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अग्निपथ के लिए देश में पहली जरुरत शिक्षक सेना की
केंद्र सरकार ने दस लाख लोगों को रोजगार देने की महत्वपूर्ण घोषणा की , लेकिन इनमें से केवल 44 हजार को हर साल सेना में भर्ती के लिए ‘ अग्निपथ सेवा ‘ योजना को लेकर राजनीतिक आग बरस गई है | इरादा अच्छा रहे , लेकिन उसके पहले विभिन्न स्तरों पर तैयारी की कमी से ऐसे विवाद के खतरे होते हैं | पुराने ढर्रे को बदलना समाज में थोड़ा कठिन होता है | सेना की नौकरी चुनौतीपूर्ण और खतरों से भरी होती है | लेकिन लाखों लोग सेना , अर्द्ध सैनिक बल और पुलिस में भर्ती होते हैं | इसलिए उनके वेतन , भत्ते , पेंशन और अन्य सुविधाओं में कोई कमी नहीं होती | फिर सेना का एक वर्ग 40 की उम्र में रिटायर होकर अन्य क्षेत्रों में सक्रिय हो सकता है |
इस दृष्टि से अग्नि पथ योजना में केवल चार साल बाद ही अन्य क्षेत्रों में अनुशासित और ईमानदार जीवन बिताने के प्रस्ताव से एक वर्ग विचलित है | इस योजना के लाभ हानि , समर्थन , विरोध का सिलसिला कुछ समय तो चलने वाला है | समाज और सरकारों या सेना और न्याय पालिका का यह लक्ष्य सही है कि देश की नई पीढ़ी को ईमानदारी और राष्ट्र सेवा के लिए तैयार किया जाना चाहिए | लेकिन सेना के माध्यम से ही अपेक्षा उचित नहीं लगती | असली आवश्यकता किसी भी क्षेत्र में काम करने के लिए शिक्षा और शैक्षणिक काल से अनुशासन और संस्कार देने की है | तब सड़कों पर अकारण उन्माद , हिंसा , अपराध और आतंकवाद से जुड़ने के खतरे बहुत कम हो सकते हैं |
हमसे अधिक हमारे पिता , दादाजी प्रसन्न होते | बचपन से उन्हें इस बात पर गुस्सा होते देखा – सुना था कि अंग्रेज चले गए , लेकिन हमारी शिक्षा व्यवस्था का भारतीयकरण नहीं हुआ | पिता शिक्षक थे और माँ को प्रौढ़ शिक्षा से जोड़ रखा था | उनकी तरह लाखों शिक्षकों के योगदान से भारत आगे बढ़ता रहा , लेकिन उनके सपनों का भारत बनाने का क्रांतिकारी महा यज्ञ अब शुरू होना है |
पहले हम जैसे लोग प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी , उनके मंत्रियों , सचिवों से सवाल कर रहे थे कि नई शिक्षा नीति आखिर कब आएगी ? लगभग ढाई लाख लोगों की राय , शिक्षाविदों के गहन विचार विमर्श के बाद हाल ही में नई शिक्षा नीति घोषित कर दी गई | मातृभाषा , भारतीय भाषाओँ को सही ढंग से शिक्षा का आधार बनाने और शिक्षा को जीवोपार्जन की दृष्टि से उपयोगी बनाने के लिए नई नीति में सर्वाधिक महत्व दिया गया है | केवल अंकों के आधार पर आगे बढ़ने की होड़ के बजाय सर्वांगीण विकास से नई पीढ़ी का भविष्य तय करने की व्यवस्था की गई है |
संस्कृत और भारतीय भाषाओँ के ज्ञान से सही अर्थों में जाति , धर्म , क्षेत्रीयता से ऊँचा उठकर सम्पूर्ण समाज के उत्थान के लिए भावी पीढ़ी को जोड़ा जा सकेगा | अंग्रेजी और विश्व की अन्य भाषाओँ को भी सीखने , उसका लाभ देश दुनिया को देने पर किसीको आपत्ति नहीं हो सकती | बचपन से अपनी मातृभाषा और भारतीय भाषाओँ के साथ जुड़ने से राष्ट्रीय एकता और आत्म निर्भर होने की भावना प्रबल हो सकेगी | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर को अनुच्छेद 370 से मुक्त करने के बाद यह सबसे बड़ा क्रांतिकारी निर्णय किया है | महायज्ञ होने पर आस पास मंत्रोच्चार के साथ बाहरी शोर भी स्वाभाविक है |
सब कुछ अच्छा कहने के बावजूद कुछ दलों , नेताओं अथवा संगठनों ने शिक्षा नीति पर आशंकाओं के साथ सवाल भी उठाए हैं | कुछ नियामक व्यवस्था नहीं रखी जाएगी तब तो अराजकता होगी | राज्यों के अधिकार के नाम पर दुनिया के किस देश में अलग अलग पाठ्यक्रम और रंग ढंग होते हैं | प्रादेशिक स्वायत्तता का दुरुपयोग होने से कई राज्यों के बच्चे पिछड़ते गए | इसी तरह जाने माने लोग भी निजीकरण को बढ़ाए जाने का तर्क दे रहे हैं | वे क्यों भूल जाते हैं कि ब्रिटैन , जर्मनी , अमेरिका जैसे देशों में भी स्कूली शिक्षा सरकारी व्यवस्था पर निर्भर है | निजी संस्थाओं को भी छूट है , लेकिन अधिकांश लोग कम खर्च वाले स्कूलों में ही पढ़ते हैं | तभी वहां वर्ग भेद नहीं हो पता | मजदुर और ड्राइवर को भी साथ में टेबल पर बैठकर खिलाने में किसी को बुरा नहीं लगता | हाँ यही तो भारत के गुरुकुलों में सिखाया जाता था | राजा और रंक समान माने जाते रहे |
