अमित शाह (Amit Sah) के दौरे के दौरान हुए दिलचस्प वाकये….
अमित शाह का भोपाल दौरा किसी मेगा शो से कम नहीं था? इस दौरान कुछ दिलचस्प वाकये भी हुए, जिनकी चर्चा लोगों की जुबान पर है। जैसे, जंबूरी मैदान के कार्यक्रम में शाह ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बाद सबसे ज्यादा किसी का नाम लिया तो वे थे वन मंत्री विजय शाह। मंच के दो वायरल वीडियो भी चर्चा में हैं। एक में एक मंत्री मंच पर अपनी कुर्सी ढूंढ़ते दिखाई पड़े और जहां उनके नाम की पर्ची दिखी, वहीं खड़े होकर रह गए। अमित शाह और शिवराज के आगमन की ओर भी उनका ध्यान नहीं गया।
दूसरे में शिवराज सिंह चौहान बोलने खड़े हुए तो एक मंत्री ने खड़े होकर ताली बचाई, बाजू में बैठे दूसरे मंत्री ने उनका कुर्ता खींच कर बैठा लिया। भाजपा कार्यालय की बैठक में अमित शाह के दो कथनों की भी चर्चा है। जैसे उन्होंने कहा कि मैं कम उम्र का भाजपा अध्यक्ष था लेकिन सभी सीनियर मेरी बात मानते थे। इसलिए आकलन उम्र से नहीं, काम से होता है। गोपाल भार्गव का नाम लेकर उन्होंने कह दिया कि अब आप भार्गव जी को आदिवासी क्षेत्रों में भेज देंंगे तो परिणाम कैसे अच्छे आएंगे। इसलिए उपयोगिता के लिहाज से दायित्व सौंपे जाना चाहिए। कम उम्र की बात पर वीडी शर्मा खुश और नाम लेने के कारण गोपाल भार्गव भी प्रसन्न।
शाह के बाद शिवराज को मोदी का भी ग्रीन सिग्नल….
– देश के गृह मंत्री और भाजपा में दो नंबर के नेता अमित शाह के भोपाल दौरे और अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को तलब किए जाने के बाद कई तरह की अटकलों ने जन्म ले लिया था। सबसे बड़ी यह कि शिवराज के बारे में फैसला हो गया है। अब वे मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे। मप्र में कोई दूसरा नेता उनका स्थान लेगा। पर शिवराज के दिल्ली दौरे के बाद ऐसी सभी अटकलों पर विराम लग गया।
उन्हें अमित शाह के बाद नरेंद्र मोदी का भी ग्रीन सिग्नल मिल गया। तभी शिवराज ने मोदी को महाकाल कारीडोर के साथ स्टार्टअप योजना सहित कुछ अन्य अवसरों के लिए भी आमंत्रित कर दिया। सच यह है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नजर चाहे जितने नेताओं की हो लेकिन शिवराज जैसा जनता के साथ जुड़ाव है और उन जैसी मेहनत किसी अन्य दावेदार के बूते की बात नहीं। यह बात भाजपा नेतृत्व जानता है। शिवराज पहले मोदी और शाह के सामने यह साबित कर चुके हैं। यही वजह है कि शाह को भाजपा के प्रमुख नेताओं की बैठक में कहना पड़ा कि सभी को शिवराज के नेतृत्व में काम करना है। वे ही प्रदेश में भाजपा के नेता और चेहरा हैं। इस तरह फिलहाल फिर बाजी शिवराज के हाथ है।
उमा जी, क्यों नहीं स्वीकार पा रहीं यह सच….
