Dr Mohan Yadav: मोहन यादव यानी महाकाल के सपूत!
निरुक्त भार्गव की खास रिपोर्ट
उज्जैन पर महाकाल जी की घनघोर कृपा बरस रही है! सौगातों की भी झड़ी लगी है, उज्जैन अंचल में! इन ऐतिहासिक अनुकूलताओं के पीछे राजनीतिक स्थिरता एक बड़ा फैक्टर कहा जा सकता है, मगर नए निज़ाम की सोच, दूरंदेशिता और दृढ़-प्रतिज्ञता के नंबर कहीं अधिक हैं! कहना होगा कि मोहन यादव महाकाल के पुत्र होने के अपने फ़र्ज़ को जबरदस्त प्रभावी ढंग से निभा रहे हैं!
सावन के महीने में राजाधिराज महाकाल के चर्चे बुलंदियों को छू रहे हैं. हर सोमवार को बाबा पूरे लाव-लश्कर के साथ हमेशा की तरह नगर भ्रमण पर निकल रहे हैं. ये सिलसिला 22 जुलाई से आरम्भ हुआ है और ठेठ 02 सितम्बर तक चलेगा. अधिकांश सवारी श्रावण मास में निकलेंगी और कुछ भादवा में भी. आखिरी सवारी को शाही सवारी कहा जाता है. बहरहाल, इस वर्ष सवारियों के निकलने के वैभव ने तो मानों पुराने सभी रिकॉर्ड पीछे छोड़ दिए हैं. लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई और गहराई—हरेक दृष्टिकोण से सवारियां विहंगम स्वरूप ले चुकी हैं. आमजन जिस तरह से सवारी निकलने के अद्भुत क्षणों को अपनी स्मृति में कैद करने और भूतभावन महाकाल के दीदार करने को आतुर दिखाई देता है, उस लिहाज से भी अब परंपरागत सवारी एक नयनाभिराम कारवां में तब्दील हो चुकी है.
काल के प्रवाह में महाकाल जी की साल-दर-साल सावन-भादों-कार्तिक माहों में निकाले जाने वाली सवारियों की व्यवस्था और छटा में निरंतर परिवर्तन आते गए हैं. लेकिन, अबकी बार तो अकल्पनीय फीचर जुड़ते देखे जा सकते हैं. एक बड़ी आबादी को समेटे हुए आदिवासी अंचलों के पुरुष और महिला कलाकार जब अपनी-अपनी संस्कृति को प्रदर्शित करते हुए सवारी के आगे-आगे पारंपरिक वाद्यों और वेश-भूषाओं के साथ थिरकते नज़र आते हैं, तो जैसे पूरे ब्रह्माण्ड में ये संदेसा फ़ैल जाता है कि महादेव में सब एकाकार हो गए हैं! शासक और प्रशासक किस तरह श्रद्धा, विश्वास और अनुशासन प्रकट कर सकते हैं, उसका आभास 350 की संख्या वाले पुलिस बैंड ने सवारी के दौरान बखूबी किया! भक्तजन, स्कूल और कॉलेज सहित सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों और संस्थाओं के कोई 1500 कलाकार जब डमरूओं का सामूहिक नाद करते हैं, तो सहसा प्रतिध्वनित होता है कि नटराज प्रसन्न हो गए हैं! खास बात ये कि इस घटना को “वर्ल्ड रिकॉर्ड” के बतौर दर्ज भी कर लिया गया.
इस देश की मिट्टी में कितनी विविधता है, इसकी थाह कोई नहीं ले पाया है—आज तक! बावजूद इसके, मध्यप्रदेश की धरा की क्या-क्या विशेषताएं हैं, इसकी बहुत बेहतर मालूमात है, मोहन जी को! उनके विज़न, प्लानिंग, एक्सेक्यूशन और कमिटमेंट को समझना है, तो चले आइये उज्जैन! इसलिए नहीं कि वो मध्यप्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री हैं! महाभारत काल से लगाकर महाराजा विक्रमादित्य के कार्यकाल और उसके बाद के ग़ुलामी से लेकर आधुनिक काल के प्रसंगों के वो दीर्घ अध्येता हैं! मैदानी और प्रायोगिक ज्ञान के लिए वो अहर्निश रूप से घुमंतू बने रहते हैं! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘श्री महाकाल महालोक’ के पहले चरण के उद्घाटन से ठीक पूर्व उनके प्रयासों से उज्जैन में पहली बार राज्य मंत्रिमंडल की बैठक आहूत की गई थी, उसी ‘सम्राट विक्रमादित्य प्रशासनिक संकुल भवन’ में किसे अब नया कोठी पैलेस कहा जाता है. उस बैठक में महाकाल जी की एक बड़ी तस्वीर को आसंदी पर विराजित किया गया था और खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री और चीफ सेक्रेटरी सहित मंत्रीगण वगैरह दूसरी कुर्सियों पर बैठे. महाकाल जी सवारी में उज्जैन में एक पृथक पुलिस बैंड की स्थापना का प्रस्ताव उसी बैठक से निकलकर अब राज्य के हर जिले में कार्यान्वित हो रहा है!
महाकाल जी की अभी तीन ही सवारियां निकली हैं: चौथी 12 अगस्त, पांचवी 19 अगस्त, छठवीं 26 अगस्त और सातवीं यानी शाही सवारी 02 सितम्बर को निकलेगी. हर सवारी का निरालापन जिस गति और पैमाने पर तेजी से आकार ले रहा है, मालूम नहीं कि उसमें और कितने भव्य और दिव्य आयाम अभी जुड़ना बाकी हैं! नागरिक जीवन में हो रहे इस तरह के प्रयोग कई-कई किस्म के अवसर खोल रहे हैं और परम आनंद की चाह भी इनसे संतुष्टी ग्रहण कर सकती है! इस स्टेज पर प्राय: ‘अनप्रेडिक्टेबल’ मोहन जी और उनकी टीम कितनी ख़ामोशी मगर गंभीरता से क्या नए चार चांद लगाने वाली है, उसकी आहट सुनने के लिए तो ‘भस्मारती’ में जाना होगा…..