ग्वालियर की धड़कनों को बयां करती है दुष्यंत की डॉक्यूमेंट्री…
ग्वालियर: दुष्यंत अरोरा ग्वालियर के लोगों के लिए अनजान और अपरिचित हो सकते हैं लेकिन उन्होंने ग्वालियर को जितना जिया, भरपूर जिया है। उन्होंने ग्वालियर की विरासत को, ग्वालियर की धड़कनों को न सिर्फ महसूस किया है बल्कि किताबों से कैसे रिश्ता जोड़ा जाए ,इस पर अपना नजरिया हम सभी के बीच रखा है। इससे पहले कि उनके काम पर चर्चा की जाए पहले मैं यह बता दूं कि दुष्यंत युवा हैं और चितकारा विश्वविद्यालय मोहाली, पंजाब में पत्रकारिता परास्नातक के छात्र भी। बनारस, चंडीगढ़,पन्ना,सीधी, जबलपुर, इंदोर आदि शहरों में अपना बचपन बिताने और पढ़ाई करने वाले दुष्यंत अरोरा ग्वालियर के मूल बाशिंदे भी नहीं है। लेकिन उन्होंने ग्वालियर को भरपूर जिया और महसूस किया है।
सोशल मीडिया पर उनकी एक डॉक्यूमेंट्री को बहुत देखा और पसंद किया जा रहा है। यह उन किताबों पर है जो हमें जिंदगी को जीने का सलीका सिखाती हैं और दुनिया से परिचित कराती हैं। दुष्यंत की यह डॉक्यूमेंट्री ग्वालियर की उस सेंट्रल लाइब्रेरी पर केंद्रित है, जिसने बदलते वक्त के साथ कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। इसी उतार-चढ़ाव को दुष्यंत अरोरा ने अपनी डॉक्यूमेंट्री में समेटा है। हजारों किताबें के साथ साहित्य की समृद्ध परंपरा को जिंदा रखने वाली ग्वालियर की सेंट्रल लाइब्रेरी अपने आप में इतिहास है। खास बात यह है कि देश के संविधान की मूल प्रति भी इसी लाइब्रेरी में है। वक्त के साथ चलने और कुछ नया करने के जुनूनी दुष्यंत अरोरा ने जिस सेंट्रल लाइब्रेरी के इतिहास और इसके भविष्य की योजनाओं को अपनी डॉक्यूमेंट्री में प्रस्तुत किया है, वह अद्भुत है। डॉक्यूमेंट्री में स्वर, स्क्रिप्ट और निर्देशन दुष्यंत अरोरा का ही है। वह पेशेवर नहीं है लेकिन डॉक्यूमेंट्री के प्रस्तुतीकरण और उनके काम को देखकर नहीं लगता कि वह शौकिया या ऐमेच्योर हैं। अपनी डॉक्यूमेंट्री में उन्होंने यह दिखाने भी कोशिश की कि किताब सिर्फ किताब नहीं होती… किताब बहुत कुछ कहती है। बस जरूरत इस बात की है कि हम कैसे किताबों से जुडें। डॉक्यूमेंट्री सिर्फ किताबों पर ही नहीं ग्वालियर की समृद्ध विरासत, जिंदादिली की भी झलक पेश करती है।
दुष्यंत अरोरा की डॉक्यूमेंट्री को देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।