Earth Day: धरती है तो हम है यह कथन हमे हर सांस के साथ याद रखना पड़ेगा।

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पंडित दीनानाथ व्यास स्मृति प्रतिष्ठा समिति भोपाल द्वारा पृथ्वी दिवस पर   संगोष्ठी

Earth Day: “धरती है तो हम है यह कथन हमे हर सांस के साथ याद रखना पड़ेगा”

पंडित दीनानाथ व्यास स्मृति प्रतिष्ठा समिति भोपाल  द्वारा पृथ्वी दिवस पर “रचना और विचार” एक अनूठी संगोष्ठी  आयोजित की गई .पृथ्वी दिवस  वार्षिक आयोजन है जिसे 22 अप्रैल को दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण के लिए आयोजित किया जाता है। इसकी स्थापना अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने 1970 में एक पर्यावरण शिक्षा के रूप की थी। अब इसे 192 से अधिक देशों में प्रति वर्ष मनाया जाता है। पृथ्वी दिवस का महत्व इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि, इस दिन हमें ग्लोबल वार्मिंग के बारे में पर्यावरणविदों के माध्यम से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का पता चलता है। पृथ्वी दिवस जीवन संपदा को बचाने व पर्यावरण को ठीक रखने के बारे में जागरूक करता है। जनसंख्या वृद्धि ने प्राकृतिक संसाधनों पर अनावश्यक बोझ डाला है, संसाधनों के सही इस्तेमाल के लिए पृथ्वी दिवस जैसे कार्यक्रमों का महत्व बढ़ गया है।

संगोष्ठी में अपने विचार और पर्यावरण संरक्षण के लिए आप क्या कर रहे है और क्या करना चाहते हैं इस बात पर केन्द्रित करते हुए विचार आमंत्रित किये गए .

1.लोक चित्रकार वन्दिता श्रीवास्तव ने अपने विचार और प्रयास साझा किये “हम और हमारी धरती का जन्म जन्म का साथ हैधरती है तो हम है यह कथन हमे हर सांस के साथ याद रखना पड़ेगा। हम सब शहर वासी है। शहर मे हमे क्या करना है इसका ध्यान रखना है। सर्वप्रथम कार्बन फूटप्रिंट कम से कम करना है। अपने परिसर को हरित रखना है। जितना हो सके काम के लिए पैदल चलना है।बीजो को एकत्र कर पौधे बना नर्सरी मे देना आस पास देना व उपहार मे देना।जहां भी रह रहे हैं उस जगह को पर्यावरण मित्र बनाना है। हम छोटी छोटी कोशिश करते रहते हैं.’उन्होंने “भू” शब्द को उसके अलग-अलग नाम और अर्थ का हाइकु प्रस्तुत किया –

“भू”
भूमि
धरा
धरती
धरती
वसुन्धरा💚💚
धरती दिवस-

शिक्षिका एवं लेखिका संजू पाठक अपनी कविता” मैं हूं वसुधा! “में धरती को  संयम, धैर्य, गांभीर्य,अनुशासन
जैसे मानवीय गुणों की पर्याय  और प्रेरण बताया ।

मैं हूं वसुधा!
है बड़ा ही गहरा
मेरा और समय का संबंध।
परंतु नहीं है कोई अनुबंध।।

कहते हैं लोग
मैं अद्भुत रहस्य की खान हूं।
परंतु नहीं है ऐसा
कि मैं खुद से अनजान हूं।।

संयम, धैर्य, गांभीर्य,अनुशासन
जैसे मानवीय गुणों की मैं हूं पर्याय ।
प्रत्येक मनुष्य के जीवन से
जुड़े हैं यह समस्त अध्याय ।।

मुझसे ही तो है,
समस्त चर अचर का सौंदर्य ।
परिपूर्ण है मुझसे ही तो
मानव जीवन में माधुर्य ।।

कालचक्र के साथ ही
गतिमान है मेरी रफ्तार ।
नहीं चाहती हूं करना कदापि
कोई अवांछित प्रहार ।।

क्यों दोष देते हो मुझे?
वसुंधरा अब कुपित है ।
स्वार्थ लोलुपता में
मानव स्वयं ही भ्रमित है ।।

वस्त्रहीन सा कर दिया,
काटे वृक्ष असंख्य।
प्राणवायु को तरसते,
सिलेंडर हुए नगण्य।।

अरे ! संरक्षण करो
मेरे संसाधनों का
अभी समय है रे स्वार्थी मनुष्य ।
अन्यथा आने वाली पीढ़ियों का
कदापि सुरक्षित नहीं है भविष्य।।~•संजू पाठक

