
मशहूर अभिनेत्री और मॉडल रही ममता कुलकर्णी के महामंडलेश्वर बनने पर कहीं विरोध, कहीं तीखे सवाल तो कहीं उम्मीद के साथ स्वागत
राजेश जयंत की खास रिपोर्ट
1990 के दशक की मशहूर बॉलीवुड अभिनेत्री और मॉडल ममता कुलकर्णी ने प्रयागराज महाकुम्भ में पहुंचकर संन्यास ले लिया। संन्यास के साथ ही वह हाथों-हाथ किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर भी बना दी गई और नया नाम “यामाई ममतानंद गिरी” हो गया है।
ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर की यह पदवी किन्नर अखाड़े ने दी। यह अखाड़ा वर्ष 2015 में बना लेकिन सनातन धर्म के 13 प्रमुख अखाड़े से यह बिल्कुल अलग है। इस अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी है।
सनातन परंपरा की बात करें तो यहां सन्यासी हो जाना कोई आसान काम नहीं है। महामंडलेश्वर जैसे उच्च पद के लिए एक लंबी यात्रा तय करनी होती है। शिक्षा, ज्ञान और संस्कार के साथ ही सामाजिक जीवन की पड़ताल उपरांत सन्यासी को महामंडलेश्वर जैसे पद पर बिठाया जाता है.
अखाड़ा के इस प्रमुख पद तक पहुंचने में संतों को वर्षों लग जाते हैं।
शैव एवं वैष्णव संप्रदाय के अखाड़ो में वेद और गीता के ज्ञानी संतो को बड़े पद के लिए नामित किया जाता रहा है.
महामंडलेश्वर पद के लिए शर्तों की बात करें तो पहली- साधु सन्यास परंपरा से होना चाहिए। दूसरी- वेदों में पारंगत होने के साथ ही संत का चरित्र, व्यवहार व ज्ञान भी अच्छा होना चाहिए। तीसरी- अखाड़ा कमेटी निजी जीवन की पड़ताल करती है। संतुष्ट होने के बाद सन्यासी का पट्टकाभिषेक कर महामंडलेश्वर पद से अलंकृत किया जाता है।
इन विशेषता और शर्तों के सापेक्ष किन्नर अखाड़े की स्थापना और उसके नीति नियम को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर की उपाधि से अलंकृत किए जाने के बाद जहां विरोध के स्वर और तीखे सवाल सामने आ रहे हैं वहीं सन्यास परंपरा मे उनका उम्मीद के साथ स्वागत भी किया जा रहा है।
महामंडलेश्वर श्रीपंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी, अध्यक्ष सनातनी सेंसर बोर्ड स्वामी चिदंबरानंद सरस्वती ने ममता कुलकर्णी के महामंडलेश्वर बनने पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए फेसबुक पेज पर लिखा कि- अब कुछ कहने को नहीं बचा। ये पतन कहां जाकर रुकेगा कोई नहीं जानता। सम्मानित संतों के पद को इस तरह कलंकित किया जाएगा, किसने कल्पना की होगी..?
