श्रीप्रकाश दीक्षित की विशेष रिपोर्ट
इस साल जब देश 73 वां गणतन्त्र दिवस मना रहा था उसी समय सागर से खबर आई कि दलित दूल्हे ने घोड़े पर सवार होकर निकलने की जुर्रत की तो दबंगों ने हमला बोल दिया और महिलाओं से मारपीट की.
अब फिर खबर आई है कि छतरपुर में भी दूल्हे का घोड़े पर सवार होना गाँव के दबंगों को रास नहीं आया और रस्म रोक दी गई.
यहाँ चूंकि दूल्हा पुलिस का सिपाही है तो उसने जिले के आला अफसरों से शिकायत की तब यह मुमकिन हो पाया।
मामला खालिस पुलिसिया था तो थानेदार और एएसआई को सस्पेंड कर दिया गया पर सवर्णी तेवर दिखाने वाले दबंगों पर कार्रवाई की खबर नहीं है।
आज की खबर है कि राजगढ़ मे दलित के घर शादी में डीजे बजने पर दबंग क्रुद्ध हो गए और जमकर उत्पात मचाया. शिवराज के पहले दौर मे भोपाल के समीप गाँव में सवर्ण तबका अनुसूचित जाति के लोगों को कुएं से पानी नहीं भरने दे रहा था और सैलून में हजामत कराने पर भी रोक थी.
अख़बारों में हल्ला मचने पर अधिकारी मान मनव्वल में लगे थे..! राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के मुताबिक दलित अत्याचार में मध्यप्रदेश तब नंबर एक था. कमलनाथ के राज में शिवपुरी में खुले में शौच पर दो दलित बच्चों को मारने की खौफनाक घटना हुई थी.
प्रधानमंत्री के गृह राज्य के आणंद में दलित युवक को गरबा में भाग लेने पर पटेल लोगों ने पीट पीट कर मार डाला था. वहीं भावनगर में एक दलित को क्षत्रिय समुदाय के लोगों ने इसलिए मार दिया क्योंकि उसने घुड़सवारी का शौक पालने की जुर्रत की थी.
आगरा में नट जाति की बहू का ठाकुरों ने यह कह कर शमशान में अंतिम संस्कार नहीं होने दिया कि यह उनका है. समझाने पर भी वो नहीं माने और नट परिवार को दूर जाकर अंतिम संस्कार करना पड़ा.
अब आजादी का अमृत महोत्सव मनाए जाने की धूम है जबकि छुआछूत की घटनाएँ बताती हैं कि बहुतों के लिए यह आधी अधूरी आजादी है.
बेहतर तो यही होगा कि पहले कथित ऊँचे तबकों को मानसिक गुलामी से आजाद कराया जाए तभी ही हर तबके को पूरी आजादी का एहसास होगा और तब सरकारें भी ऐसे महोत्सवों को मनाने की सच्चे अर्थों मे हकदार होंगी।