 लेखिका  संध्या राणे   ने कहा “  हमारी प्रकृति के प्रति सद्भावना कहां रही?निरंतर विकास की दौड़ में वे दम तोड़ रही।
यूं ही हम निरंतर जंगलों को काटते रहे तो यह जो प्रकृति है ना अपना संतुलन खो रही।यूं ही अचानक मरुभूमि पर जलजले नहीं चले आते हैं,पहले प्रकृति से छेड़छाड़ इंसान खुद करते हैं फिर अपने हिस्से की पनौती विनाश के रूप में पाते हैं.इसप्रकृति में हो रहे विराट परिवर्तन को देखें और समझे ।यह न सोचे कि हम तो मर  खप जाएंगे अगली पीढ़ी को यह त्रासदी झेलनी है वे ही अब इन आपदाओं निपटेंगे।भगीरथ प्रयास हमें अभी से करने होंगे।भर – भर कर उसने हमें क्या कुछ नहीं दिया? पर हमने उसके महत्व को कम किया।प्रकृति भी अब बदल चुकी है, अब वह इंसान से रूठ चुकी है औरअपने नए-नए रौद्र रूप से हमें प्रभावित कर रही है।देख प्रकृति का रौद्र रूप क्यों भयाकुल और मौन अब इंसान है।अब जिंदगी हमारी डगमगाती  नाव सी हो गई है कब स्थिर गति से नाव जिंदगी की चलेगी कह पाना मुश्किल है।क्योंकि कहीं तेज ताप, कहीं अति ओलावृष्टि, कहीं बाढ़ तो कहीं सुखे की स्थिति ।यह हम इंसानों के ही कर्मों के फल है जो देंगे वही तो ना हम पाएंगे यही तो सृष्टि का नियम है।”

नीलम सिंह सूर्यवंशी ने इस वर्ष की थीम पर बात करते हुए विचार रखे “हर वर्ष पृथ्वी दिवस एक थीम के साथ मनाया जाता है , इस वर्ष इसकी थीम है ‘प्लेनेट वर्सेज़ प्लास्टिक’
इस थीम का उद्देश्य सिंगल यूज़ प्लास्टिक के उपयोग को समाप्त करना और इसके ऑप्शंस की तलाश पर ज़ोर देना।

‘ न होती सृष्टि वसुधा की,कोई शृंगार न होता।
न कोई घर कहीं बसता,कोई परिवार न होता ‘।।

प्लास्टिक प्रदूषण उसके 'डीएनए' से किया जा सकता है नियंत्रित, बन चुका है विश्वव्यापी समस्या - Plastic pollution can be controlled by its DNA has become a worldwide problem

मानव स्वभाव में है कि वो जहाँ रहता है वहाँ की साफ़ सफ़ाई, सुख सुविधा का ध्यान रखता है। किंतु वह भूल जाता है कि 1000,2000 स्क्वेयर फिट नहीं बल्कि समूची धरती ही उसका घर है।
जिन सुख सुविधाओं का वह उपयोग कर रहा है , उसके कारण पर्यावरण को कितना अधिक नुक़सान हो रहा है।
जिस ए सी का उपयोग करके स्वयं तो आराम दायक स्थिति में रहता है किन्तु बाहर मूक प्राणियो के लिये वातावरण और अधिक गर्म हो जाता है।
जिस प्लास्टिक का उपयोग करके वो आसानी फ़ेक देता है उसी के कारण पृथ्वी का तापमान और गंदगी बढ़ रही है साथ ही मवेशी खा लेते है और इसकी क़ीमत उनको जान देकर चुकाना पड़ती है।
विकास के नाम पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है ,जिससे पानी के लिए हर जगह हाहाकार मचा हुआ है ।

लोगो ने हमारी जीवन दायिनी नदियों को भी हर जगह गंदगी से पाट दिया है।
सरकार पर्यावरण बचाने के लिए तो अपने स्तर से हर संभव प्रयास कर रही है ।लेकिन उससे भी ज़्यादा ज़रूरी लोगो को जागरूक होने की,जिस तरह इंदौर को सफ़ाई के लिए दुनिया भर में जाना जाता है , यह सिर्फ़ लोगो के सहयोग के कारण ही संभव हो पाया है , उसी तरह पर्यावरण को बचाने के लिए भी लोगो को सहयोग करना होगा।

