पिलपिला खरबूजा,पत्नी और आप

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पिलपिला खरबूजा,पत्नी और आप

बेहद मार्मिक वक्त होता है वो जब आपके जतन से लाये गये ख़रबूज़े का कटना शुरू हो उसके पहले ही आपकी बीबी की एक ऊंगली अपने आप ,बिना किसी कोशिश के ,अनायास उस ख़रबूज़े में घुस जाती है। सच बात तो ये है कि आपकी बीबी की ऊंगली उस पिलपिले ख़रबूज़े में नहीं घुसती जिसे आप ऑफिस से घर लौटते वक्त ख़रीद लाये थे। वह आपके शरीर के उस गुप्त संवेदनशील स्थान मे जा घुसती है जहां आप उसकी मौजूदगी क़तई नहीं चाहते थे।

किसने कहा था आपसे ख़रबूज़ा लाने के लिए ?

ये सवाल आपकी उस सद्भावना के पुट्ठों पर लात पड़ने जैसा है। जिससे आप महिला दिवस के आसपास से ही ओतप्रोत थे। आप दिल से ठान चुके थे कि अब आगे जीवन के जितने भी दिन शेष हैं उनका सदुपयोग बीबी की नज़रों में चढ़ने के लिये किया जायेगा। आप बीबी की मदद करने में जान लड़ा देंगे। उसके हर काम मे मदद करेंगे ,और हर काम मे मदद ना भी कर सके तो साग सब्ज़ी और फल ख़रीदने जैसे आसान काम को आप कर ही गुजरेंगे।

पर बहुत जल्दी ,दुनिया के हर दूसरे खाविंद की तरह आप भी यह समझ जाते हैं कि जो टॉस्क आपने अपने लिये तय किया था वो दाल भात खाने जितना आसान था नही। आप उस पसीने का हिसाब लगाते हैं जो आप अपनी बीबी को इन्प्रैस करने के चक्कर में बहा चुके ,तो पता चलता है कि उतनी मेहनत में तो एवरेस्ट पर चढ़ कर तिरंगा फहराया जा सकता था। इतने पसीने से आप अपने ऑफिस की सारी फ़ाईलें बहा सकते थे। वह पसीना आपको अगला प्रमोशन दिलाने के लिये काफ़ी हो सकता था। पर पत्नी आपके इस पसीने की कद्र करने के लिये राज़ी दिखती नहीं।

सवाल अब तक आपके सामने मज़बूती से पाँव जमाये खड़ा हुआ है। किसने कहा था आपसे ख़रबूज़ा लाने के लिए ? व्यास जी की नक़ल करने की सूझी है आपको ?

अरे मैंने सोचा कि तुम ख़ुश हो जाओगी।

ये आपको किसने बताया है कि सडे ख़रबूज़े लाने से बीबियाँ खुश हो जाती हैं ?

ख़रीदते वक्त तो बहुत अच्छी हालत में दिख रहा था ये।

यदि ख़रीदते वक्त आपने वाक़ई देख लिया होगा उसे ,तो ये नौबत आती ही क्यों ? आपका ध्यान और किसी नज़ारे का लुत्फ़ ले रहा होगा इस वक्त।

ऐसा नहीं है यार। बूढ़ा हो चुका। अब काहे के नज़ारे। आप हिम्मत कर मुस्कराते हैं। आपका मनोबल गिरने के लिये ख़तरे के निशान के आसपास पहुँचने की तैयारी कर रहा होता है अब।

तो फिर ?

भरोसे का दुकानदार है वो। आप पाते है आपकी आवाज़ मे अब वो दम रहा नहीं जो घर मे घुसते वक्त था।

वही तो। भरोसे के दुकानदार ने ठक ठक करके पकड़ा दिया और आपने ले लिया।

गर्मी का फल है यार। लग गई होगी इसे भी गर्मी।

कही ऐसा तो नहीं हुआ ? इस ख़रबूज़े ने आपसे हाथ जोड़कर रिक्वेस्ट की हो आपसे कि सर मैं गरीब हूँ। मेरी तबियत ठीक नहीं है। लू लग गयी है मुझे। अनाथ हूँ मैं। मुझे गोद ले लीजिये वरना मैं मर जाऊँगा।

