Flash Back: बच्चे की हत्या का वो असामान्य अपराध, जो भूल नहीं सका!

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Flash Back: बच्चे की हत्या का वो असामान्य अपराध, जो भूल नहीं सका!

भारतीय पुलिस सेवा में मुझे अपने 37 वर्ष के सेवाकाल में अनेकानेक प्रकार के अनुभव प्राप्त हुए। इन अनुभवों में अपराधों की विवेचना भी सम्मिलित है! परन्तु मैं अपने संस्मरणों में अपराधों के विवरण से बचता रहा हूँ। पुलिस सेवा में अपराधों का सफल अनुसंधान करना एक विशेष महत्व रखता है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को सीधे अपराध अनुसंधान के अवसर कम ही प्राप्त होते हैं क्योंकि उनका कार्य अनुसंधान करने वाले अधिकारियों का पर्यवेक्षण करना होता है। सेवाकाल के प्रारंभ में अवश्य सीधे अपराध के अनुसंधान करने के अवसर प्राप्त होते हैं। मुझे भी स्वयं चोरी, बलात्कार, हत्या, अपहरण, डकैती और जालसाजी आदि अपराधों के अन्वेषण करने के अवसर प्राप्त हुए है। ऐसे अनेक अपराधों में से एक ऐसा अपराध मेरे समक्ष आया जो मानवीय मूल्यों के ह्रास के निम्नतम स्तर पर होने के कारण आज भी मुझमें संवेदना उत्पन्न करता रहता है।

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वर्ष 1979 के बसंत में यह अपराध इंदौर के छत्रीपुरा थाने में घटित हुआ था। छत्रीपुरा थाने के पीछे स्थित छत्रीबाग क्षेत्र के एक मध्यम वर्गीय परिवार के अधेड़ दम्पति ने थाने पर आकर अपने 13 वर्षीय पुत्र के तीन दिन से ग़ायब हो जाने की सूचना दी। उनका नाम मैं उनके परिवार की निजता को ध्यान में रखकर यहाँ नहीं दे रहा हूँ। प्रारंभिक तौर पर थाने के अधिकारियों ने इसे एक साधारण घटना मानते हुए रिपोर्ट लिखकर इंदौर के सभी थानों और कंट्रोल रूम को सूचित कर दिया। इस आयु के लड़कों द्वारा किसी भी आवेश में आकर कर घर छोड़कर चले जाने की घटना कोई अनहोनी बात नहीं है। रिपोर्ट होने के दो दिन बाद थाने से कुछ ही दूर महू नाके चौराहे के पास स्थित शासकीय विद्यालय की बाउंड्रीवाल के बाहर सीवर लाइन में एक बच्चे की लाश प्राप्त हुई।

नगर निगम के कर्मचारियों ने उस स्थान के आस पास दुर्गंध फैलने पर सीवर लाइन पर लगे पत्थर को हटाकर देखा तब यह लाश प्राप्त हुई। लाश को निकालने के बाद यह पता करने में अधिक समय नहीं लगा कि यह लाश उसी बालक की है जिसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट थाना छत्रीपुरा पर की गई थी। घटना का अनुसंधान प्रारम्भ करने से पूर्व ही इस घटना को लेकर क्षेत्र में रोष की लहर फैल गई। एक मासूम बच्चे की जघन्य हत्या को लेकर उत्तेजित भीड़ थाने के समक्ष एकत्र हो गई। थाना छत्रीपुरा नगर पुलिस अधीक्षक या CSP श्री श्याम शुक्ला के क्षेत्राधिकार में आता था।

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इस अचानक उत्पन्न हुई कानून व्यवस्था की स्थिति के कारण मुझे भी कंट्रोल रूम द्वारा वहाँ पहुँचने का निर्देश दिया गया। उस समय इंदौर में तीन CSP हुआ करते थे। मैं CSP परदेशीपुरा के पद पर था। CSP शुक्ला जी के साथ मैं रात और दिन एक टीम की भावना से कार्य करता था। हम दोनों आवश्यक होने पर एक दूसरे की सहायता करते थे। छत्रीपुरा थाने पर पहुंचकर वहां पर अतिरिक्त पुलिस बल की सहायता से तथा लोगों को इस प्रकरण में त्वरित कार्रवाई करने का आश्वासन देकर उन्हें वापस किया।

सबसे पहले उस बालक के संबंध में उसके माता पिता से पूरी जानकारी प्राप्त की गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह ज्ञात हुआ कि उस बालक की हत्या गला घोटकर कर दी गई थी। उसके मोहल्ले के साथियों और स्कूल के सहपाठियों से बहुत बारीकी से पूछताछ की गई परंतु कोई विशेष सुराग हाथ नहीं लगा। अगले दिन थाने के समक्ष फिर एक बड़ी भीड़ एकत्र हुई जिसमें कुछ स्थानीय नेता ऐसे थे, जो कतिपय कारणों से पुलिस से पूर्व से ही नाराज़ थे और वे इस मौक़े का लाभ लेने से नहीं चूक रहे थे।