कवि और लेखिका नीति अग्निहोत्री ने  चेतावनी देते हुए आगाह किया कि,पर्यावरण हमारी पहली प्राथमिकता में होनी चाहिए,क्योंकि, प्रकृति के कारण हम जीवित हैं,परन्तु , पर्यावरण दिवस आने पर चिंता करते,फिर एक वर्ष कुंभकर्ण की नींद सोते।पर्यावरण के लिए हम गंभीर नहीं हैं,धरती की तपन निरंतर बढ़ती जा रही.ग्लेशियर भी अधिक पिघलते जा रहें हैंओजोन की परत में छिद्र बढ़ते जाते।कहा है कि यही हाल रहा तो,एक दिन सांस भी लेने के लिए,लोगों को मास्क लगाकर घूमना पड़ेगातब जाकर दुनिया में जीवित रह सकते ।नहीं चेते तो बहुत देर हो जाएगी.शुद्ध पानी और वायु भी नहीं मिलेगी.प्रकृति से छेड़छाड़ की सजा अवश्य मिलेगीक्यों चल पड़े हैं विनाश के रास्ते।नदियों का जल नहाने लायक नहीं रहेगापीने के पानी एक दिन अकाल पड़ेगा,पछताने के अलावा हाथ कुछ नहीं रहेगा!

बाल साहित्यकार शीला मिश्रा ने नन्हे कर्णधारों को संबोधित अपनी कविता से पर्यावरण के लिए सजग किया

“मेरा दरवाजा”

जब भी निकलती हूँ
दरवाजे के पास से
एक दबी हुई सिसकी
सुनाई पड़ती है
मेरे कानों में
और साथ में आती है
कराहती हुई आवाज ,
जो कहती है…..

आपके घर को हरा-भरा करने और उसके सौंदर्य को बढ़ाने के लिए उष्णकटिबंधीय फ्रंट डोर पौधे...
बचा लो मेरे बंधु-बांधव को,
मेरे प्यारे -प्यारे भतीजे
मजबूत तनों को,
मेरी हँसती -मुस्कुराती भांजी
कोमल शाखाओं को,
आज नहीं तो कल
ये तुम्हारे ही काम आएंगे ,
जब तुम पथिक बनकर निकलोगे
तो तुम्हें ये छाया और फल देंगें,
तुम्हारे शहर की आबोहवा को
स्वच्छ रखेंगे और
नगर को सुंदर बनाकर
आँखों को सुकून देंगे।
सच कहूँ….
नहीं बचा पा रही हूंँ
मेरे दरवाजे के
इन प्यारे- प्यारे
भतीजों और भांजियों को,
काश.. ..यह सिसकी
उनके कानों में पड़े
जो कुर्सी के मद में
बहरे बने बैठे हैं…….!-शीला मिश्रा

समाज सेविका -लेखिका कुसुम सौगानी ने अपनी कविता के माध्यम से धरती की प्रताड़ना पर बात कही –

पृथ्वी दिवस पर
*पृथ्वी *

हुयी प्रताड़ित
कितना सहती
कितना तपती
बहती रहती
बोझ तले बोझिल रहती
जलचर
नभचर

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भूमि पर
वनस्पति
अग्नि वायु
के जीवित जीव
सारी मेरी संतति
मैं माँ तुम्हारी धरती
पर न समझे
तुम प्राणी
कुचला रौंदा
मुझको पल पल.

कुसुम सोगानी

पूर्व प्राचार्य एवं  साहित्यकार डॉ निहार गीते ने अपने प्रयास बताते हुए कहा कि ” मैं पौधों को लगाने बढ़ाने के साथ ही उनकी सही परवरिश को महत्त्व देती हूँ ।मेरी बेटी ने दो साल से A.C,कूलर का उपयोग नहीं किया  carbon footprint कम करने की इच्छा से।मुझमें इतनी हिम्मत नहीं पर मैं अपने तरीके से पेड़ पौधे लगाती हूँ और बढ़ाकर यहप्रयास करती हूँ की पर्यावरण के लिए मैं हमेशा इसी तरह जागरूक बनी रहूं।”

कार्यक्रम का सञ्चालन करते हुए प्रतिष्ठा पटल की संस्थापक अध्यक्ष   डॉ .स्वाति तिवारी ने पृथ्वी दिवस के  आधुनिक पर्यावरण आन्दोलन की शुरुआत को चिन्हित करते हुए कहा कि तेल रिसाव, प्रदुषण करने वाली फैक्ट्रियों और उर्जा संयन्त्रों, कच्चे मलजल, विषैले कचरे, कीटनाशक, खुले रास्तों, जंगल की क्षति और वन्यजीवों के विलोपन के विरुद्ध लड़ना होगा .और अपने प्रयास करते रहने होंगे .हम अगर साल में दो पेड़{पोधे}  भी लगाएं  तो यह इस यज्ञ में हमारी आहुति होगी .उन्होंने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया .

आरती दशरथ नंदन की