
Eye Donation : नेत्रम संस्था के सतत प्रयासों से रतलाम में 2 नेत्रदान, अब 4 नेत्रहीनों को मिलेगी नई रोशनी
Ratlam : जब किसी के भी परिवार का प्रिय सदस्य संसार से विदा होता हैं, तब वह क्षण असहनीय पीड़ा का होता हैं। किंतु उसी पीड़ा के क्षण में लिया गया एक मानवीय निर्णय किसी और के जीवन को प्रकाशमय बना सकता है। रतलाम में ऐसे ही 2 परिवारों ने नेत्रदान कर यह सिद्ध कर दिया कि मृत्यु के बाद भी जीवन दिया जा सकता है।नेत्रदान क्षेत्र में जन-जागरूकता एवं सामाजिक सेवा के लिए समर्पित नेत्रम संस्था के निरंतर प्रयासों से शहर में हाल ही में 2 नेत्रदान सफलतापूर्वक संपन्न हुए, जिनकी वजह से 4 नेत्रहीनों को दृष्टि मिलने की आशा जगी है।
नेत्रम संस्था के हेमंत मूणत ने बताया कि शहर के लालबाग एवेन्यू कॉलोनी निवासी स्वर्गीय प्रभाकर धनोडकर के निधन के पश्चात उनके सुपुत्र भूषण धनोडकर एवं परिजनों ने गिरधारीलाल वर्धानी की प्रेरणा से नेत्रदान का निर्णय लिया। इसी के साथ शहर के शक्ति नगर निवासी मनजीत कोर सग्गू के निधन के पश्चात उनके पति मनजीत सिंह सग्गू एवं परिजनों ने सुशील मीनू माथुर की प्रेरणा से नेत्रदान का पुण्य निर्णय लिया। दोनों ही परिवारों ने अपने गहन शोक के बीच मानवता को सर्वोपरि रखते हुए यह उदाहरण प्रस्तुत किया कि नेत्रदान किसी एक व्यक्ति का नहीं, पूरे समाज का कल्याण करता है। परिजनों की सहमति मिलते ही नेत्रम संस्था द्वारा बड़नगर स्थित गीता भवन न्यास के ट्रस्टी एवं नेत्रदान प्रभारी डॉ. जीएल. ददरवाल को सूचना दी गई। सूचना मिलते ही डॉ. ददरवाल अपनी टीम के सदस्य भावेश तलाच एवं परमानंद राठौड़ के साथ तत्परता से रतलाम पहुंचे और दोनों नेत्रदान प्रक्रियाओं को पूरी गरिमा, वैज्ञानिक विधि एवं समयबद्धता के साथ सफलतापूर्वक पूर्ण किया।
नेत्रदान के दौरान नेत्रम संस्था के सदस्य हेमंत मूणत, नवनीत मेहता, शीतल भंसाली, गिरधारीलाल वर्धानी, संजय नेनानी, ओमप्रकाश अग्रवाल, सुशील मीनू माथुर, भगवान ढलवानी सहित अनेक गणमान्य नागरिक सक्रिय रूप से उपस्थित रहें और परिजनों का संबल बने।नेत्रम संस्था द्वारा दोनों परोपकारी परिवारों को प्रशस्तिपत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया तथा उनके इस अद्वितीय मानवीय योगदान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की गई। संस्था ने स्पष्ट किया कि नेत्रदान प्रक्रिया पूर्णतः सुरक्षित, सम्मानजनक एवं वैज्ञानिक है तथा इससे अंतिम संस्कार में किसी प्रकार की बाधा नहीं आती। समाज में फैली भ्रांतियों के कारण आज भी अनेक लोग नेत्रदान से संकोच करते हैं, जबकि यही एक ऐसा दान है जो मृत्यु के बाद भी किसी को जीवन की रोशनी देता है। नेत्रम संस्था समाज के प्रत्येक नागरिक से अपील करती है कि वे स्वयं नेत्रदान का संकल्प लें तथा अपने परिवारजनों को इसके लिए मानसिक रूप से तैयार करें, ताकि आवश्यकता पड़ने पर निर्णय लेने में विलंब न हो!