ऐसे अवसरों पर पुलिस को कानून व्यवस्था की स्थिति से निपटने और अपराध के अनुसंधान करने के दोनों मोर्चों पर कार्य करना पड़ता है। उस समय इंदौर के सबसे प्रभावशाली समाचार पत्र नईदुनिया और अन्य समाचार पत्रों में इस घटना को बहुत विस्तृत स्थान दिया गया। नई दुनिया के प्रमुख नगर संवाददाता गोपी गुप्ता थाने पर आये और उन्होंने पुलिस की जांच पड़ताल में आए तथ्यों के बारे में जानना चाहा। पुलिस के पास उन्हें बताने के लिए कुछ विशेष नहीं था।

गोपी गुप्ता इंदौर के बहुत प्रतिष्ठित नागरिक भी थे और अत्यंत महत्वपूर्ण प्रकरणों को सुलझाने में पुलिस की सहायता भी करने को तत्पर रहते थे। उस कालखंड में CCTV की आदि की कोई सुविधा नहीं थी। CSP श्री शुक्ला ने अनेक दल बनाकर उस क्षेत्र के आस पास के लोगों से पूछताछ करवाना शुरू कर दिया परंतु फिर भी कोई सुराग हाथ नहीं लगा। अगले दो दिनों तक इस प्रकरण में कोई सफलता नहीं मिली। इस अनुसंधान में थाने में उपस्थित रहकर कुछ सुराग पाने का प्रयास मैं भी कर रहा था।

इंदौर में उस समय पुलिस अधीक्षक श्री राम लाल यादव थे। वे बहुत सक्षम अधिकारी थे और उन्हें CSP श्री शुक्ला तथा अन्य पुलिस अधिकारियों पर इस बात का पूरा भरोसा था कि वे इस प्रकरण को शीघ्र ही सुलझाकर परिवार और शहर को राहत दे सकेंगे। उन्होंने इस प्रकरण की विवेचना में कोई सीधा हस्तक्षेप नहीं किया। CSP श्री शुक्ला की बहुत अधिक सेवा न होते हुए भी वे एक बहुत अनुभवी और कुशल अधिकारी थे। कोई सुराग न मिलने पर उन्होंने परिवार की ओर ध्यान देना प्रारंभ किया।

ज्ञात हुआ कि बालक के पिता अपने छोटे से व्यापार के संबंध में बीच-बीच में बाहर जाते रहते थे। इस बार जब वे लौटकर घर आए तो उन्हें पता चला कि उनका बालक दो दिनों से ग़ायब है। तब वे अपनी पत्नी के साथ थाने पर आये और गुमशुदगी की रिपोर्ट की। उनके इस कथन के बारे में पूरी जानकारी लेने पर सब कुछ सामान्य पाया गया। परन्तु यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि बालक के ग़ायब होने पर उसकी माता द्वारा तुरंत थाने या अन्य लोगों को क्यों नहीं सूचित किया गया। CSP श्री शुक्ला ने बालक की माता को थाने पर बुलाकर उससे सघन पूछताछ की और एक घंटे से पहले ही पूछताछ में माता ने स्वयं अपने बच्चे की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली। वास्तव में उसके एक प्रेमी के साथ अवैध संबंध थे और अकस्मात् उस बालक ने दिन में अपनी माता को घर पर आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था।

उसी रात को माता ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने बेटे की गले में रस्सी डालकर हत्या कर दी। उसका प्रेमी शाम को अपना स्कूटर लेकर लाश को उचित स्थान पर फेंकने का स्थान देख आया था। उसने महू नाके के पास स्थित शासकीय विद्यालय की बाउंड्रीवाल के बाहर सीवर नाले के ऊपर लगे पत्थरों को हाथ से हटाने का प्रयास किया तो वे हट गए। उसने पत्थर को पुनः नाले के ऊपर रख दिया। रात को वह प्रेमी बालक के घर पर गया। प्रेमी तथा माता ने बच्चे के मृत शरीर को स्कूटर के बीच में ले लिया और गहन अँधेरे में निकल पड़े। महू नाका उनके घर से अधिक दूर नहीं था। वहाँ पहुँच कर पत्थर हटाकर लाश को नाले में डाल दिया और पत्थर फिर से लगा दिया।

CSP श्री शुक्ला उस महिला की स्वीकारोक्ति सुनकर अवाक रह गए और उन्होंने तुरंत मुझे थाने पर बुलाया और मुझे फिर महिला से पूछताछ करने के लिए कहा। माता ने घटना मुझे भी उसी प्रकार बता दी। साक्ष्य के तौर पर उसकी माता को उसके घर पर ले जाकर वह रस्सी बरामद की जिससे बालक का गला घोटा गया था। माता का बयान इतना असामान्य था कि उसको सबको बताने में भय का अनुभव हो रहा था कि यदि कहीं यह ग़लत सिद्ध हुआ तो पुलिस एक गहरी कठिनाई में फंस जाएगी।

गोपी गुप्ता को भी थाने पर बुलाकर उस महिला से बात करवाई और उनके संतुष्ट होने पर थाने पर छोटी सी पत्रकार वार्ता के माध्यम से इस घटना की पूरी जानकारी प्रेस को दी गई। बाद में बरामद की गई रस्सी और गले पर लगे निशान के डॉक्टर से जाँच करवाई गई। इस प्रकरण में उस माता और उसके प्रेमी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। एक माँ की प्रकृतिजन्य ममता की भावना के विपरीत एक सोची समझी हिंसक रणनीति के तहत हत्या करना मेरे लिए एक असाधारण और हृदय विदारक घटना थी। आज भी उसका स्मरण कर एक विचित्र भावना उत्पन्न हो जाती है।