– कभी तेजतर्रार नेत्री की तौर पर चर्चित रहीं प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमा भारती लगता है सच स्वीकार नहीं कर पा रही हैं। जब उनकी भाजपा में धमक थी तब ही उन्हें प्रदेश की राजनीति से दूर कर दिया गया था, अब तो वे भाजपा के अंदर ही लूपलाइन में हैं। उन्हें मान लेना चाहिए कि अब उनकी सुनने वाला कोई नहीं। यह सच स्वीकारने के लिए ज्यादा नहीं, तीन ताजे उदाहरण ही काफी हैं। पहला है शराबबंदी। उमा ने कहा था कि उन्हें चाहे जो करना पड़े, प्रदेश में शराबबंदी कराकर ही दम लेंगी।
इसे लेकर वे कई बार आगे बढ़कर पीछे हटीं लेकिन शराबबंदी तो दूर, शराब सस्ती कर उसकी उपलब्धता बढ़ा दी गई। दूसरा, वे रायसेन के सोमेश्वर महादेव मंदिर का ताला खुलवाने और जलाभिषेक के लिए अन्न त्याग का संकल्प ले बैठीं। उन्हें रायसेन जिले के नेताओं से मंदिर का ताला खुलवाने का आग्रह करना पड़ रहा है। उधर केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी संकेत दे गर्इं की ताला नहीं खुलेगा। अब उन्होंने लाउडस्पीकर का मुद्दा पकड़ा। मांग की कि जो व्यवस्था उप्र में लागू की गई है, वह मप्र में भी सभी धर्मों के लिए लागू की जाए। प्रदेश सरकार की ओर से इस पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। उमा जी, यह देखने के बाद भी आप सलाह देने पर क्यों आमादा हैं?
कुछ अपने ही निकाल रहे भाजपा का दम….
– भाजपा में कुछ अपने ही पार्टी का दम निकाल रहे हैं, हालांकि इनकी बातें बेदम नहीं हैं। पूर्व मंत्री एवं भाजपा विधायक अजय विश्नोई पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। पिछले कुछ समय से उन्हें असंतुष्ट नेताओं में गिना जाता है। इसकी वजह खरी-खरी बोलने की उनकी आदत है। उमा भारती द्वारा उठाए गए शराबबंदी मुद्दे का उन्होंने अलग ढंग से समर्थन किया। विश्नोई ने शराबबंदी के समर्थन के लिए बुलडोजर कार्रवाई पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि यदि वोट बढ़ाने के उद्देश्य से बुलडोजर चलाया जा रहा है तो वोट तो शराबबंदी की वजह से ज्यादा मिलेंगे।
अर्थात विश्नोई ने शराबबंदी का समर्थन कर दिया और बुलडोजर कार्रवाई का विरोध भी। हमेशा की तरह भाजपा की इस पर कोई अधिक्रत प्रतिक्रिया नहीं आई। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की पत्नी डॉ स्तुति मिश्रा के एक ट्वीट से भी भाजपा घिरी। डॉ मिश्रा ने अपने ट्वीट में एक मुस्लिम दुकानदार की तारीफ कर दी थी। नतीजे में उन्हें पहले अपना ट्वीट डिलीट करना पड़ा, इसके बाद अपना ट्वीटर एकाउंट डिएक्टिवेट। उमा भारती और नारायण त्रिपाठी जैसे नेता पहले से पार्टी नेतृत्व को असहज करते रहते हैं। पर लगता है कि नेतृत्व किसी की परवाह नहीं करता और लगातार अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर है।
यह चुनावी राजनीति से सन्यास का संकेत तो नहीं….
– प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय सिंह राहुल क्या चुनावी राजनीति से सन्यास लेने वाले हैं? ऐसा है तो इसकी वजह क्या हो सकती है? अजय के एक कथन से ऐसे कई सवाल पैदा हो गए हैं। दरअसल, कमलनाथ की मौजूदगी में कांग्रेस की एक बैठक में अजय ने कहा कि विधानसभा के अगले चुनाव में वे टिकट के दावेदार नहीं है। उन्होंने ऐसा क्यों कहा, जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं। पार्टी के अंदर बहस छिड़ गई है। पहला तर्क है कि चूंकि अजय तीन चुनाव एक विधानसभा और दो लोकसभा के लगातार हार चुके हैं, इसलिए उन्होंने खुद को चुनावी दौड़ से अलग कर लिया।
दूसरा तर्क है कि लोकसभा के चुनाव अजय सिंह की मर्जी के खिलाफ लड़ाए गए थे और उन्हें हराने में अपनों ने ही भूमिका निभाई। इसलिए उनके अंदर चुनावी वैराग्य जागा है। तीसरा यह कि कमलनाथ की नापसंद के चलते खंडवा लोकसभा सीट के उप चुनाव में अरुण यादव जैसे बड़े नेता का टिकट काट दिया गया, ऐसा अजय सिंह के साथ भी हो सकता है, इसलिए फजीहत से बचने उन्होंने खुद को अलग कर लिया। चर्चा यह भी है कि यदि ऐसा हुआ तो कांग्रेस को विंध्य अंचल में फिर बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। यहां कांग्रेस की वापसी के मुख्य किरदार वे ही हो सकते हैं।