कोयले की कमी से जूझती भारत की अर्थव्यवस्था

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कोयले की कमी से जूझती भारत की अर्थव्यवस्था

मई के महीने में जब पारा एकदम ऊपर जा रहा है, तब कोयले की कमी से होने वाली बिजली की कमी अखरने वाली है। देश के कई भागों में तो 10-10 घंटे बिजली कटौती हो रही है। भारतीय रेलवे ने 753 यात्री रेल गाड़ियों को रद्द कर दिया है। सबसे बड़ा खतरा यह है कि कोरोना के लॉकडाउन के बाद नीचे गिरती हुई अर्थव्यवस्था को कोयले की कमी और नीचे ले जाने पर आमादा है।

करीब एक साल से देश में कोयले की कमी बनी हुई थी। भारतीय रेलवे ने कोयला खदानों से कोयले को बिजलीघरों में पहुंचाने के लिए विशेष प्रयास भी किए थे, जिसके कारण संकट खत्म तो नहीं हुआ, लेकिन टल गया। अब हाल यह है कि बिजलीघरों के पास बिजली बनाने के पास कोयला नहीं है और बिजली की कमी के कारण रेलगाड़ियों को कोयला खदानों तक ले जाना मुश्किल हो रहा है।

दिल्ली सरकार ने पिछले सप्ताह ही केन्द्र सरकार को चिट्‌ठी लिखकर मांग की थी कि कोयले की कमी से जूझते बिजलीघरों को जरूरी कोयला पहुंचाया जाए, ताकि बिजली की कमी न हो। इसके जवाब में केन्द्रीय कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि देश में कोयले की कोई कमी नहीं है। समस्या ये है कि बिजली की मांग अचानक बहुत ज्यादा बढ़ गई है।

कोयले की कमी का हाल यह है कि देश के 86 बिजलीघरों के पास कोयले का जरूरी स्टॉक नहीं बचा है। कोयला मंत्री का दावा है कि देश में अभी बिजली की जितनी मांग है, उतनी इतिहास में पहले कभी नहीं रही। कोयला मंत्री के अनुसार अभी देश में 201.066 गीगा वॉट ((एक गीगावाट = एक हज़ार मेगावॉट बिजली की आवश्यकता है। मंत्री जी का दावा तो यह भी था कि सभी बिजलीघरों के पास 10 दिन का कोयला स्टॉक में हमेशा रहता है और अभी भी है। अगर ऐसा है, तो फिर देश में बिजली का संकट क्यों आया हुआ है? कभी मेंटेनेंस के नाम पर, तो कभी किसी और बहाने पॉवर कट क्यों हो रहा है?

कोयला मंत्रालय बिजली की कमी के लिए भारतीय रेलवे को दोषी कह रहा है। उसका कहना है कि हमारे पास कोयला तो है, लेकिन भारतीय रेल उस कोयले को बिजलीघरों तक नहीं पहुंचा पा रही है। कोयला मंत्रालय का यह भी कहना है कि समुद्र के किनारे बनाए गए अधिकांश बिजलीघर पूरी बिजली नहीं बना रहे है। रूस और यूक्रेन के युद्ध की वजह से समुद्री मार्ग से आयात होने वाला कोयला नहीं आ पा रहा है।

भारतीय रेलवे ने अपनी परेशानी जाहिर कि है उसका कहना है कि विदेश से आना वाला कोयला जहाजों में लदकर नहीं आ पा रहा है। इस कारण समुद्र के किनारे बने थर्मल पॉवर प्लांट को जो कोयला लेकर रेलवे के वेगन जाते है, उन्हें वापस खाली आना पड़ता है। उनकी दूरियां ज्यादा है, इसलिए कोयला वहां पहुंचाना महंगा और समय गंवाने वाला है। इन कारणों से वे बिजलीघर कम बिजली बना रहे है। आयातित कोयले के दाम भी आसमान पर हैं। कोयला मंत्री कह रहे हैं कि भारत में अभी सवा सात करोड़ टन से ज्यादा कोयला स्टॉक में है। इसलिए घबराने की कोई बात नहीं। कोयले को बिजलीघरों तक पहुंचाने के लिए मालगाड़ियों की संख्या बढ़ा दी गई है, इस कारण रेल्वे ने यात्री ट्रेनों की संख्या कम की है। यह कहना सही नहीं है कि देश में कोयले की कोई कमी है।

