

Dismissal Upheld : वकीलों और पुलिसकर्मियों से उठक-बैठक कराने वाले जोबट के पूर्व जज की बर्खास्तगी को हाई कोर्ट ने बरकरार रखा!
अलीराजपुर से ‘मीडियावाला’ के स्टेट हेड विक्रम सेन की रिपोर्ट
Alirajpur : मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक सिविल जज की बर्खास्तगी के फैसले को बरकरार रखा है। इस जज पर अदालती कार्यवाही की अवमानना में माफी के तौर पर वकीलों और पुलिस अधिकारियों को अपने कान छूकर उठक-बैठक करवाने का आरोप था। 7 मई को पारित फैसले में मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति विवेक जैन की खंडपीठ ने पाया कि परिवीक्षाधीन (प्रोबेशनरी) कौस्तुभ खेड़ा को शिकायतों के कारण नहीं, बल्कि उनके असंतोषजनक प्रदर्शन के कारण बर्खास्त किया गया था। पाया गया कि खेड़ा को बर्खास्त करने के लिए पूर्ण न्यायालय द्वारा पारित प्रस्ताव विधिवत रूप से स्थापित करता है कि पूर्ण न्यायालय ने याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई दंडात्मक आदेश पारित नहीं किया। उसने केवल यह मानते हुए याचिकाकर्ता को सेवा से बर्खास्त करने का फैसला किया कि उन्होंने अपनी परिवीक्षा अवधि का सफलतापूर्वक और संतोषजनक ढंग से उपयोग नहीं किया।
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि जब बर्खास्तगी आदेश में कदाचार का कोई आधार नहीं बताया जाता है, तो यह एक बर्खास्तगी है और इसमें हल्के में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। क्योंकि, यह तय है कि केवल विभाग के उच्च अधिकारियों को ही संबंधित अधिकारी से काम लेना है और वे ही यह निर्णय लेने के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं कि संबंधित अधिकारी को सेवा में रखा जाना चाहिए या नहीं! उनके कार्य प्रदर्शन, आचरण और नौकरी के लिए समग्र उपयुक्तता को ध्यान में रखते हुए यह फैसला किया गया। 2019 में न्यायिक अधिकारी नियुक्त किए गए खेड़ा को पिछले साल मध्य प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट प्रशासनिक समिति और पूर्ण न्यायालय की सिफारिश के बाद सेवा से बर्खास्त कर दिया था।
विवादास्पद जज कौस्तुभ खेरा
कौस्तुभ खेरा को 12 मार्च 2019 को मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा में प्रोबेशनर के रूप में नियुक्त किया था। बाद में उन्हें अलीराजपुर जिले के जोबट में तैनात किया गया। 8 अगस्त, 2024 की उच्च न्यायालय प्रशासनिक समिति की सिफारिश और 20 अगस्त, 2024 को पूर्ण न्यायालय द्वारा अनुसमर्थन के बाद मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 5 सितंबर, 2024 को सेवा से मुक्त कर दिया गया था। तीन वर्ष की निर्धारित प्रोबेशन अवधि पूरी होने के बावजूद उन्हें नियमित नियुक्ति नहीं दी गई और 5 सितंबर 2024 को मध्य प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट की प्रशासनिक समिति की अनुशंसा पर उन्हें सेवा से मुक्त कर दिया।
अपनी बर्खास्तगी को ऐसे चुनौती दी
बर्खास्तगी को चुनौती देते हुए खेड़ा ने कहा कि वकीलों के साथ कथित दुर्व्यवहार, वकीलों और पुलिस कर्मियों के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू करने, बिना अनुमति के मुख्यालय छोड़ने, अपने ही चपरासी पर जुर्माना लगाने और अदालत के कर्मचारियों के साथ कथित दुर्व्यवहार और दुर्व्यवहार के लिए उसे दो महीने की कैद की सजा सुनाने से संबंधित सात शिकायतों के आधार पर बिना किसी जांच के उनके खिलाफ ‘दंडात्मक आदेश’ पारित किया गया। आरोपों में से एक यह था कि खेड़ा बार के सदस्यों और पुलिस के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू करते थे और उनसे कान छूने और माफी मांगने के लिए उठक-बैठक करवाते थे। यह भी आरोप लगाया गया कि वे अपनी कुर्सी छोड़कर अदालत के कर्मचारियों के पीछे भागते थे।
अपने बचाव में खेड़ा ने यह तर्क दिया