हमें गर्व है कि वर्तमान में श्रीपंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी महामंडलेश्वर बनाने से पहले बहुत कुछ देख सोच कर ही निर्णय करता है।
इसी तरह एक अन्य पोस्ट में स्वामी जी ने लिखा कि- प्रयागराज महाकुम्भ में सर्वाधिक भीड़ यदि किसी मण्डप में रहती है तो उसका नाम है किन्नर अखाड़ा। पहले दोषी वे हैं जिन्होंने इसे अखाड़े के रूप में मान्यता देकर किन्नरों को महामंडलेश्वर बनाया। दूसरे दोषी वे हैं जिन्होंने बिना साधु वेष के किन्नरों के फूहड़ श्रृंगार में ही अखाड़े में स्वीकार किया। तीसरे दोषी भीड़ के वे लोग हैं जिन्होंने जिन्होंने इन्हें महत्त्व देकर आकर्षण का केन्द्र बना दिया।
स्वामी जी की फेसबुक पोस्ट पर अनेक प्रतिक्रियाएं सामने आई, जिनमें से कुछ यह है-
अमिया भूषण लिखते हैं कि किन्नर अखाड़े की शुरुआत ही सनातन हिंदू धर्म की हानि और ग्लानि के लिए है। आज का यह पाखंड आने वाले कल में सनातन के लिए विषबेल बन जाएगा।
ऊंकार गुप्त लिखते हैं कि- महामंडलेश्वर के लिए कोई योग्यता भी तो होती होगी। सीधे महामंडलेश्वर बना देना समझ से परे है।
आगे लिखते हैं कि क्या ममता कुलकर्णी किन्नर है.. यदि नहीं, तो फिर किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर कैसे बना दी गई।
एस कुमार ने तंज करते हुए लिखा है कि-
जब एक मोक्ष विक्रेता हर्षा रिछारिया को अपनी बगल में बैठाकर पेशवाई करवा सकता है तो दूसरा मोक्ष विक्रेता ममता कुलकर्णी को महामण्डलेश्वर भी बना सकता है।
हरिश्चंद्र उपाध्याय लिखते हैं कि एक सर्वमान्य धर्म पीठ बना कर ही ऐसे विभिन्न विवादों एवं त्रुटिपूर्ण निर्णयों को सुलझाया जा सकता है।
समस्त मतावलंबी सनातनियों के लिए एक सामान्य आचार संहिता बनाई जा सकती है।
कुछ मिली जुली प्रतिक्रियाएं
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तपो निधि पंचायती आनंद अखाड़े आचार्य महामंडलेश्वर बालकानंद जी महाराज महामंडलेश्वर पद को लेकर मानते हैं कि सभी अखाड़े स्वतंत्र हैं। लेकिन यह भी कहते हैं कि ऐसे ही किसी को उठाकर महामंडलेश्वर जैसे पद पर बैठा देना उचित नहीं है। चरित्र कैसा है, सन्यास की समयावधि और योग्यता देखना चाहिए।
पंचदशानाम जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरि कहते हैं कि ममता के संन्यासी होने का मैं स्वागत करता हूं लेकिन एकदम से महामंडलेश्वर बनाना सही नहीं है। पद की गरिमा और सनातन धर्म के प्रति लोगों की आस्था बनी रहे इसलिए यह देखना चाहिए कि पात्र व्यक्ति ही इस पद पर बैठे।
जूना अखाड़ा के प्रवक्ता नारायण गिरी जी बताते हैं किन्नर अखाड़ा जूना अखाड़ा की एक शाखा है। 2019 में किन्नर अखाड़ा रजिस्टर्ड हुआ। सबके अपने मापदंड होते है। किसे महंत, साध्वी या महामंडलेश्वर बनाए इसके लिए वह स्वतंत्र है। उन्होंने कहा कि जूना अखाड़ा की परंपरा अलग है। यहां सीधे महामंडलेश्वर नहीं बनाए जाते।
शांभवी पीठ के पीठाधीश्वर श्री स्वामी आनंद स्वरूप जी महाराज कहते हैं कि पिछले महाकुंभ में किन्नर अखाड़े को मान्यता देना महा पाप हो गया।
ममता का बड़ा नाम है, अब यह नाम पर व्यापार करेंगे। ममता का विषय धर्म के खिलाफ और घातक है।
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी के अलग ही विचार है। वह मानते हैं कि सनातन पर परंपरा में कई बड़े ऋषि रहे जो पहले डाकू थे। मंडलेश्वर यानी मंडल का ईश्वर जो सैकड़ो संतो को साथ लेकर चले, धर्म का प्रचार प्रसार करें। अगर ममता इस अनुरूप चली तो सनातनी अध्यात्म परंपरा उच्च शिखर पर पहुंचेगी।





