खेती को लाभ का धंधा बनाने की कवायद जारी…

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खेती को लाभ का धंधा बनाने की कवायद जारी…

केंद्र की मोदी-3 सरकार अब एक बार फिर खेती को लाभ का धंधा बनाने की कवायद में जुट गई है। पिछले दस साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह प्रयास जारी है। पर मंजिल अभी दूर है। पिछली पंचवर्षीय में चार साल 190 दिन मध्यप्रदेश के सांसद नरेंद्र सिंह तोमर ने कृषि मंत्री के रूप में मोदी का साथ दिया है। तो अब मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश को सात बार के कृषि कर्मण पुरस्कार दिलाने वाले शिवराज सिंह चौहान कृषि मंत्री के रूप में मोदी के सारथी बने हैं। मध्यप्रदेश में खेती को लाभ का धंधा बनाने की कवायद के बाद अब देश में इसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए शिवराज सारथी बनकर मोदी के कंधे से कंधा मिलाएंगे। खरीफ फसलों के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी संग यह नई यात्रा शुरू हुई है, जो दूर तक जाने वाली है।

किसानों के लिए यह राहत की बात है कि केंद्र की मोदी-3 सरकार में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विपणन सीजन 2024-25 के लिए सभी अनिवार्य खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि को मंजूरी दे दी। सरकार ने किसानों को उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिए विपणन सत्र 2024-25 के लिए खरीफ फसलों के एमएसपी में वृद्धि की है। केंद्र सरकार ने 14 खरीफ फसलों की एमएसपी बढ़ा दी है। केंद्रीय कैबिनेट ने मक्का और दालों की मिनिमम सपोर्ट प्राइस में बढ़ोतरी को भी मंजूरी दी है। पिछले वर्ष की तुलना में एमएसपी में सबसे अधिक वृद्धि तिलहन और दलहन के लिए की गई है, जैसे नाइजरसीड (983 रुपये प्रति क्विंटल), उसके बाद तिल (632 रुपये प्रति क्विंटल) और तुअर/अरहर (550 रुपये प्रति क्विंटल)। धान की नई कीमत 2,300 रुपए प्रति क्विंटल तय की गई है, जो पिछले न्यूनतम समर्थन मूल्य से 117 रुपए ज्यादा है। कपास की नई एमएसपी 7,121 रुपए तय की गई है। इसकी एक दूसरी किस्म की नई एमएसपी 7,521 रुपए कर दी गई है, जो पहले से 501 रुपए ज्यादा है। देश में 2 लाख नए गोदाम बनाने का फैसला भी कैबिनेट बैठक में लिया गया है। नई एमएसपी से सरकार पर 2 लाख करोड़ रुपए का बोझ बढ़ेगा। यह पिछले फसल सीजन की तुलना में 35 हजार करोड़ रुपए ज्यादा है।
हालांकि एमएसपी फसल की लागत का कम से कम 1.5 गुना होनी चाहिए। लागत से तात्पर्य उन लागतों से है जिनमें सभी भुगतान की गई लागतें शामिल हैं जैसे कि किराये पर लिए गए मानव श्रम, बैल श्रम/मशीन श्रम, पट्टे पर ली गई भूमि के लिए भुगतान किया गया किराया, बीज, उर्वरक, खाद जैसे सामग्री इनपुट के उपयोग पर किए गए व्यय, सिंचाई शुल्क, औजारों और कृषि भवनों पर मूल्यह्रास, कार्यशील पूंजी पर ब्याज, पंप सेटों के संचालन के लिए डीजल/बिजली आदि, विविध व्यय और पारिवारिक श्रम का आरोपित मूल्य। विपणन सत्र 2024-25 के लिए खरीफ फसलों के लिए एमएसपी में वृद्धि केंद्रीय बजट 2018-19 की घोषणा के अनुरूप है, जिसमें एमएसपी को अखिल भारतीय भारित औसत उत्पादन लागत के कम से कम 1.5 गुना के स्तर पर तय करने की बात कही गई है। किसानों को उनकी उत्पादन लागत पर अपेक्षित मार्जिन बाजरा (77%) के मामले में सबसे अधिक होने का अनुमान है, उसके बाद तुअर (59%), मक्का (54%) और उड़द (52%) का स्थान है। बाकी फसलों के लिए, किसानों को उनकी उत्पादन लागत पर मार्जिन 50% होने का अनुमान है।

तो बात फिर वहीं आ जाती है कि खेती को लाभ का धंधा बनाने और न्यूनतम समर्थन मूल्य को लागत का डेढ गुना तक पहुंचाने के लिए अभी लंबी यात्रा बाकी है। इस यात्रा में अब मोदी के ठीक पीछे शिवराज नजर आएंगे और किसानों की उम्मीद भी कई गुना बढ़ जाएगी। मोदी को तीसरे कार्यकाल में नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान के लिए यह बड़ी चुनौती है। पर अच्छी बात यही है कि खेती को लाभ का धंधा बनाने की कवायद जारी है…।