जो भी हो इस पूरे प्रकरण में भारत सरकार के ही कोयला, रेल्वे और पॉवर सप्लाय विभागों की कमियां उजागर हुई हैं। इन तीनों विभागों में तालमेल की कमी का असर आम जनता पर पड़ रहा है। अभी देश में 173 थर्मल पॉवर प्लांट हैं, जहां कोयले से बिजली बनती है। इनमें से 150 पॉवर प्लांट में भारतीय खदानों का कोयला जाता है और 23 प्लांट में आयातित  कोयला इस्तेमाल होता है।

ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर फेडरेशन का कहना है कि भारत में 80 प्रतिशत थर्मल पॉवर प्लांट आयातित कोयले का उपयोग करते हैं। आयातित कोयला महंगा होने से बिजली महंगी हो रही है। यह एक असामान्य स्थिति है। देश को महंगे दामों पर कोयला आयात करने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। इन कारणों से पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान और उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर बिजली कटौती करनी पड़ रही है। जम्मू-कश्मीर में नियमित रूप से 6 से 7 घंटे तक बिजली कटौती हो रही है। कश्मीर पॉवर डिस्ट्रीब्यूशन कार्पोरेशन का कहना है कि प्रदेश में 1600 मेगावॉट बिजली की मांग है, जबकि सप्लाय केवल 900 से 1100 मेगावॉट तक ही हो पा रही है।

राजस्थान में 6 से 7 घंटे बिजली कटौती हो रही है। उत्तरप्रदेश में 4 में से 3 थर्मल पॉवर प्लांट कोयले की कमी से जूझ रहे है। महाराष्ट्र में 7 में से 6 पॉवर प्लांट बिजली की कमी से जूझ रहे हैं। मध्यप्रदेश में 4 में से 3 पॉवर प्लांट में कोयला संकट पैदा हो गया है।

दक्षिण के राज्यों में आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के बिजलीघर भी कोयले की कमी से जूझ रहे हैं। विपक्ष के नेताओं का दावा है कि बिजली कटौती की समय सीमा 2 से 12 घंटे तक के बीच है।

इस पूरे मामले में यह बात भी सामने आई है कि कोयला संकट का कारण पेमेंट का संकट रहा है। विभिन्न सरकारी विभागों में तालमेल की कमी है। कोल इंडिया को थर्मल प्लांट वालों से 12 हजार 300 करोड़ से अधिक रुपये  लेना बाकी हैं। बिजली वितरण करने वाली कंपनियों को विभिन्न बिजली बनाने वाली कंपनियों को 110 लाख करोड़ रुपये चुकाने हैं। बिजली कंपनियों को विभिन्न उपभोक्ताओं से 125 लाख करोड़ रुपये  वसूलने हैं। कुल मिलाकर मुफ्त बिजली का फॉर्मूला बिजली की कमी का कारण बनता नजर आता है।

इस सब में चिंता की बात यह है कि बिजली की यह कमी देश की अर्थव्यवस्था को पीछे धकेलने की तरफ ले जा रही है। कोरोना काल के बाद देश के उद्योग धंधे अपनी पटरी पर आने की तैयारी कर रहे थे कि बिजली संकट और महंगी बिजली ने उसका रास्ता रोक दिया।

भारत में ऐसा बिजली संकट पिछले 6 साल में नहीं आया। संकट के बाद भी बिजली की मांग लगातार बढ़ती ही जा रही है। बिजली की कमी कश्मीर से कन्याकुमारी तक बराबर बनी हुई है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने इस बारे में खुलकर कहा है कि बिजली की कमी के लिए कोयला, रेल्वे और बिजली विभाग के मंत्रियों की अक्षमता दोषी है। इन मंत्रियों में आपस में तालमेल नहीं है। बीच में भले ही रेल मंत्री यह दावा करते रहे हो कि बिजलीघरों तक बिजली पहुंचाने के लिए रेल्वे ने 3-3 मालगाड़ियों को मिलाकर लंबी गाड़ियां चलाई है, लेकिन उसका असर नजर नहीं आ रहा है। बिजली कटौती ने नागरिकों के चेहरे पर पसीना बढ़ा दिया है और अर्थव्यवस्था की धीमी हो रही रफ्तार ने पूरी अर्थव्यवस्था पर ही ब्रेक लगाने का काम किया है।