फेस्टिवल मौसम : बाजार की भीड़ को खरीदार न समझें!

बरसों बाद इस बार त्योहारी बाजार बेहद ठंडा

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बसंत पाल की विशेष रिपोर्ट

देश में दीपावली फेस्टिवल की धूम है। बाजार सज गए, बाजार में खरीदारों की भीड़ है। बढ़ती महंगाई और आम आदमी की घटती क्रय शक्ति से सभी परेशान है। बाजार में भीड़ तो बहुत दिखाई दे रही है, पर खरीदारी कहीं नजर नहीं आ रहे। कोविड महामारी के बाद हालात अब भी सामान्य नहीं हुए। इससे उपजी आर्थिक मंदी से लोग परेशान हैं, उस पर महंगाई की मार ने मध्यमवर्गीय परिवारों का बजट बिगाड़ दिया। मार्केट में स्ट्रीट वेंडर्स के यहां सस्ते फेस्टिवल आइटम की डिमांड हैं। मार्केट में यही भीड़ दिखाई दे रही है।

दीपावली फेस्टिवल सीजन में एफएमसीजी, ज्वैलरी और ऑटोमोबाइल सेक्टर में खरीदी की धूम रहती है तो किराना, कॉस्मेटिक, गारमेंट और अन्य रिटेल सेक्टर में भी कस्टमर का रिस्पांस अच्छा रहता है। पर इस साल महंगाई से परेशान कंज्यूमर की बाइंग केपेसिटी कमजोर होने से बाजार की भीड़ में खरीदारों की कमी नजर आ रही है। किराना बाजार के प्रमुख व्यवसायी महेश विजयवर्गीय का कहना है कि बीते एक साल से अधिक समय हो गया पर कोरोना का खतरा बना हुआ है, इस पर रोज-रोज बढ़ते पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स के भाव से व्यापारी और उपभोक्ता सब परेशान है। सबसे ज्यादा परेशान होलसेल बिजनेस करने वाले हैं। क्योंकि, जब वो माल बुक करते है तो प्रोडक्ट का रेट कुछ होता है, डिस्पैच तक आते-आते रेट और बढ़ जाते हैं। माल जब तक डीलर के गोडाउन में पहुंचता है, तब तक डीजल का भाव दो से तीन बार बढ़ चुका होता है। इससे डीलर से लेकर रिटेलर और कंज्यूमर सब परेशान हैं। जबकि, सप्लाई चैन में सब का मार्जिन फिक्स रहता है।

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मार्केट की ग्राहकी पेट्रोल, डीजल के रोज बढ़ते भाव खा गए हैं। इसका सीधा असर ग्राहक की क्रय शक्ति पर पड़ा है। जिस तेजी से महंगाई बढ़ रही है उस हिसाब से लोगों की आय नहीं बढ़ी, यही वजह है कि बाजार में भीड़ तो दिख रही है पर खरीदी गायब है। विजयवर्गीय का कहना है कि मार्केट में 10 फीसदी खरीदी ही है, जो रोजाना की जरूरत की खरीदी कर रहे हैं। एक ऑटोमोबाइल डीलर का कहना है कि हमें लॉकडाउन में हुए घाटे को पाटने में सालों लग जाएगें। क्योंकि, तब से हमारी टू-व्हीलर की बिक्री आधी से भी कम हो गई है। फेस्टिव सीजन में तो डिमांड चार गुना बढ़ जाती थी, पर कोविड महामारी के बाद से हालात तेजी से बदले हैं। दिवाली फेस्टिवल सीजन में 30 व्हीकल रोज बेचना भी मुश्किल हो गया है।

गोल्ड ज्वैलरी मार्केट के हाल भी कुछ और ही बयां कर रहे हैं। ज्वैलर मोहन सोनी ने बताया कि ज्वैलरी की डिमांड हाई इनकम के लोगों की और मुड़ गई हैं। सामान्य भारतीय परिवारों में वैवाहिक खरीदी फैस्टीवल सीजन में शुरु हो जाती है, पर इस साल महंगाई के कारण मध्यमवर्गीय परिवारों की ज्वैलरी की डिमांड कमजोर है। गोल्ड और सिल्वर के रेट बीते साल से कम होने से लोगों का खरीदी में रुझान है। गोल्ड के रेट जहां गत वर्ष से लगभग 4000 रुपए प्रति दस ग्राम तक कम हैं, तो चाँदी भी 5 से 7 हज़ार रुपए प्रति किलो कम है। ग्राहक परंपरा का का निर्वाह करने के लिए भी ख़रीदी कर रहे हैं। धनतेरस पर इस बार बर्तन बाजार में भी बिजनेस ठीक रहा। यहाँ भी लोगों ने परंपरागत रूप से खरीदी ही है। सबसे कमजोर रहा गिफ्ट मार्केट। इस मार्केट में वर्क फ्रॉम होम का असर ख़ासा दिखाई दे रहा है। कार्पोरेट गिफ्ट की डिमांड घटकर आधी रह गई है।

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इस साल मिठाई की लागत और कीमत दोनों बढ़ गए। मिठाई मार्केट में लागत काफ़ी मायने रखती है। यही कारण है कि निर्माता महँगी मिठाई के बजाय सस्ती और रूटीन में बनाई जाने वाली मिठाइयों को ही बेच रहे हैं। क्योंकि, माँग सामान्य से भी कम है। लोगों के दिल से अब भी कोरोना वायरस का भय गया नहीं है। वे घर की मिठाई और नमकीन का ही उपयोग अधिक कर रहे हैं। रेडीमेड गारमेंट में तो सस्ते गारमेंट्स मार्केट में बिक रहे हैं। मिडिल क्लास की डिमांड से बाजार में जो खरीदी की चमक दिखाई देती है, वो नहीं है। एफएमसीजी गुड्स में भी एक्सचेंज ऑफर की धूम पर भी डिमांड कमजोर है। लोगों को पेट्रोल के बढ़ते भाव से घर गृहस्थी का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है, इससे भी इलेक्ट्रॉनिक आइटम की सेल कमजोर है।