Divine Dream and Minister’s Dilemma: जब मंत्री का धर्म ही संकट बन गया!

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Divine Dream and Minister’s Dilemma: जब मंत्री का धर्म ही संकट बन गया!

भारत सिद्धों और प्रसिद्धों की भूमि है .सिद्धों के बीच में छिपे गिद्धों को पहचानना आवश्यक है अन्यथा धर्म के वेश में अधर्म पनपने लगता है।

बात तेंदूखेड़ा दमोह वाले दिनों की है याने 1994 की। नोहटा से तेंदूखेड़ा जाते हुए मैंने देखा कि रास्ते के एक गाँव में बड़ी धूमधाम है।पंडाल लगा है ,धार्मिक भजन गूँज रहे हैं,सड़क किनारे धार्मिक झंडा लहरा रहा है।

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मैंने उत्सुकता वश जीप रोकी। एसडीएम की गाड़ी देखकर गाँव वाले मेरे पास आ गये। साब देवी मैया प्रकट भई है -गाँव वालों ने बताया .अच्छा कब कैसे ?-मैंने आश्चर्य से पूछा .साब ये महाराज जी है इनको देवी ने सपनो दओ हतो …एक बाबा जी को मेरे आगे लाया गया .मैंने उनकी ओर देखा तो कोई आध्यात्मिकता नहीं दिखी। उनके चेहरे मोहरे में संसारिकता कूट कूट कर भरी थी। उन्होंने बताया -साब कल रात दुर्गा मैया मेरे सपने में आईं थीं। उन्ने कही हम इतें दबे हैं हमें निकारो .सो हमने गाँववारन को बताई …फिर सबने मिलके खुदाई करी तो मैया की मूरत प्रगट भई -बाबाजी ने बताया। अब क्या विचार है -मैंने गाँव वालों से पूछा .अब साब यहीं मैया जी को दरबार और बाबाजी को आश्रम बनायेंगे-उन्हें कोई संशय नहीं था।

मैं समझ गया कि सड़क किनारे की मूल्यवान शासकीय भूमि अब इस संदेहास्पद बाबा की जागीर बनने वाली है। मैंने बाबाजी से पूछा -देवी मैया आपके स्वप्न में कितने बजे आईं थीं? साब जे ई कोई 12-1बजे का टेम होगा -बाबाजी आत्म विश्वास पूर्वक बोले .अब मैं गाँव वालों से मुखातिब हुआ -इनको सपना देने के बाद दुर्गा मैया मेरे सपने में आईं और मुझे कहा -कल एक बदमाश आदमी मेरे झूठे स्वप्न की कहानी गढ़कर सरकारी ज़मीन पर कब्जा करेगा। तत्काल उसे गिरफ़्तार करो। मैं मैया के आदेश पर यहाँ आया हूँ …चलिये पीछे बैठिये गाड़ी में। सभी सकते में आ गए। मैंने बाबाजी को ले जाकर नोहटा थाने में सौंप दिया और तेंदूखेड़ा चला गया ।

ग्रामीण इलाक़े का दौरा कर शाम को दमोह लौटा तो घर पर चार पाँच बार मंत्री श्री रत्नेश सालोमन जी फ़ोन खटखटा चुके थे, यह पता लगा .मैंने पलटकर मंत्री जी को फ़ोन लगाया तो वे धर्म संकट में बड़े विचलित थे .मैंने इसी शर्त पर उनके इलाक़े का एस डी एम होना स्वीकार किया था कि वे मेरे कार्य में दख़लंदाज़ी नहीं करेंगे ना कोई सिफ़ारिश करेंगे .वे मुझसे वचन बद्ध थे और अपने वचन को अभी तक निभाते आये थे पर अब उनका धर्म ही संकट बन गया था .उन्होंने बहुत दुखी स्वर में कहा -आपकी कार्यवाही से मेरी राजनीतिक हत्या हो जायेगी.क्योंकि विपक्ष मुझे देवी के अपमान और बाबा को जेल भेजने का आरोप लगायेगा और ईसाई होने के कारण यह आरोप मुझ पर अच्छे से चिपक जायेगा …मैं यह प्रकरण आपके विवेक पर छोड़ता हूँ.फ़ोन कट गया अब मैं धर्म संकट में था .मेरे प्रशासनिक कदम का एक राजनीतिक परिणाम होने जा रहा था और उसकी क़ीमत उस जन प्रतिनिधि को अदा करनी थी जो वास्तव में धर्म निरपेक्ष था और इस प्रकरण में निर्दोष था .दूसरी ओर मूल्यवान शासकीय भूमि दाँव पर थी जिसकी लूट मुझे स्वीकार नहीं थी .मैंने शांत चित्त से सोचा .देवी माँ की प्रतिमा गाँव के मंदिर में प्रतिष्ठित कराने और अतिक्रमण हटाने अपनी टीम को भेजा और बाबाजी को इस शर्त पर रिहा कर दिया कि इस इलाक़े में कभी न पधारें.इस पटाक्षेप से सभी ने राहत की साँस ली .उसके बाद उस इलाक़े में किसी को कोई दैवी स्वप्न नहीं आया .