आजादी के 77 वर्षों के बाद भी राज घरानों की प्राचीन काल से चली आ रहीं परम्परा आज भी बदस्तूर जारी!
गोपेंद्र नाथ भट्ट की रिपोर्ट
डूंगरपुर/नई दिल्ली।आजादी के 77 वर्षों के बाद भी राज घरानों की प्राचीन काल से चली आ रहीं राज तिलक की परम्परा आज भी बदस्तूर जारी है और इसमें आम लोगों की भागीदारी भी कम नहीं हुई है। लोगों के मन में राजघरानों के प्रति निष्ठा सम्मान और समर्पण की भावना आज भी बनी हुई है।
दक्षिणी राजस्थान के ऐतिहासिक नगर डूंगरपुर के महारावल महिपाल सिंह के निधन के तुरन्त बाद राज घराने की पुरानी परम्परा के अनुसार उनके इकलौते पुत्र और राज्य सभा के पूर्व सांसद हर्षवर्धन सिंह का शनिवार को डूंगरपुर के उदय विलास पेलेस में महारावल के रूप में सादगी के साथ राजतिलक हुआ । डूंगरपुर के माथुगामडा गाँव के गमेती आदिवासी मुखिया धुला कटारा और बाबूलाल कटारा ने शनिवार को हर्षवर्धन सिंह डूंगरपुर को तिलक लगा कर उनकी राजपोशी की। तत्पश्चात् हर्षवर्धन सिंह ने अपने महल उदय विलास पैलेस में राजपरिवार की कुलदेवी माता के दर्शन किए। उसके बाद दिवंगत महारावल महिपाल सिंह की अन्त्येष्टि की रस्में अदा की गई।
मान्यता हैकि राज घराने के प्रमुख के देहान्त के बाद गद्दी खाली नही रहती इसलिए दिवंगत राजा के अन्तिम संस्कार से पहले ही उनके वारिस का राज तिलक होता है और अंतिम क्रिया आदि सभी संस्कार बाद में होते हैं।
मेवाड़ और वागड़ की परंपरा के अनुसार राजतिलक की रस्म अदायगी आदिवासी परिवार के मुखिया करते हैं। इन राज घरानों के राजचिन्ह मुद्रा और झण्डे पर भी आदिवासी मुखिया के चित्र अंकित रहते आयें हैं।महाराणा प्रताप की सेना में भी आदिवासी योद्धा ही उनकी रीढ़ की हड्डी माने जाते थे।
खून के टीके से राजतिलक किया गया
डूंगरपुर राजपरिवार के पूर्व महारावल की गद्दी खाली नहीं रहने की परंपरा है।इसी परंपरा के तहत गद्दी पर महिपाल सिंह के पुत्र महाराज कुंवर और पूर्व राज्यसभा सांसद हर्षवर्धन सिंह को बैठाया गया ।पूर्व महारावल महिपाल सिंह के पार्थिव शरीर के ठीक सामने दूसरी गद्दी लगाई गई।इस दौरान राजपरिवार के सदस्यों की मौजूदगी में माथूगामड़ा पाल से आए आदिवासी गमेतियों और मुखिया धुला भाई कटारा के साथ ही बाबू भाई कटारा ने हाथ पकड़कर हर्षवर्धन सिंह को महारावल की गद्दी पर बैठाया।इसके बाद सफेद पाग को निकालकर उसकी जगह उन्हें केसरी पाग पहनाई गई।साथ ही गमेती बाबूलाल कटारा ने अंगूठे से खून निकालकर उन्हें तिलक लगाया, जिसके बाद राजतिलक की परंपरा पूरी हुई. वहीं वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पूर्व महाराज कुंवर हर्षवर्धन सिंह को महारावल घोषित किया गया।
उल्लेखनीय हैकि मेवाड़ राजघराने के बप्पा रावल की सन्तान डूंगरपुर रियासत के वारिस मेवाड़ के महाराणा प्रताप के वंश के बड़े भाई है और 800 वर्षों से भी अधिक समय से यहाँ एक ही कुल की संतानों ने शासन किया।राजघराने के रिटायर्ड आईएएस समर सिंह ने अपनी पुस्तक डूंगरपुर ए ग्लोलोरियस सेंचुरी में लिखा है कि देश में यह एक ऐसा बिरला उदाहरण है जो प्रायः अन्य कहीं नहीं मिलता।डूंगरपुर के रावल उदयसिंह महाराणा प्रताप के दादा राणा सांगा के साथ खानवा के युद्ध में 1527 में बाबर के साथ हुए युद्ध में जंग लड़ने गए थे और दुर्भाग्य से वहाँ उनकी मृत्यु हो गई ।इसके बाद उनके दोनों पुत्रों पृथ्वी सिंह और जगमाल सिंह ने वागड़ इलाक़े के मध्य ने बहने वाली माही नदी को आधार मान कर डूंगरपुर और बाँसवाड़ा अपनी अलग अलग रियासतें बना ली थी।
डूंगरपुर के दिवंगत महारावल महिपाल सिंह के पिता राजस्थान विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष महारावल लक्ष्मण सिंह आजादी से पहलें डूंगरपुर रियासत के अन्तिम शासक रहें। उन्होंने करीब बीस वर्ष तक शासन किया और डूंगरपुर को एक आदर्श राज्य बनाया। बाद में उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह के साथ मिल कर वृहत राजस्थान के गठन और सरदार वल्लभ भाई पटेल के साथ देश भर के राजाओं के संगठन नरेश मण्डल के अध्यक्ष के रूप में सराहनीय योगदान दिया।
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