अरे ना ऐसा कुछ नहीं।

दरअसल हुआ ये। आपने ज़हमत की ही नहीं होगी कार से उतरने की। आपको हर चीज अपने हाथ में चाहिए। भाँप गया होगा काइयाँ दुकानदार कि यही वो अकलमंद बंदा है जिसे अपने पिलपिले ,बासी ,बदबूदार ख़रबूज़े आसानी से टिकाये जा सकते हैं।

अरे मौसमी फल है ये। हो जाता है कभी कभी ऐसा।

चलिये एक ख़रबूज़े के साथ हो तब भी ठीक है ,इस दूसरे और तीसरे की तबियत भी कुछ ठीक नहीं लग रही मुझे तो। अच्छा ये बताईये ! आपको ख़रबूज़े खाने थे या कॉलोनी में उनकी दुकान लगाना थी।

मैं समझा नहीं ?

समझते आप तो रोना ही क्या था। ये तीन तीन ख़रबूज़े क्यो टांग लाये आप।

आप की हिम्मत टूटने लगती है अब। दरअसल उस दुकानदार ने कहा कि …

यह कहा उसने कि आप जैसे समझदार ,पढ़ने लिखने वाले अफ़सर कभी कभी ही आते है दुकान पर।

ना ऐसा तो नहीं।

फिर ?

उसने कहा कि बिल्कुल शक्कर जैसे मीठे हैं।

तो ऐसा कीजिये ये सारे ख़रबूज़े लौटा आइये उस दुकानदार को बताईए कि वो चाय में शक्कर की जगह इन खरबूजो का ही इस्तेमाल कर ले। और फिर गलती की आपने ,आपको तो उसे फ़ौरन शुगर मिल खोलने और उसमे अपनी पार्टनरशिप का ऑफ़र दे देना चाहिये था।

आप का कॉन्फिंडेंस ,आपकी सद्भावना का हाथ पकड़ कर पाताल में घुस जाता है अब। आपको लगता है कि आप गलती से खरबूज की जगह ज़िंदा बम ख़रीद लाये थे और अब हिंदुस्तानी सेना की गिरफ़्त में हैं। आपको यह भी लगता है कि जो ख़रबूज़े आप ख़रीद लाये है वो आपके पिछले जन्म के पापों का फल हैं। और उन्हें भुगते बिना आपका मोक्ष मुमकिन नहीं हो सकेगा।

छोड़ो भी अब यार। तुम तो चुईंगम की तरह चबा रही हो इस मामले को। मामूली सा खरबूज ही तो है ये।

ना बात मामूली है।ना ये ख़रबूज़ा मामूली है ।आपके इरादे समझ चुकी मैं।

आप के पाँव के नीचे की ज़मीन अपनी जगह छोड़ देती है अब। क्या समझ चुकी हो ?

यही कि किसी भी काम को क़ायदे से करने में आपको कोई दिलचस्पी नहीं। आप इस हद तक लापरवाह है कि किसी भी सीधे सच्चे काम को बिगाड सकते हैं।

ठीक है ना। अब नही लाऊँगा कभी खरबूजे।

यही सुनना चाहती थी मैं। मैं जानती थी आप यहीं कहेंगे। दरअसल आप कुछ करना ही नहीं चाहते। आप जानबूझकर करते हैं ऐसा ताकि आपसे कभी कुछ करने को कहा ही नहीं जाए।

आप की सद्भावना ,बीबी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने की इच्छा ,एक बार फिर मुँह के बल धोबीपछाड़ खा जाती है। बीबी की तरफ़ ताकने की हिम्मत होती नही और ख़रबूज़ों की तरफ़ आप देखना नहीं चाहते। ऐसे में आप ज़मीन की तरफ़ देखते है पर वो भी फटने से मना कर देती है।

ऐसा हुआ तो होगा आपके साथ भी। अब तक नहीं हुआ है तो कल हो सकता है ऐसा। पर जब भी हो तो मन गिराने की ज़रूरत है नहीं।दरअसल आज तक कोई भी मर्द ऐसा खरबूज ख़रीदने में कामयाब हो नहीं सका है जो उसकी बीबी को पसंद आ जाए।

मुकेश नेमा