हमारे पड़ौसी देशों की एक बड़ी खूबी है। वह यह कि जब भी वहाँ की सत्तारुढ़ पार्टियाँ और नेताओं को अपनी कुर्सी के लाले पड़ने लगते हैं, उन्हें भारत की याद आ जाती है। भारत ही उन्हें जनता के गुस्से से बचा पाता है। होता यह है कि वे कोई न कोई ऐसा बहाना ढूंढ निकालते हैं, जो उन्हें भारत के विरुद्ध ज़हर उगलने के लिए तैयार कर देता है। यह प्रवृत्ति हम नेपाल, श्रीलंका और मालदीव— जैसे पड़ौसी मित्र-राष्ट्रों में कई बार देख चुके हैं लेकिन पाकिस्तान में तो यह नेताओं का ब्रह्मास्त्र है। अब आजकल इमरान खान बिना किसी कारण ही आए दिन भारत पर आक्रमण करते रहते हैं। कश्मीर की धारा 370 को लेकर कभी इस्लामाबाद और कभी न्यूयार्क में संयुक्तराष्ट्र संघ के मंच पर ऐसे बयान दिए जाते हैं, जैसे कि वह धारा भारत के एक प्रांत से नहीं, पाकिस्तान से ही हटाई गई है। हिजाब के सवाल को लेकर भारत की इस्लामी संस्थाएं और मौलाना वगैरह काफी संजीदा रुख अपनाए हुए हैं लेकिन पाकिस्तान के नेताओं ने भारत पर जबर्दस्त बम-वर्षा की है। उन्हें चाहिए था कि वे पाकिस्तान को जिन्ना के सपनों का एक आदर्श इस्लामी राज्य बना देते और पाकिस्तानी मुसलमानों को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ मुसलमान कहलवा देते लेकिन हुआ क्या? इस्लाम के नाम पर बना दुनिया का यह एक मात्र राष्ट्र अपने आप को डेढ़ हजार साल पुरानी अरबों की बासी परंपराओं में घसीट कर ले जा रहा है। अगर हिजाब इस्लाम का अनिवार्य पहनावा है तो बेनज़ीर भुट्टो को तो मैंने कभी हिजाब या बुर्का पहने हुए नहीं देखा। वे मुझसे दुबई, लंदन, लाहौर और दिल्ली में कई बार मिली हैं। मियां नवाज़ शरीफ की बेटी मरियम बड़ी-बड़ी जनसभाओं में क्या हिजाब पहनकर भाषण देती हैं? क्या बेनज़ीर और मरियम मुसलमान नहीं हैं? क्या पाकिस्तान की फिल्मों में सारी हिरोइनें हिजाब पहने रहती हैं? पाकिस्तान के नेताओं को हिजाब या बेहिजाब से कोई परेशानी नहीं है। वे तो बस भारत-विरोध का बहाना ढूंढते रहते हैं। वैसे इमरान खान खुद काफी प्रगतिशील मुसलमान हैं लेकिन आजकल उनकी दाल थोड़ी पतली हो रही है। उनकी पार्टी से यदि दो अन्य पार्टियों के 12 सांसदों का समर्थन हट जाए तो 342 सदस्यों की संसद में उनकी सरकार गिर सकती है। पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति पहले ही बहुत खराब है। अमेरिका उसे कांटे से भी छूने के लिए तैयार नहीं है। इमरान अब चीन के बाद रूस की शरण में जाने को तैयार हैं। पाकिस्तान में श्रीलंका के नागरिक प्रियंतकुमार की तौहीन-कुरान के नाम पर जिस तरह हत्या की गई, पिछले हफ्ते मुश्ताक अहमद नामक विक्षिप्त व्यक्ति को पत्थर मार-मारकर खत्म किया गया और अब एक शिया बुद्धिजीवी पर डंडों की बरसात की गई, उससे यही लगता है कि इमरान-जैसे प्रगतिशील विचारों का नेता भी बिल्कुल बेबस है। बुतपरस्ती (जड़ पूजा) का विरोध करनेवाले इस्लामी देश में यह कैसी बुतपरस्ती चल रही है? आम इंसान का बर्ताव भी बुतों (जड़ या पत्थरों) की तरह हो गया है।
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