कछुवा चाल क्रिकेट के दौर में भी उनका अंदाज T20 जैसा रहा!
इन दिनों ताबड़तोड़ क्रिकेट कहा जाने वाला ‘आईपीएल’ खेला जा रहा है, जिसमें बल्लेबाजों को गेंद की रफ्तार से ही अपना बल्ला चलाना होता है। भारतीय क्रिकेट के इतिहास में आज से पांच दशक पहले ऐसे कुछ धुंआधार बल्लेबाज हुए, जो कछुए की चाल से चलने वाले क्रिकेट में भी टी-20 के अंदाज में बल्लेबाजी करते हुए दर्शकों के चहेते बन गए थे। ऐसे ही एक सितारा बल्लेबाज सलीम दुर्रानी अपने जीवन की पारी में शतक बनाने से 12 साल पहले 88 वर्ष की उम्र में ऊपर वाले के पवेलियन में प्रवेश कर लिया। वे पिछले कुछ सालों से कैंसर से जूझ रहे थे।
सलीम दुर्रानी का जन्म अफगानिस्तान के काबुल शहर में 1934 में हुआ था। उन्होंने भारत के लिए टेस्ट 1960 ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मुंबई में टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया और आखिरी टेस्ट इंग्लैंड के खिलाफ फरवरी 1973 में ब्रेबोर्न स्टेडियम पर खेला। उन्होंने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 33.37 की औसत से 8545 रन बनाए जिसमें 14 शतक शामिल थे। फर्स्ट क्लास क्रिकेट में उनका अधिकतम स्कोर 137 रन नॉट आउट रहा। साल 1961-62 में सलीम दुर्रानी ने भारत को इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज जिताने में अहम भूमिका निभाई। उस दौरान उन्होंने कोलकाता और मद्रास (अब चेन्नई) टेस्ट में क्रमशः 8 और 10 विकेट लेकर भारत को जीत दिलाई थी।
इसके करीब 10 साल बाद उन्होंने फिर इस प्रदर्शन को दोहराते हुए भारत को वेस्टइंडीज के खिलाफ पोर्ट ऑफ स्पेन टेस्ट में जीत दिलाई। उस मैच में सलीम दुर्रानी ने क्लाइव लॉयड और गैरी सोबर्स को आउट किया था। वे फैंस के बीच काफी मकबूल थे। ऐसे ही साल 1973 में जब कानपुर टेस्ट में उन्हें टीम से ड्रॉप किया गया, तो दर्शकों ने नारे लगाते हुए कहा, नो दुर्रानी, नो टेस्ट नतीजा ये हुआ कि उन्हें मैच में शामिल करना पड़ा और। उन्होंने तब भी निराश भी नहीं किया और उस मैच में नाबाद 73 रन बनाए थे। वे किसी की भी गेंदबाजी आक्रमण की बखिया उधेड़ने में माहिर थे। दुर्रानी अर्जुन पुरस्कार पाने वाले पहले क्रिकेटर थे। घरेलू क्रिकेट में उन्होंने गुजरात, राजस्थान और सौराष्ट्र के लिए भी खेला।
सलीम दुर्रानी जितने स्टाइलिश क्रिकेटर थे, मैदान के बाहर भी वे उतनी ही अदा से रहते थे। उनकी इसी अदा के चलते उन्हें बीआर इशारा ने परवीन बाबी के साथ फिल्म ‘चरित्र’ में नायक की भूमिका दी थी। लेकिन, यह फिल्म चल नहीं पाई और उन्होंने सिनेमा से दूरी बना ली। राजस्थान के लिए रणजी ट्रॉफी खेलते हुए वे अक्सर मैदान पर दर्शकों की मांग पर छक्का मारते हुए दिखाई देते थे। वे अपनी बल्लेबाजी इतनी उन्मुक्तता से करते थे, कि नब्बे के आसपास खेलते हुए उसी अंदाज में खेलते हुए कई बार आउट हो जाते थे। एक बार जब वे 98 पर खेल रहे थे, तो राजस्थान की टीम के कप्तान हनुमंत सिंह ने आकर उन्हें समझाया कि वे शतक के नजदीक है इसलिए धीरे खेले। इस बात पर सलीम ने मैदान पर ही कहा था कि अब तू हमें सिखाएगा कि कैसे खेलना है। इसके बाद जब उन्होंने अगली बॉल का सामना किया तो पूरा स्टॅम्प छोड़कर अपना विकेट गंवा दिया।
इंदौर और सलीम दुर्रानी का पुराना साथ है। उन्होंने इंदौर से ही अपनी पढ़ाई पूरी की थी। इंदौर से ही हनुमंत सिंह ने भी पढाई की। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता महेश जोशी के साथ उनके गहरे संबंध थे। मध्य प्रदेश क्रिकेट टीम के सदस्यों के साथ भी उनकी खूब पटती थी। एक बार जब नेहरू स्टेडियम में मध्य प्रदेश और राजस्थान का रणजी ट्रॉफी मैच चल रहा था, सलीम दुर्रानी ने ऊंचे ऊंचे शॉट मारकर मध्य प्रदेश के खिलाड़ियों को थका दिया था। इससे दर्शक इतने खीझ गए थे कि खेल खत्म होने के बाद वह मैदान में घुस गए थे और उन्होंने सलीम दुर्रानी की पैंट फाड़ दी थी। तब सलीम दुर्रानी ने कहा था कि उनकी सारी पैंट गंदी हो गई, अब कल वे क्या पहनेंगे? तब उनके समान लंबे इंदौर के अशोक जगदाले ने कहा था दादा मेरी पेंट पहन लेना!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महान भारतीय क्रिकेटर सलीम दुर्रानी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि विश्व क्रिकेट में भारत के उत्थान में उनका अहम योगदान रहा। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया सलीम दुर्रानी जी महान क्रिकेटर थे और अपने आप में एक संस्था थे। उन्होंने विश्व क्रिकेट में भारत के उत्थान में अहम योगदान दिया। मैदान के भीतर और बाहर वह अपनी शैली के लिए जाने जाते थे। उनके निधन से दुखी हूं। उनके परिवार और मित्रों को सांत्वना! ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।
गुजरात के साथ दुर्रानी के करीबी और मजबूत संबंधों का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने कई साल गुजरात और सौराष्ट्र के लिए खेला और प्रदेश में अपना घर भी बनाया। उन्होंने कहा कि मुझे उनसे बात करने का मौका मिला और मैं उनकी बहुमुखी प्रतिभा से काफी प्रभावित रहा। उनकी कमी निश्चित तौर पर खलेगी।