Dog controversy: बहस के बीच-3 . तीन दिन के इलाज के बाद वह बच्ची चल बसी जिस पर श्वानों ने अटैक किया था !

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Dog controversy: बहस के बीच-3 . तीन दिन के इलाज के बाद वह बच्ची चल बसी जिस पर श्वानों ने अटैक किया था !

शीला मिश्रा ,भोपाल 

इस कुत्ता प्रसंग में मेरे भी विचार    *अनुभव एक 

सबके अपने शौक होते हैं और उन्हें पूरा करके असीम आनंद की प्राप्ति भी होती है। जिन्हें श्वान पसंद हैं ,वे जितने चाहे श्वान पाल सकते हैं किन्तु आपका शौक दूसरों की मुसीबत बन जाये तो फिर उस पर विचार करना स्वाभाविक है। हमारी सोसायटी में दो -तीन ऐसे श्वान प्रेमी हैं कि उन्होंने श्वान पाल तो लिया है पर घुमाने कौन ले जाये तो सुबह -शाम सोसायटी के गार्डन में छोड़ देते हैं । जब हमलोग घूमने जाएं तो अपने जूते में उनकी गंदगी भी घर आ जाये। हम बहुत परेशान…,बहुत बार आपत्ति ली गई पर वे अपनी हरकतों से बाज नहीं आये यहाँ तक कि बदबू के मारे वहां पड़ी बेंचों पर भी नहीं बैठ सकते तो हम जैसे टहलने वालों ने पार्क जाना ही बंद कर दिया और तो और बच्चों का खेलना भी बंद।
दूसरा अनुभव, हमारे पड़ोस में दो साल से एक नया परिवार रहने आया है ।वो भी श्वान प्रेमी लेकिन कोई श्वान पाला नहीं है। एक स्ट्रीट डॉग पर प्यार उमड़ आया तो घर के सामने बैठा लिया। उसका खाना -पानी गेट पर रख देते हैं। घुमाना – नहाना -इंजेक्शन लगवाना ,इन सब झंझटों से दूर केवल रोटी -पानी तक का प्यार ।

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घूमने के शौकीन हैं तो घर की पूरी तरह से रक्षा की गारंटी हो गई। दिक्कत तब शुरु हुई जब उस डॉग के खाने का बर्तन सरककर हमारे गेट के सामने(हम-दोनों के गेट अगल-बगल ही हैं )आने लगा तो अब हमारा घर से बाहर आना जाना मुश्किल क्योंकि वो तो उसका इलाका हो गया।कई बार शिकायत की पर कोई असर नहीं ।एक बार हम कहीं से लौटे ,परिचित ने सोसायटी के मेन गेट पर उतार दिया जब हम अपने घर के गेट के पास पहुंचे तो श्वान महाराज भौंकते हुए हम पर लपक पड़े(क्योंकि वो अपना खाना लेकर हमारी गाड़ी के नीचे बैठकर खा रहा था ),हम उल्टे पैर वापिस दौड़े ।सामने से एक सज्जन ने देखा तो उन्होंने हमारी गाड़ी के नीचे से निकालकर उसे भगाया । किसी तरह हम अपने घर के अंदर आये। एक -दो गिलास पानी पीकर थोड़ा शांत होकर पड़ोसी को फोन लगाकर घटना के बारे में बताया तो उनका जवाब कि मैं घर के बाहर हूँ । हद तो तब हो गई जब पिछली दीपावली पर हमारे बच्चे आये तो हमारे पोते- पोतियों का घर के बाहर खेलना मुश्किल क्योंकि वो तो उनका इलाका है ।एक -दो बार जब वो जोर से लपका तो फिर उनसे शिकायत की लेकिन वही ढाक के तीन पात। नगर -निगम में शिकायत की तो उनके कर्मचारी आये ।तब उस दिन एक नहीं, दो -तीन श्वान जितने भी सोसायटी में ऐसे ही घूम रहे थे तो उनको ले जाने लगे फिर तो श्वान प्रेमियों ने जो हंगामा किया कि वे कर्मचारी अपनी जान बचाकर भागे। अब आलम ये है कि दो तीन नहीं अब चार पाँच श्वान तो सोसायटी में घूमते ही रहते हैं । उनके तथाकथित प्रेमी चैन से घर में रहते हैं और हम जैसे परिवार डरे -सहमे अपने घर में बंद ।

*अनुभव दो -दुखद मार्मिक प्रसंग 

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अब कहानी एक परिवार की …, बहुत इलाज के बाद एक पति -पत्नी को विवाह के दस साल बाद पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई। जब वह करीब सात साल की थी , छुट्टियों में वह मम्मी-पापा के साथ नानी के घर गई। एक शाम नानी उसे लेकर मंदिर जा रहीं थीं तभी दो -तीन आवारा श्वानों ने उस पर भौंकते हुए हमला कर दिया।उसे बचाने के चक्कर में नानी गिर पड़ीं, श्वानों ने बच्ची को नोच डाला। कुछ राहगीरों द्वारा उन्हें अस्पताल ले जाया गया।नानी के पैर में फ्रेक्चर निकला और तीन दिन के इलाज के बाद वह बच्ची चल बसी। मम्मी -पापा अभी तक शॉक में हैं। मम्मी ने नौकरी छोड़ दी है,उनका डिप्रेशन का इलाज हो रहा है।

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यह बताने का उद्देश्य यही है कि किसी भी पहलू के दो पक्ष होते हैं। अपने शौक के कारण किसी दूसरे को नुकसान पहुंचाना कभी भी सही नहीं ठहराया जा सकता। संवेदनशीलता मूक पशु के लिए है परन्तु इंसानों के लिए नहीं तो यह संवेदना नहीं स्वार्थ है। जिसने अपने परिवार का सदस्य खोया है ,उनकी दृष्टि से भी विचार किया जाना चाहिए।अगर श्वान अब गुस्सैल व हमलावर हो रहें हैं तो इस समस्या के निदान के लिए सहयोग करना चाहिए ।

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शीला मिश्रा ,भोपाल 

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