Dispute in Indore BJP: संगठन पर उठे सवाल- ताई, जिराती और सिंधिया समर्थक हाशिए पर!

भाजपा का अनुशासन प्रश्नों के घेरे में, जानिए क्या कहा पार्टी के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष जीतू जिराती ने 

337

Dispute in Indore BJP: संगठन पर उठे सवाल- ताई, जिराती और सिंधिया समर्थक हाशिए पर!

कीर्ति कापसे की विशेष राजनीतिक रिपोर्ट 

इंदौर भाजपा की नगर कार्यकारिणी सूची ने पार्टी के भीतर असंतोष की लहर पैदा कर दी है। नगर अध्यक्ष सुमित मिश्रा द्वारा जारी की गई सूची के बाद विरोध, नारेबाजी और इस्तीफों का सिलसिला शुरू हो गया है। खाती समाज के कार्यकर्ताओं द्वारा कार्यालय में प्रदर्शन और पुतला दहन जैसे दृश्य भाजपा के “अनुशासन” वाले छवि पर सीधा सवाल खड़ा कर रहे हैं।

 

*सूची जारी होते ही विरोध के सुर*

नई नगर कार्यकारिणी सूची के सार्वजनिक होने के कुछ ही घंटे बाद खाती समाज के कार्यकर्ता भाजपा कार्यालय पहुंचे और अध्यक्ष सुमित मिश्रा के फोटो व नेमप्लेट पर कालिख पोत दी। समाज के नेताओं ने आरोप लगाया कि सूची में “भूमाफिया और असामाजिक तत्वों” को वरीयता दी गई है, जबकि जमीनी कार्यकर्ताओं और खाती समाज के दावेदारों को नज़रअंदाज़ किया गया।

खाती समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष पवन चौधरी ने कहा कि सूची में “धनबल और प्रभावशाली लॉबी” का दबाव स्पष्ट रूप से दिख रहा है। उनका कहना है कि “भाजपा की जो पहचान कभी विचार और संगठन के प्रति समर्पण से जुड़ी थी, अब वह केवल सत्ता और पद की राजनीति में बदलती जा रही है।”

 

*‘जिराती फैक्टर’ या गुटबाजी की परछाई?*

पार्टी के भीतर यह चर्चा तेज़ है कि यह विवाद केवल “जिराती समर्थकों” के असंतोष तक सीमित नहीं है। दरअसल, भाजपा की इंदौर इकाई लंबे समय से कई शक्ति केंद्रों में बंटी हुई है — कैलाश विजयवर्गीय, सुमित्रा महाजन (ताई), ज्योतिरादित्य सिंधिया और संगठन मंत्री के प्रभाव के बीच संतुलन हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है।

 

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार जीतू जिराती जैसे पुराने और प्रभावशाली नेता को अपेक्षित प्रतिनिधित्व न मिलना संगठन के भीतर शक्ति संतुलन के नए समीकरणों की ओर संकेत करता है।

सूची में सबसे ज्यादा चर्चा तीन नंबर विधानसभा क्षेत्र की हो रही है, जहां से दो महामंत्रियों की नियुक्ति ने विरोध को और हवा दी है।

 

*भाजपा का अनुशासन प्रश्नों के घेरे में*

भाजपा अपने अनुशासन और संगठन संस्कृति पर गर्व करती रही है, परंतु इंदौर की यह घटना उस छवि को चुनौती देती दिख रही है।

नगर अध्यक्ष का पुतला जलाना, कार्यालय पर धावा बोलना और नेमप्लेट पर कालिख पोतना — यह सब वही दृश्य थे जो अब तक विपक्षी दल कांग्रेस के साथ जोड़े जाते रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, “यह घटना न केवल भाजपा की स्थानीय इकाई के भीतर असंतोष को दर्शाती है, बल्कि यह नेतृत्व के प्रति बढ़ते अविश्वास की भी झलक है।”

 

*ताई और सिंधिया गुट की अनदेखी*

इंदौर भाजपा में लंबे समय तक सुमित्रा महाजन (ताई) और ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों के प्रभाव को अहम माना गया है।

हालांकि, इस बार जारी सूची में इन दोनों गुटों के किसी भी प्रमुख कार्यकर्ता को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया।

पार्टी सूत्रों के अनुसार, “यह पहली बार है जब भाजपा ने इंदौर में दोनों प्रभावशाली गुटों से दूरी बनाकर नई टीम खड़ी की है।”

