

Vatsavitri Fast: वटसावित्री व्रत,एवं शनि जयंती और सोमवती अमावस्या
वट वृक्ष जिसकी जड़ें कभी समाप्त नही होती ।आज का दिन हिन्दू पंचांग के अनुसार विशेष महत्वपूर्ण ।ज्येष्ठ मास भगवान ब्रह्मा जी को समर्पित वट वृक्ष में ही ब्रह्मा का निवास माना गया है ।वटवृक्ष की जड़ें कभी समाप्त नही होती ।उसकी शाखाओं से ही जड़ें निकल कर अपने आपको आरोपित कर लेती हैं।इसके पीछे का दर्शन और गुप्त रहस्य सृष्टि में सृजन के बीज कभी समाप्त नहीं हो सकते नर में अग्नितत्व और मादा में सोमतत्व है जो कभी समाप्त नहीं हो सकते। ज्येष्ठ माह कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या सूर्यदेव एवं पितरों को समर्पित होती है ।हमारे पितर ही तो हमारे पूर्वज हैं जिनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हुये हम उनका पूजन करते हैं ।आज की वट वृक्ष की पूजा ब्रह्मा को समर्पित है ।
आज के दिन सूर्य एवं छाया के पुत्र शनि का भी जन्म हुआ था । इसीलिए इसे शनि जयंती भी कहते हैं । शनिदेव की प्रसन्नता के लिये पीपल के वृक्ष के नीचे सरसों के तेल का दिया जला कर उनका उसकी जड़ों में जल समर्पित करते हुये उनकी शांति एवं आशीर्वाद के लिये उनके पूजन का विशेष विधान है ।
सोमवार लक्ष्मी के भाई चंद्रदेवका दिन है
और अमावस्या पितर एवं शनिदेव का दिन।पीपल के वृक्ष में विष्णु का निवास मानते हुये उसका पूजन करने से इन सब के ग्रह दोष दूर होकर उनका आशीर्वाद मिलता है ।इसकी 108 बार परिक्रमा की जाती है सुहागिनें आज विशेष रूप से तुलसी के पौधे पीपल के वृक्ष का विधि विधान से पूजन करते हुये सुहागिनों का सम्मान सुहाग का सामान देकर करती हैं ।आज इतनी सारी विशेषताओं के साथ ही सर्वार्थ सिद्धि योग ने भी इसे विशेष बना दिया है ।
वट सावित्री व्रत में सत्यवान सावित्री की कथा है जिसमें अपने सतीत्व के बल पर यमराज से भी सावित्री अपने पति के प्राण ही नही वरन ससुर जी शत्रुओं द्वारा का छीना हुआ साम्राज्य के साथ नाती पोतों का सुख भी मांग लेती है । यमराज उसके वाक्चातुर्य में फंस कर अपने वचन से मुकर भी नहीं पाते और अंत में वट वृक्ष के नीचे लेटे हुये मृत सत्यवान को जीवनदान देते हैं ।
इस कथा के द्वारा नारी की शक्ति का परिचय दिया गया है कि वह चाहे तो जंगल में दीन हीन अवस्था में रह रहे अपने पति और उनके माता पिता को उनका खोया हुआ सम्मान भी अपनी बुद्धि चातुर्य और कार्यों के द्वारा वापिस दिला सकती है । इसीलिए उसमें लक्ष्मी सरस्वती और काली तीनों रूप समाहित हैं
।।ऊँ शं शनैशचरायै नम:।।
।।ऊँ ब्रह्मदेवाय नम:।।