Film Review: ‘कर्तम भुगतम’ नहीं, ‘देखम झेलम भुगतम’  

 Film Review: ‘कर्तम भुगतम’ नहीं, ‘देखम झेलम भुगतम’  

डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी की फिल्म समीक्षा 

इस फिल्म का नाम ‘कर्तम भुगतम’ नहीं, ‘देखम झेलम भुगतम’  होना चाहिए था। सन्देश अच्छा है, लेकिन प्रस्तुति अझेलनीय !  कहते हैं कि फिल्म छोटे बजट की है, लेकिन पांच भाषाओं में बनी है और इसे साइकोलॉजिकल थ्रिलर का नाम दिया गया है।  फिल्म की कहानी ज्योतिष के अंधविश्वास के खिलाफ है, लेकिन दुनिया में करोड़ों लोग राशि, वास्तु, कुंडली, टैरो,  पत्रिका, अंक विज्ञान, जन्म कुंडली, ग्रह, नक्षत्र, रत्न और टोने-टोटके को मानते हैं। यह कारोबार कोरोना के बाद और ज्यादा फल-फूल रहा है।  अंधविश्वास को फैलाने के लिए हत्या के षड्यंत्र तक किये जाते हैं।  इस फिल्म में टर्न और ट्विस्ट हैं, शुरू में अन्धविश्वास फ़ैलाने वाली घटनाएं हैं और अंत में पता चलता है कि अरे यह फिल्म तो फर्जी ज्योतिषियों और पाखंडियों के खिलाफ है!

ज्योतिष को विज्ञान मानने वाले भी करोड़ों लोग हैं।  लगभग हर धर्म में ‘जैसा करोगे, वैसा भुगतोगे’ का सन्देश है।  पाखंडी ज्योतिषियों का धंधा किस तरह धोखेबाजी में बदल जाता है, इसके कई नमूने देश में हैं। निर्देशक सोहम शाह पहले ‘काल’ और ‘लक’ जैसी फ़िल्में बना चुके हैं।  मध्य प्रदेश में आजकल तरह-तरह के ज्योतिषी, बाबा और टोने टोटके करने वालों की संख्या बढ़ गई है शायद इसीलिए इस फिल्म की कहानी भी भोपाल के एक युवा की है, जो न्यूज़ी लैंड में रहते हुए कोरोना में अपने पिता को खो चुका है और भोपाल में अपनी पैतृक प्रॉपर्टी बेचकर वापस विदेश में बस जाना चाहता है। उसके यहां आते ही पाखंडी ज्योतिषी का खेल शुरू होता है। लेकिन हीरो की  6 साल पुरानी गर्लफ्रेंड विदेश से आकर हीरो को बचा लेती है। ढोंगी बाबा का राजफाश होता है।

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हिन्दी दर्शकों ने हाल ही अजय देवगन और माधवन की शैतान में ऊलजलूल काला जादू देखा।  फिल्म चली भी।  यह फिल्म अन्धविश्वास के खिलाफ है और इसे दर्शक नहीं मिल  रहे हैं।  फिल्म का एक मजेदार संदेश यह भी है कि ज्यादातर कर्मकांडी और टोने-टोटके करने वाले लोग अपने एजेंटों के जरिए धंधे को बढ़ाते हैं।  ग्राहक को फंसाने के लिए जाल बिछाया जाता है।  कर्मकांड किए जाते हैं। ये लोग  पूजा पद्धतियों और उपवासों का भी सहारा लेते हैं ताकि आम आदमी का विश्वास जीत सकें।

श्रेयस तलपड़े, विजय राज, मधु, अक्षा परदासनी और गौरव डागर की मुख्य भूमिका है। फिल्म में भोपाल की खूबसूरती लुभाती है। कहानी रोमांचक है। एक्टिंग भी अच्छी है और निर्देशन सामान्य है। फिल्म का पार्श्व संगीत कानफोड़ू है। दर्शक फिल्म से राब्ता नहीं बना पाता।

फिल्म अझेलनीय है।

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डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी

डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी जाने-माने पत्रकार और ब्लॉगर हैं। वे हिन्दी में सोशल मीडिया के पहले और महत्वपूर्ण विश्लेषक हैं। जब लोग सोशल मीडिया से परिचित भी नहीं थे, तब से वे इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। पत्रकार के रूप में वे 30 से अधिक वर्ष तक नईदुनिया, धर्मयुग, नवभारत टाइम्स, दैनिक भास्कर आदि पत्र-पत्रिकाओं में कार्य कर चुके हैं। इसके अलावा वे हिन्दी के पहले वेब पोर्टल के संस्थापक संपादक भी हैं। टीवी चैनल पर भी उन्हें कार्य का अनुभव हैं। कह सकते है कि वे एक ऐसे पत्रकार है, जिन्हें प्रिंट, टेलीविजन और वेब मीडिया में कार्य करने का अनुभव हैं। हिन्दी को इंटरनेट पर स्थापित करने में उनकी प्रमुख भूमिका रही हैं। वे जाने-माने ब्लॉगर भी हैं और एबीपी न्यूज चैनल द्वारा उन्हें देश के टॉप-10 ब्लॉगर्स में शामिल कर सम्मानित किया जा चुका हैं। इसके अलावा वे एक ब्लॉगर के रूप में देश के अलावा भूटान और श्रीलंका में भी सम्मानित हो चुके हैं। अमेरिका के रटगर्स विश्वविद्यालय में उन्होंने हिन्दी इंटरनेट पत्रकारिता पर अपना शोध पत्र भी पढ़ा था। हिन्दी इंटरनेट पत्रकारिता पर पीएच-डी करने वाले वे पहले शोधार्थी हैं। अपनी निजी वेबसाइट्स शुरू करने वाले भी वे भारत के पहले पत्रकार हैं, जिनकी वेबसाइट 1999 में शुरू हो चुकी थी। पहले यह वेबसाइट अंग्रेजी में थी और अब हिन्दी में है।

डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी ने नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर एक किताब भी लिखी, जो केवल चार दिन में लिखी गई और दो दिन में मुद्रित हुई। इस किताब का विमोचन श्री नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के एक दिन पहले 25 मई 2014 को इंदौर प्रेस क्लब में हुआ था। इसके अलावा उन्होंने सोशल मीडिया पर ही डॉ. अमित नागपाल के साथ मिलकर अंग्रेजी में एक किताब पर्सनल ब्रांडिंग, स्टोरी टेलिंग एंड बियांड भी लिखी है, जो केवल छह माह में ही अमेजॉन द्वारा बेस्ट सेलर घोषित की जा चुकी है। अब इस किताब का दूसरा संस्करण भी आ चुका है।