
Dr. VP Pandey: एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन पद पर सीधी भर्ती के खिलाफ लड़ते-लड़ते रिटायर हो गए
••• एमजीएम मेडिकल कॉलेज के एचओडी मेडिसिन डॉ वीपी पांडे रिटायर, डॉ धर्मेंद्र झंवर को प्रभार
•••पहले कोर्ट गए थे जूनियर डॉ यादव को चार्ज देने पर, कोर्ट का फैसले के बाद तीन महीने डीन रहे
•••अब वरिष्ठता की अनदेखी और सीधी भर्ती से डॉ घनघोरिया को डीन बनाने के खिलाफ लगा रखी है याचिका
कीर्ति राणा
इंदौर।एमजीएम मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ वीपी पांडे (एचओडी मेडिसिन) ने डीन पद पर सीधी भर्ती के खिलाफ वैधानिक लड़ाई शुरु की थी, पौने दो साल से कोर्ट में उनकी याचिका पर सुनवाई चल रही है, फैसला जब भी आए लेकिन डॉ पांडे आज एमजीएम मेडिकल कॉलेज से रिटायर हो गए। डॉ पांडे ने भले ही अपना हक मारे जाने के खिलाफ सीधी भर्ती के विरोध में न्यायालय की शरण ली थी लेकिन याचिका में उठाए मुद्दों पर अन्य शासकीय विभागों के कर्मचारियों की भी रुचि इसलिये थी कि अन्य शासकीय विभागों में भी सीधी भर्ती के कारण उनके हक प्रभावित हुए हैं।
डॉ पांडे पहली बार न्यायालय की शरण में तब गए थे जब 30 नवंबर 23 को डीन डॉ संजय दीक्षित ने रिटायर होने पर एमवाय अस्पताल के सुपरिटेंडेंट डॉ. अशोक यादव को चार्ज सौंपा था। इस पर डॉ. पांडे ने हाई कोर्ट में अपील की थी। उसमें हवाला दिया गया था कि वे सीनियर हैं, उनसे 15 साल जूनियर डॉ यादव को कैसे चार्ज दिया गया। डॉ पांडे ने शासन के अगले आदेश का इंतजार करने से पहले ही डीन पद पर कार्य करना शुरु कर दिया था। तब प्रभारी डीन डॉ अशोक यादव ने लोक स्वास्थ्य व चिकित्सा मंत्री को लिखे पत्र में स्थिति से अवगत कराने के साथ ही मार्गदर्शन मांगा था कि डॉ. वीपी पांडे बिना शासन की स्वीकृति, आदेश और मेरे द्वारा चार्ज सौंपे बिना ही डीन की कुर्सी पर बैठकर काम करने लगे हैं। इस तरह से न सिर्फ डीन पद की गरिमा भंग हुई है बल्कि विवाद की स्थिति भी बन गई है।
जूनियर को डीन का प्रभार सौंपने के खिलाफ डॉ वीपी पांडे ने हाईकोर्ट इंदौर की खंडपीठ में याचिका भी लगाई थी। इस विवाद में हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने तब (10 दिसंबर 23 को) फैसला सुनाया था। तत्कालीन जस्टिस विजय कुमार शुक्ला ने स्पष्ट किया था कि किसी सीनियर प्रोफेसर को जूनियर के अधीन काम करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। जस्टिस शुक्ला ने सरकार से स्पष्टीकरण मांगा था कि डॉ. पांडे से जूनियर डॉ. अशोक यादव को किस आधार पर डीन का प्रभार सौंपा गया। कोर्ट ने यह पाया कि सरकार ने कोई तथ्य या दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए हैं। हाई कोर्ट ने वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. वेद प्रकाश पांडे को एमजीएम मेडिकल कॉलेज, इंदौर का डीन नियुक्त करने का आदेश दिया था। कोर्ट के इस आदेश के बाद डॉ पांडे दिसंबर 24 से फरवरी 25 तक डीन पद पर रहे।
इस बीच शासन ने सीधी भर्ती के तहत डॉ अरविंद घनघोरिया (डीन नीमच मेडिकल कॉलेज) को एमजीएम मेडिकल कॉलेज पदस्थ कर दिया था। इस आदेश के खिलाफ डॉ पांडे ने डीन के पद पर सीधी भर्ती से नियुक्ति और वरिष्ठता की अनदेखी को चुनौती देने वाली याचिका पौने दो साल पहले लगाई थी, इस पर कोर्ट का निर्णय आना बाकी है। इस बीच शुक्रवार 31 अक्टूबर को डॉ पांडे रिटायर हो गए हैं।कोर्ट का निर्णय यदि डॉ पांडे के पक्ष में आता है तो शासन को डीन पद वाले सारे हित लाभ देना पड़ सकते हैं। हाईकोर्ट में वरिष्ठ अभिभाषक अमित अग्रवाल और मनोज मानव उनके केस की पैरवी कर रहे हैं। एमजीएम मेडिकल कॉलेज इंदौर सहित प्रदेश के मेडिकल कॉलेज नीमच और श्योपुर में भी सीधी भर्ती से नियुक्त का मामला लंबित है। डॉ पांडे ने याचिका में कहा है कि सीधी भर्ती की अपेक्षा सरकार वरिष्ठता को प्रमुखता दे।
कोरोना की दूसरी लहर में जब देश में ब्लेक फंगस के मरीजों की संख्या तेदी से बढ़ रही थी तब एमवायएच में मप्र सहित, गुजरात, राजस्थान आदि प्रदेशों के 900 से अधिक ऐसे मरीजों का उपचार और राहत से एमजीएम मेडिकल कॉलेज ने देश में पहचान बनाई थी। तब डीन डॉ दीक्षित थे और एमवायएच के अधीक्षक डॉ पीएस ठाकुर (फोरेंसिक) थे। डॉ ठाकुर ने कोविड मरीजों के साथ ही ब्लेक फंगस के मरीजों के बेहतर उपचार में समन्वय बनाया था। ब्लेक फंगस के मरीजों को उपचार से मिली राहत की केस स्टडी को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिसर्च पेपर में उल्लेख हुआ था।