हाँ यह तर्क सही है कि नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के लिए सरकार धन कहाँ से लाएगी और शिक्षकों का पर्याप्त इंतजाम है या नहीं ? एक सरकारी रिपोर्ट में स्वीकारा गया है कि देश में लगभग दस लाख शिक्षकों की जरुरत है | विभिन्न राज्यों में स्कूल खुल गए , कच्ची पक्की इमारत भी बन गई , लेकिन शिक्षकों की भारी कमी है | पिछले महीने एक घोषणा करीब 59 हजार नए शिक्षकों की भर्ती के लिए हुई है | यह संख्या पर्याप्त नहीं कही जा सकती है | इसलिए पहले देश को शिक्षकों की सेना की जरुरत है | अग्निपथ योजना को कुछ लोग इसराइल जैसे कुछ देशों में रही सैन्य शिक्षा के अनुरूप बता रहे हैं | जबकि भारतीय परिस्थिति में थोड़े से परिवर्तन से कई दूरगामी राष्ट्रीय हित पूरे हो सकते हैं | शैक्षिक जीवन से कम उम्र में अनुशासन के संस्कार के लिए एन सी सी ( नॅशनल केडेट कोर )का महत्वपूर्ण योगदान रहा है | वर्तमान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के जीवन और सफलता का एक बड़ा आधार उनका एन सी सी में रहना माना जाता है |
भारत चीन युद्ध के बाद 1963 में शिक्षा के साथ एन सी सी का प्रशिक्षण अनिवार्य किया गया , लेकिन 1968 में व्यवस्था बदली और इसे स्वेच्छिक कर दिया गया | जबकि अनुशासन और एकता का संस्कार बचपन से मिलने का लाभ जीवन भर समाज और राष्ट्र को भी मिलता है | स्कूलों और कालेजों में एन सी सी का प्रावधान अधिक है | क्रिकेट को बड़े पैमाने पर आकर्षक बना दिया गया है |
एन सी सी में सेना के तीनों अंगों – थल , जल , वायु के लिए प्रारम्भिक प्रशिक्षण की सुविधा है | छात्र जीवन में एन सी सी के किसी भी क्षेत्र से तैयार हुए युवा सेना ही नहीं विभिन्न क्षेत्रों में सफल होते हैं | इसी तरह एक एन एस एस ( राष्ट्रीय सेवा योजना ) भी है | इससे भी छात्र जीवन में सामाजिक क्षेत्र में सेवा का महत्व समझ में आता है | जर्मनी जैसे संपन्न लोकतान्त्रिक देश में किसी भी युवा को कालेज की शिक्षा की डिग्री तब तक नहीं मिलती है , जब तक उसने शिक्षा के दौरान एक साल सैन्य प्रशिक्षण या प्रामाणिक ढंग से सामाजिक सेवा नहीं की हो | इस मुद्दे पर मैं स्वयं कई मंचों पर अथवा , नेताओं और अधिकारियों से चर्चा करता रहा हूँ |
तब एन सी सी अथवा सेना से जुड़े अधिकारी भी यह तर्क देते हैं कि एन सी सी संगठन के पास सभी शैक्षणिक संस्थाओं में एन सी सी के प्रावधान के लिए पर्याप्त बजट नहीं है | तब मेरा तर्क है कि देश की नींव और भविष्य को मजबूत करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के अलावा आर्थिक प्रगति के साथ तेजी से सम्पन कारपोरेट कंपनियों , व्यापारिक संस्थानों और कुछ राज्यों के अति संपन्न धार्मिक ट्रस्टों के आर्थिक सहयोग से किसी भी निश्चित समयावधि में एन सी सी की अनिवार्यता को लागू करने का इंतजाम हो सकता है | इसका लाभ भविष्य में सेना की भर्ती के लिए भी हो सकेगा और अनुशासित युवा विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दी सकेंगे |
( लेखक आई टी वी नेटवर्क – इंडिया न्यूज़ और आज समाज दैनिक के सम्पादकीय निदेशक हैं )
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आलोक मेहता
आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।
7 सितम्बर 1952 को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।
भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।
प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान, राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।