खेड़ा ने अपने बचाव में कहा कि उन्होंने अदालत की अवमानना की कार्यवाही केवल उच्च न्यायालय को संदर्भित करने के लिए शुरू की थी। लेकिन, पक्षों की माफी स्वीकार करने के बाद उन्होंने इसे स्वयं बंद कर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने अदालत के बेहतर कामकाज के लिए अपने कर्मचारियों को निर्देश जारी किए थे। जवाब में, उच्च न्यायालय (प्रशासनिक पक्ष) का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने प्रस्तुत किया कि खेड़ा को बरी करते समय उनके खिलाफ कोई कलंकपूर्ण आदेश पारित नहीं किया गया था और इस प्रकार कदाचार के आरोपों की जांच आवश्यक नहीं थी।
हालांकि, यह स्वीकार किया गया कि उनके खिलाफ प्रतिकूल सामग्री केवल इस बारे में राय बनाने के लिए सामग्री का गठन कर सकती थी कि वह एक उपयुक्त न्यायिक अधिकारी के रूप में सामने आएंगे या नहीं। खंडपीठ ने फैसले में कहा कि यदि सक्षम प्राधिकारी के पास कुछ सामग्री है, जिसके आधार पर वह इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि संबंधित अधिकारी उपयुक्त अधिकारी के रूप में सामने नहीं आएगा, तो यह नहीं कहा जा सकता कि उसके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की गई है।
इस दलील पर कि कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार और मौखिक दुर्व्यवहार के आरोपों की एक विवेकपूर्ण जांच की गई थी। न्यायालय ने कहा कि यह भी सच है कि जिले के एक वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी नदीम खान, जिला न्यायाधीश द्वारा एक विवेकपूर्ण जांच की गई थी, जिन्होंने शिकायतों में कुछ तथ्य पाए और मामले को आगे बढ़ाने की सिफारिश की। हालांकि, यह विवाद में नहीं है कि मामले को आगे नहीं बढ़ाया गया और याचिकाकर्ता को कोई आरोप पत्र जारी नहीं किया गया और न याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई की गई। न्यायालय ने आगे कहा कि खेड़ा यह तर्क नहीं दे सकते कि शिकायतकर्ताओं की लंबितता और उनकी जांच को प्रशासनिक समिति या पूर्ण न्यायालय से छिपाया जाना चाहिए था।
निष्कर्ष में न्यायालय ने कहा कि मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियम, 1994 के नियम 11(सी) में विशेष रूप से उच्च न्यायालय को यह शक्ति दी गई है कि वह पद के लिए अनुपयुक्तता के कारण परिवीक्षा पर चल रहे न्यायिक अधिकारियों की सेवा समाप्त करने की संस्तुति कर सकता है। याचिकाकर्ता कौस्तुभ खेड़ा व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए। वरिष्ठ अधिवक्ता आदित्य अधिकारी तथा अधिवक्ता दिव्या पाल ने उच्च न्यायालय का प्रतिनिधित्व किया।
अपनी बर्खास्तगी को गलत बताया
कौस्तुभ खेरा ने इस आदेश को अनुशासनात्मक करार देते हुए इसे संविधान के मौलिक सिद्धांतों के उल्लंघन के रूप में चुनौती दी थी। खेरा ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि यह बर्खास्तगी आदेश सतही रूप से तो साधारण डिस्चार्ज के रूप में प्रस्तुत किया गया, परंतु यह वस्तुतः दंडात्मक था। उन्होंने आरटीआई के माध्यम से प्राप्त शिकायतों और प्रारंभिक जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि उन्हें बिना विभागीय जांच के हटाया गया, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
अपनी याचिका में खेरा ने तर्क दिया कि उनका निष्कासन दंडात्मक था और बिना किसी जांच के किया गया था। उन्होंने अपने खिलाफ सात शिकायतों का हवाला दिया, जिसमें वकीलों के साथ दुर्व्यवहार, वकीलों और पुलिस कर्मियों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करना और फिर उसे वापस लेना, कान पकड़कर और उठक-बैठक करके माफी मांगना, पुलिस कर्मियों के साथ इसी तरह का व्यवहार, महिलाओं सहित अदालत के कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार, मौखिक दुर्व्यवहार, शारीरिक हमले की धमकी और अदालत के घंटों के दौरान कर्मचारियों को उनकी सीटों से खदेड़ना शामिल है। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश, बार एसोसिएशन और पुलिस अधीक्षक द्वारा शिकायतें दर्ज की गई थीं। एक शिकायत में कहा गया है कि खेरा ने बिना किसी उचित अधिकार के अपने कोर्ट के चपरासी पर 50 रुपए का जुर्माना लगाया और उसे दो महीने जेल की सजा सुनाई।