न्यायप्रियता, निष्पक्षता और ‘सेंगोल’ …
नए संसद भवन के लोकार्पण की चर्चा कांग्रेस नेता राहुल गांधी की आपत्ति के चलते कम हो रही है, बल्कि अब ‘सेंगोल’ शब्द के चलते ज्यादा हो रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 28 मई 2023 को संसद के इस नए भवन को लोकार्पित करेंगे। इस नई संसद में ‘सेंगोल’ को भी स्थापित करेंगे। ‘सेंगोल’ को न्याय, निष्पक्षता और संपदा का प्रतीक, देश के गौरवमयी इतिहास का सूचक माना जा रहा है। यह ‘सेंगोल’ शब्द कहीं न कहीं देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की याद दिलाएगा, तो 21 वीं सदी में प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी का नाम भी ‘सेंगोल’ के साथ इतिहास में दर्ज हो जाएगा। ‘सेंगोल’ के साथ तमिल भाषा, चोल राजवंश, राजाजी यानि सी. राजगोपालाचारी और इसके साथ वुम्मिदी एथिराजुलु-वुम्मिदी सुधाकर का नाम भी हमेशा याद किया जाएगा। तो आइए इस ‘सेंगोल’ से हम भी रूबरू होते हैं।
‘सेंगोल’ तमिल भाषा के शब्द ‘सेम्मई’ से निकला हुआ शब्द है। इसका अर्थ होता है धर्म, सच्चाई और निष्ठा। 14 अगस्त 1947 को जवाहरलाल नेहरू ने तमिलनाडु की जनता से ‘सेंगोल’ को स्वीकार किया था। चोल काल के दौरान, राजाओं के राज्याभिषेक समारोहों में ‘सेंगोल’ का अत्यधिक महत्व था। यह एक भाले या ध्वजदंड के रूप में कार्य करता था, जिसमें बेहतरीन नक्काशी और जटिल सजावट होती थी। ‘सेंगोल’ को अधिकार का एक पवित्र प्रतीक माना जाता था, जो एक शासक से दूसरे शासक को सत्ता के हस्तांतरण के रूप में सौंपा जाता था। और अंग्रेजों से भारत को सत्ता हस्तांतरित होने का प्रतीक भी ‘सेंगोल’ को माना गया। ‘सेंगोल’ के इतिहास की जानकारी देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि 14 अगस्त 1947 को 10:45 बजे के करीब जवाहरलाल नेहरू ने तमिलनाडु की जनता से इस ‘सेंगोल’ को स्वीकार किया था। यह अंग्रेजों से इस देश के लोगों के लिए सत्ता के हस्तांतरण का संकेत था। उन्होंने बताया कि इसे इलाहाबाद के एक संग्रहालय में रखा गया था और इसे नए संसद भवन में ले जाया जाएगा। नया संसद भवन हमारे इतिहास, सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और सभ्यता को आधुनिकता से जोड़ने का सुंदर प्रयास है। इस अवसर पर एक ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित हो रही है। नए संसद भवन में ‘सेंगोल’ स्थापित किया जाएगा। स्वतंत्रता के एक ‘महत्वपूर्ण ऐतिहासिक’ प्रतीक ‘सेंगोल’ (राजदंड) की प्रथा को फिर से शुरू करने की घोषणा शाह ने की। पीएम मोदी नए संसद भवन के उद्घाटन से पहले तमिलनाडु से ‘सेंगोल’ प्राप्त करेंगे और वह इसे नए संसद भवन के अंदर रखेंगे। सेंगोल स्पीकर की सीट के पास रखा जाएगा। गृहमंत्री शाह ने कहा, ‘इस पवित्र ‘सेंगोल’ को किसी संग्रहालय में रखना अनुचित है। ‘सेंगोल’ की स्थापना के लिए संसद भवन से अधिक उपयुक्त, पवित्र और उचित स्थान कोई हो ही नहीं सकता। इसलिए जब संसद भवन देश को समर्पण होगा, उसी दिन प्रधानमंत्री मोदी बड़ी विनम्रता के साथ तमिलनाडु से आए अधीनम (तमिलनाडु के तंजौर जिले में स्थित धार्मिक मठ) से ‘सेंगोल’ को स्वीकार करेंगे।’
अब हम अधीनम के बारे में भी जान लें। और ‘सेंगोल’ के संदर्भ में राजाजी सी. राजगोपालाचारी को भी याद कर लें। माउंटबेटन को ‘राजाजी’ ने ‘सेंगोल’ का महत्व समझाया था। अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण के समारोह पर वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने जवाहरलाल नेहरू से प्रतीकात्मक समारोह के बारे में जानकारी ली। इसके लिए नेहरू ने सी. राजगोपालाचारी से सलाह मांगी। तब राजाजी ने चोल वंश के सत्ता हस्तांतरण के मॉडल से प्रेरणा लेने का सुझाव दिया। दरअसल, चोल वंश में एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता सौंपते वक्त शीर्ष पुजारियों का आशीर्वाद दिया जाता था। एक राजा से उसके उत्तराधिकारी को ‘सेंगोल’ का प्रतीकात्मक हस्तांतरण शामिल था। सेंगोल को अधिकार और शक्ति का प्रतीक माना जाता था। राजाजी ने तमिलनाडु के तंजौर जिले में स्थित एक धार्मिक मठ, थिरुववदुथुराई अधीनम से संपर्क किया। अधीनम मठ से जुड़े संस्थान हैं जो भगवान शिव की शिक्षाओं और परंपराओं का पालन करते हैं। 500 से अधिक वर्षों से लगातार काम कर रहे थिरुववदुथुरै अधीनम का महत्वपूर्ण स्थान है। उनकी विशेषज्ञता और न्याय और धार्मिकता के सिद्धांतों के गहरे जुड़ाव को स्वीकार करते हुए, राजाजी ने ‘सेंगोल’ की तैयारी में उनकी सहायता मांगी। इस प्रकार तिरुवदुथुराई अधीनम के शीर्ष पुजारी द्वारा एक सेंगोल को बनाया गया जिसकी लंबाई लगभग पांच फीट थी। इसके शीर्ष पर स्थित नंदी प्रतीक था जो न्याय और निष्पक्षता को दर्शाता है। सेंगोल को तैयार करने का काम चेन्नई के जाने-माने जौहरी वुम्मिदी बंगारू चेट्टी को सौंपा गया था, जिनको इस क्षेत्र में महारत हासिल थी। ‘सेंगोल’ के निर्माण में शामिल और वुम्मिदी परिवार के दो सदस्य वुम्मिदी एथिराजुलु (96 वर्ष) और वुम्मिदी सुधाकर (88 वर्ष) आज भी जीवित हैं।
तो यह है ‘सेंगोल’ की पूरी जानकारी। और जैसा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसका महत्व बताया कि ‘सेंगोल’ जिसे दिया जाता है उससे न्यायसंगत और निष्पक्ष शासन प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जाती है। तो उम्मीद नहीं बल्कि ऐसा विश्वास है कि नया संसद भवन हमेशा न्यायसंगत और निष्पक्ष कार्यवाही का साक्षी बनेगा। अधिकार का यह पवित्र प्रतीक संसद के पवित्र भाव को हमेशा जीवित रखेगा, भले ही शासन का अधिकार मतदाता किसी भी दल को प्रदान करें। यह ‘सेंगोल’ न्यायसंगतता और निष्पक्षता का भाव देश के हर नागरिक में भी भर दे और भारतीय संविधान का हर भाव पूरी तरह से लोकतांत्रिक भारत में चरितार्थ हो…।