Executive Fails in Action Against Minister: विजय शाह पर न्यायपालिका की कार्रवाई कार्यपालिका के लिए कड़ा सन्देश

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Executive Fails in Action Against Minister: विजय शाह पर न्यायपालिका की कार्रवाई कार्यपालिका के लिए कड़ा सन्देश

रंजन श्रीवास्तव की खास रिपोर्ट

हो सकता है कि कुछ लोगों की नजर में मध्य प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल में वरिष्ठता के क्रम में चौथे स्थान पर मंत्री विजय शाह के खिलाफ उच्च न्यायालय द्वारा की गयी कार्रवाई ज्यूडिसियल एक्टिविज्म का एक प्रतीक हो पर सत्य यह है कि न्यायालय द्वारा स्वतः संज्ञान लेकर 62 वर्षीय जनजातीय कार्य विभाग मंत्री के विरुद्ध पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश ना सिर्फ मध्य प्रदेश बल्कि देश के अन्य भागों में भी कार्यपालिका और विधायिका के लिए एक कड़ा सन्देश है कि पानी सर से ऊपर निकल जाने पर लोग न्याय के लिए न्यायालय की तरफ आशा की निगाहों से देख सकते हैं।

उच्च न्यायालय ने विजय शाह द्वारा कर्नल सोफ़िया कुरैशी के खिलाफ भद्दे टिप्पणी पर ना सिर्फ पुलिस को स्पष्ट आदेश दिया शाह के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने के लिए बल्कि वह धाराएं भी बताईं जिनके तहत एफआईआर दर्ज किया जाना था पर पुलिस ने यह देखते हुए भी कि न्यायालय ने मंत्री के आपत्तिजनक बयान का स्वतः संज्ञान लेकर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया, एफआईआर से वह सारा विवरण ही गायब कर दिया जिसके आधार पर मंत्री का बयान अपराध की श्रेणी में आता था।

उच्च न्यायालय का आदेश न्यायिक सिद्धांतों पर आधारित था इस बात कि पुष्टि उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी तथा आदेश ने भी कर दी जब न्यायालय ने विजय शाह के माफीनामा को ना सिर्फ मानने से अस्वीकार कर दिया बल्कि तीन आईपीएस अधिकारियों की स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम गठित करने का आदेश भी दे दिया।

विजय शाह ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल करके माफीनामा के आधार पर राहत पाने के कोशिश की पर उनको उच्चतम न्यायालय द्वारा भी फटकार मिली।

उनके माफीनामे पर न्यायालय ने आश्चर्य जताया और कहा कि क्या वे मगरमच्छ के आंसू थे और क्या ये कानूनी कार्यवाही से बचने का प्रयास था?

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि उनके टिप्पणी के कारण पूरा देश शर्मसार है……”आपको शर्म आनी चाहिए। पूरे देश को हमारी सेना पर गर्व है और आपने यह बयान दिया?” पीठ ने मंत्री से पूछा कि यह किस तरह की माफी थी जिसमे उन्होंने (विजय शाह) यह कहा कि “अगर” यह कहा है तो वे माफी मांगते हैं। “माफी मांगने का यह तरीका नहीं है। आपने जिस तरह की भद्दी टिप्पणी की है, आपको शर्म आनी चाहिए।”

दरअसल एक फैशन हो गया है कि कोई भी कुछ भी बोलकर निकल जायेगा चाहे वह सोशल मीडिया का प्लेटफार्म हो या पब्लिक फोरम। विजय शाह की टिप्पणी तो ऐसी थी कि उसे कहीं दोहराना भी सेना के मनोबल को कम करने का प्रयास जैसा है।

कार्यपालिका हर ऐसे आपत्तिजनक बयान को अपने लाभ और हानि के तराजू पर तौलकर आगे बढ़ती है।
ऑपरेशन सिन्दूर के दौरान और बाद ऐसे बहुत से वक्तव्य या टिप्पणी सत्ता पक्ष, विपक्ष और अन्य लोगों की तरफ से आये जो कि नहीं आने चाहिए थे क्योंकि इससे अनावश्यक सेना का मनोबल गिरता है और बैठे बिठाये पाकिस्तान जैसे देश को विश्व को दिखाने के लिए यह मौका मिलता है कि कैसे भारत में ही सेना के ऊपर सवाल उठाये जा रहे हैं।

भारतीय सेना के पराक्रम ने पाकिस्तान में पल रहे आतंकियों, पाकिस्तानी सेना और उसकी उसकी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई जो लगातार भारत के खिलाफ षड़यंत्र रचती रहती है, को एक कड़ा सन्देश दिया कि वह सेना के बल को कम करके नहीं आंके।

केंद्र सरकार द्वारा निर्णय होते ही सेना ने बिना सीमा पार किये पाकिस्तान के 9 जगहों पर आतंकी अड्डों को नष्ट कर दिया और वो भी सिर्फ 23 मिनट की कार्रवाई में। जब पाकिस्तान ने भारत के नागरिक इलाकों और सैन्य ठिकानों पर हमला किये तो सेना ने पुनः मुंहतोड़ जवाब दिया।

यह नहीं भूलना चाहिए कि पहलगाम की बैसरन घाटी में आतंकियों द्वारा किया गया हमला सिर्फ एक और हमला नहीं था बल्कि आतंकियों द्वारा धर्म के आधार पर लोगों को मारना देश को धर्म के आधार पर बांटने का एक कुत्सित प्रयास था जिसे भारत की जनता ने अपनी एकता से असफल कर दिया।

ऐसे में कर्नल सोफ़िया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह को ऑपरेशन सिन्दूर के दौरान मीडिया को वस्तुस्थिति बताने के लिए एक मंच पर लाकर भारत सरकार और सेना ने पाकिस्तान को एक और कड़ा और स्पष्ट सन्देश दिया भारत की एकता और अखंडता का।

अगर ऑपरेशन सिन्दूर भारत की उन बेटियों के न्याय का प्रतिबिम्ब बना जिनके पति को उनकी आँखों के सामने मौत के घाट उतार दिया गया, कर्नल सोफ़िया और विंग कमांडर व्योमिका सिंह भारत की महिला और सैन्य शक्ति की प्रतीक बनीं एक दुष्ट पड़ोसी देश और उसकी सेना और आतंकियों के सामने।

देश के सामने इस तरह की संवेदनशील परिस्थितियों के बावजूद भी मंत्री विजय शाह का कर्नल सोफ़िया के खिलाफ बयान वाकई शर्मनाक था।

मध्य प्रदेश के लिए यह और भी शर्मनाक था कि यहाँ के मंत्री इस तरह का बयान दे रहे हैं।

विजय शाह ने इस्तीफ़ा नहीं दिया। भाजपा सरकार की जो भी मजबूरी हो विजय शाह को मंत्री बनाये रखने के लिए पर न्यायपालिका ने एक स्पष्ट सन्देश दिया है कार्यपालिका और विधायिका को कि वह इस तरह के अपराध को सहन नहीं करेगी।

आशा है आने वाले समय में न्यायपालिका स्वतः संज्ञान लेकर उन तत्वों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई करेगी जो सोशल मीडिया पर भद्दे वीडियो और टिप्पणियों के माध्यम से पूरे देश में उन्माद की लहर पैदा करने में लगे हुए हैं।

जब देश के विदेश सचिव और उनकी बेटी सहित परिवार को और यहाँ तक कि न्यायाधीशों को टारगेट किया जा सकता है तो अन्य लोगों जो सोशल मीडिया पर टारगेट किये जाते हैं, की हालत का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।