उत्तर प्रदेश की तर्ज पर मध्यप्रदेश में बनेगी आबकारी नीति 

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उत्तर प्रदेश की तर्ज पर मध्यप्रदेश में बनेगी आबकारी नीति 

 

भोपाल: उत्तर प्रदेश की की तर्ज पर मध्य प्रदेश में नई आबकारी नीति बनाई जहा रही है। इसे लेकर आला अधिकारियों ने डॉफ्ट भी लगभग तैयार कर लिया है, लेकिन इसमें आबकारी विभाग के वे मैदानी अफसर जिन पर इस नई नीति को अमलीजामा पहनाने की जिम्मेदारी है उनसे राय तक नहीं ली गई। जो नया ड्राफ्ट तैयार हो रहा है, उसके मुताबिक हर एक दुकान का टेंडर किया जाएगा, अब तक मध्य प्रदेश में रिन्यूवल के माध्यम से नए वित्तीय वर्ष के लिए दुकान का आवंटन किया जाता था, जिसे अब पूरी तरह से बदला जा रहा है।

ताकतवर और प्रभावशाली नौकरशाह जो न करे वह कम है, वे जब निर्णय लेते हैं तो सिर्फ अपनी सोच और विचारों के आधार पर काम करते हैं, ऐसा ही इन दिनों आबकारी विभाग में देखने को मिल रहा है। अमूमन हर बार नई आबकारी नीति लाने के पहले प्रमुख विभागीय अधिकारी जो जमीन स्तर पर काम कर रहे हैं, उन्हें बुलाकर विभागीय मुखिया और मंत्री विचार विमर्श करते हैं। इसमें शराब ठेकेदारों की राय भी ली जाती है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा है, इतन अवश्य हो रहा है कि करीब तीन महीने पहले विभागीय मंत्री एवं उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा की अगुवाई में एक बैठक हुई थी, जिसमें विभागीय अधिकारियों के साथ ठेकेदारों को आमंत्रित किया गया था। इस दौरान उनकी समस्याओं को लेकर चर्चा हुई थी, ना ही नई आबकारी नीति को लेकर। उसके बाद से न तो विभागीय अधिकारियों से नीति निर्धारण करने वाले नौकरशाहों ने कोई चर्चा की और ना ही उनसे नई नीति के संबंध में कोई फीडबैक लिया।

*उपमुख्यमंत्री को भी नहीं ज्यादा जानकारी* 

प्रदेश के उपमुख्यमंत्री एवं आबकारी मंत्री जगदीश देवड़ा को भी प्रदेश में लागू होने वाली नई आबकारी नीति को लेकर कोई बहुत ज्यादा जानकारी शेयर नहीं की गई है। उन्हें सिर्फ इतना बताया गया है कि नई नीति जो लाई जा रही है, उसमें रिन्यूवल के जगह हर एक दुकान का टेंडर किया जाएगा। जिससे राजस्व बढ़ने की संभावनाएं ज्यादा हैं। अब तक नई आबकारी नीति को लेकर जो बैठकों का दौर हुआ है, वह तीन-चार अधिकारियों के बीच में ही सिमटकर रहा है। विभागीय मुखियाओं ने इसमें पूरी गोपनीयता बरतते हुए नई नीति का ड्रॉफ्ट बनाया है।

एक-एक दुकान का टेंडर किए जाने में यह भी संभावना है कि पूरी दुकानों के टेंडर ही नहीं हो पाएं। वर्तमान में प्रभावी आबकारी नीति में भी यह स्थिति बनी थी कि सभी दुकानों के टेंडर वित्तीय वर्ष की शुरूआत में नहीं हो सके थे। इसके साथ ही नई नीति में यह भी डर है कि शराब की कालाबाजारी करने वाले बड़े व्यापारी इन दुकानों का टेंडर औने-पौने दामों में ले सकते हैं और इन दुकानों के आड़ में वे शराब के अपने अवैध करोबार को भी फैला सकते हैं।

*यूपी और एमपी में यह है बड़ा अंतर* 

उत्तर प्रदेश में जहां 35 हजार शराब की दुकानें हैं, वहीं मध्य प्रदेश में मात्र 3500 शराब दुकानें हैं जो यूपी से महज दस फीसदी है। उत्तर प्रदेश में शराब को लेकर नजरिया व्यवसायिक है। जबकि मध्य प्रदेश में शराब की दुकानों को लेकर सामाजिक सोच और दायरे हैं। मध्य प्रदेश में अब तक जो नीति फॉलो की जा रही थी, उससे जो राजस्व आ रहा था वह 13 हजार करोड़ रुपए सलाना था। नई नीति से 16 हजार करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त होने का अनुमान है। जिसके लिए विभाग नई नीति को लागू करने को लेकर गंभीरता से विचार कर रहा है।

इधर एक-एक दुकान के टेंडर में यह भी डर रहेगा कि दुकान लेने वाले फर्जी एफडीआर न लगा दें। पिछले कुछ सालों से फर्जी एफडीआर लगातार कई ठेकेदारों ने दुकाने ले ली थी, जिस पर कई शहरों में विभाग के अफसरों ने पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाई थी। नई नीति में यह एफडीआर ज्यादा लगेगी, इसलिए फर्जी एफडीआर का खतरा भी बड़ जाएगा।