Fake Medicines Racket : क्राइम ब्रांच ने ब्रांडेड दवा के नाम पर नकली दवाओं का रैकेट पकड़ा! 

ये जानलेवा दवाइयां चूरन और चॉक से बन रही, रैकेट के 6 लोगों को पकड़ा! 

563

Fake Medicines Racket : क्राइम ब्रांच ने ब्रांडेड दवा के नाम पर नकली दवाओं का रैकेट पकड़ा! 

  New Delhi : नकली दवा के पूरे सिंडिकेट का क्राइम ब्रांच ने भंडाफोड़ किया। इस मामले में 6 आरोपी गिरफ्तार किए गए। दो फैक्ट्रियां, नामी कंपनियों की करीब 150 किग्रा नकली टैबलेट और 20 किलो कैप्सूल जब्त किए। डीसीपी (क्राइम) हर्ष इंदौरा ने बताया कि एंटी गैंग स्क्वॉड (एजीएस) में तैनात हेड कांस्टेबल जितेंदर को नकली दवा की खेप के दिल्ली आने की सूचना मिली।

एसीपी भगवती प्रसाद की देखरेख में इंस्पेक्टर पवन कुमार की टीम बनाई गई। सिविल लाइंस के शामनाथ मार्ग पर यूपी नंबर की कार को रोका गया। यूपी के मुरादाबाद निवासी दो भाई मोहम्मद आलम और मोहम्मद सलीम को नकली दवा की खेप के साथ पकड़ा। लैब टेस्ट में नकली होने की पुष्टि हो गई।

नामी कंपनियों जॉनसन एंड जॉनसन, जीएसके और अल्केम की नकली दवाएं बनाई जा रही थीं। अल्ट्रासेट, ऑगमेंटिन, पेरासिटामोल, जीरोडोल एसपी, पैंटॉप डीएसआर, केनाकोर्ट इंजेक्शन समेत कई दवाएं हैं। आरोपी सलीम और आलम ने बताया कि नकली दवा की खेप यूपी के महाराजगंज निवासी अरुण, करनाल के कोमल और गोरखपुर के सुमित समेत कई सप्लायरों से मिलती थीं। इस पूरे सिंडिकेट का मास्टरमाइंड राजेश मिश्रा है।

नकली दवाओं की बिक्री क्यों 

दिल्ली में नकली दवाओं का कारोबार अब संगठित रूप लेता जा रहा है। पिछले तीन महीनों में नकली दवाओं की बिक्री से जुड़े तीन बड़े मामले सामने आ चुके है। नकली दवाएं पकड़ने के लिए कड़ी निगरानी, सख्त एक्शन और विभिन्न एजेंसियों के आपसी तालमेल की दरकार है, लेकिन इसमें कई स्तरों पर कमी के चलते नकली दवाओं का कारोबार फलफूल रहा है। उद्योग संगठन एसोचैम ने 2022 में जारी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि भारत में घरेलू बाजार में उपलब्ध एक चौथाई दवाएं नकली हैं।

जींद में पकड़ी फैक्ट्री

सरगना राजेश मिश्रा ने जींद में नकली दवा बनाने की फैक्ट्री खोली थी। वह नेहा शर्मा और पंकज शर्मा से प्रतिष्ठित ब्रेड से मिलते-जुलते खाली पैकेजिंग बॉक्स लेता था। ब्लिस्टर पैकिंग में काम आने वाली पन्नी और डाई गोविंद मिश्रा के माध्यम से हिमाचल के बद्दी से खरीदता था। नकली दवा की खेप को रेलवे के जरिए गोरखपुर भेजा जाता था। प्रेम शंकर सरीखे ऑपरेटरों के जरिए दवा को ग्रासरूट पर आलम और सलीम जैसे ग्राउंड लेवल के डीलरों को बांटा जाता था।

नकली दवा बेचने के लिए शुरुआती संपर्क अक्सर फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए किया जाता था। किसी भी तरह के संदेह से बचने के लिए आरोपी नियमित कूरियर या प्राइवेट गाड़ियों से माल की सप्लाई करते थे।

पुलिस अफसरों ने बताया कि आरोपी मोबाइल वॉलेट और बारकोड के जरिए पैसे का भुगतान करते थे। अपने रिश्तेदारों के बैंक खातों का भी इस्तेमाल करते थे। जांच में हवाला के जरिए भी मोटी रकम की आवाजाही का भी खुलासा हुआ है।