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ताई की और से इस सूची के लिए अतुल बनवाड़ीकर का नाम दिया गया था , जो की पिछल 40 वर्षों से बीजेपी सक्रिय कार्यकर्ता है , व पिछली कार्यकारिणी में भी नगर मंत्री थे। पार्टी में सक्रिय होने के बावजूद उनका नाम काट दिया गया।

इस निर्णय से इन दोनों खेमों में असंतोष की स्थिति बताई जा रही है।

 

*क्या शीर्ष नेतृत्व करेगा पुनर्विचार?*

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि यदि असंतोष की यह लहर जारी रही, तो भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इंदौर नगर कार्यकारिणी पर दोबारा विचार करने को मजबूर हो सकता है।

 

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा,

“यह विवाद किसी एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि संगठनात्मक संतुलन का मामला है। शीर्ष नेतृत्व को यह देखना होगा कि क्या यह असंतोष केवल सूची तक सीमित है या इसके पीछे कार्यकर्ताओं के बीच गहरा असंतुलन पनप चुका है।”

 

इंदौर भाजपा का मौजूदा संकट केवल ‘जिराती विवाद’ नहीं, बल्कि संगठनात्मक संतुलन और नेतृत्व की स्वीकार्यता से जुड़ा एक गंभीर संकेत है।

एक समय विचार, अनुशासन और कार्यकर्ता समर्पण की मिसाल मानी जाने वाली भाजपा अब सत्ता समीकरणों और गुटीय खींचतान के जाल में उलझती दिख रही है।

 

सबसे अहम सवाल अब यही है —

क्या भाजपा नेतृत्व इंदौर के इस संकट को समय रहते संभाल पाएगा, या यह असंतोष पार्टी की जमीनी पकड़ को कमजोर करने की शुरुआत साबित होगा?

 

*जानिए जीतू जिराती ने क्या कहा*

पार्टी के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष जीतू जिराती ने कहा- संगठन सर्वोपरि; “लिखकर देने को तैयार हूं कि मुझे कोई पद नहीं चाहिए”

भाजपा कार्यालय पर विरोध के बाद जिराती ने साफ किया रुख, कहा – व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा नहीं, मेरे लिए संगठन के फैसले ही अंतिम है।

IMG 20251028 WA0146

भाजपा नगर कार्यकारिणी की सूची को लेकर मचे बवाल और भाजपा कार्यालय पर हुए “कालिख कांड” के बीच अब पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष जीतू जिराती का बयान सामने आया है। जिराती ने इस पूरे विवाद से खुद को पूरी तरह अलग बताते हुए कहा कि “मेरा इस घटना या सूची से कोई लेना देना नहीं है।”

उन्होंने साफ कहा कि वे संगठन के वफादार कार्यकर्ता हैं और उन्हें किसी भी प्रकार का पद या जिम्मेदारी नहीं चाहिए।

जिराती ने कहा, “मैं लिखकर देने को तैयार हूं कि मुझे कोई पद नहीं चाहिए। भाजपा ने जो कुछ दिया, वह मेरे लिए सम्मान की बात है। संगठन का निर्णय मेरे लिए सर्वोपरि है।”

भाजपा नगर कार्यकारिणी की सूची जारी होने के बाद इंदौर में खाती समाज और कुछ स्थानीय कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया था। प्रदर्शनकारियों ने भाजपा कार्यालय पहुंचकर नगर अध्यक्ष सुमित मिश्रा के फोटो और नेमप्लेट पर कालिख पोती थी। विरोधियों का आरोप था कि सूची में असामाजिक तत्वों को वरीयता दी गई और समाज विशेष के कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज किया गया।

इन घटनाओं के बाद सोशल मीडिया पर यह चर्चा तेज हो गई थी कि यह पूरा विरोध जीतू जिराती के समर्थन से जुड़ा है। अब जिराती के बयान ने इन अटकलों को विराम देने का प्रयास किया है।

उन्होंने कहा कि भाजपा में जो भी नियुक्तियां होती हैं, वह संगठन के निर्णय पर आधारित होती हैं और हर कार्यकर्ता को उसे स्वीकार करना चाहिए।

IMG 20251029 WA0104

जीतू जिराती का बयान – ‘ना पद की चाह, ना विरोध से नाता… भाजपा के साथ था, हूं और रहूंगा’”

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जिराती का यह बयान पार्टी के भीतर बढ़ते असंतोष को शांत करने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।

फिलहाल भाजपा संगठन ने मामले की रिपोर्ट प्रदेश नेतृत्व को भेज दी है और आने वाले दिनों में विरोध करने वाले कार्यकर्ताओं पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता।