आपदा की बढ़ती आहट

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हिमालयी आपदाएं: प्रकृति से संघर्ष नहीं, समरसता चाहिए

धराली जैसी आपदाएं हमें बार-बार चेतावनी देती हैं कि हम प्रकृति से आगे नहीं निकल सकते।
प्रगति जरूरी है, लेकिन प्रकृति की गोद में संतुलित विकास ही स्थायी समाधान है।
अब भी समय है – विज्ञान, नीति और जनचेतना को एकजुट करके हम आपदाओं को रोक नहीं सकते, पर उनसे बच सकते हैं।

विश्वसनीय स्रोत:

IMD (Indian Meteorological Department): https://mausam.imd.gov.in/

NDMA (National Disaster Management Authority): https://ndma.gov.in

Wadia Institute of Himalayan Geology: https://www.wihg.res.