11 नवंबर,1999 को ग्वालियर के रूप सिंह स्टेडियम में आयोजित वनडे मैच में भारत की न्यूज़ीलैंड पर विजय और सचिन तेंदुलकर के शतक के पश्चात स्टेडियम से बाहर निकालते समय ADG इंटेलिजेंस श्री ए एन सिंह ने मुझसे पूछा कि रघुवर गड़रिया को आप कब मार रहे हैं? उन्होंने कहा कि मक्खन रावत को आपने मारा है लेकिन सरकार रघुवर गड़रिया गैंग का सफ़ाया चाहती है।(मक्खन रावत हज़रत रावत गैंग का शार्प शूटर था और उसे मैंने स्वयं भितरवार के समीप सिन्धु नदी के किनारे 25 अगस्त, 1999 को एनकाउंटर में मार गिराया था)। मैंने विनोद पूर्वक ADG श्री ए एन सिंह जी को उत्तर दिया कि आप कहें तो आज रात को ही मार देता हूँ।
रघुवर गड़रिया ग्वालियर रेंज में आतंक का पर्याय बन चुका था। ग्वालियर ज़िले के दूरस्थ बेलगढ़ा थाने के ग्राम हरसी का निवासी रघुवर एक बहुत ही ख़ूँख़ार डाकू गैंग का सरगना था। उसने उस समय तक 43 हत्या, डकैती और अपहरण के जघन्य अपराध किये थे जिसमें कुछ अति क्रूर थे। ग्वालियर चंबल क्षेत्र में पहले आकार में बहुत बड़े बड़े गैंग होते थे।उनकी समाप्ति के बाद लगभग दो दशक तक छुट पुट घटनाओं को छोड़कर इस क्षेत्र में शांति स्थापित थी। रघुवर गड़रिया ने अपने पारिवारिक लोगों को लेकर एक छोटा लेकिन शक्तिशाली गैंग बनाया।
इस गैंग का ग्वालियर, शिवपुरी और श्योपुर के जंगलों में बहुत तेज़ गति से विचरण होता था तथा यह आसानी से कहीं भी जंगलों में छिप जाता था।विशाल जंगल क्षेत्र से लगे हुए गांवों में अपने कुछ सजातीय लोगों की सहायता से रघुवर पोषण और सूचनाएँ प्राप्त करता था और अपहरण कर फिरौती प्राप्त करता था। सरकार ने इसके ऊपर एक लाख रुपये का पुरस्कार घोषित किया था तथा ADG इंटैलिजेंस श्री एन सिंह ने इंटेलिजेंस की ओर से इस पर एक लाख रुपये का अतिरिक्त पुरस्कार घोषित किया था।
1 अप्रैल, 1999 को मेरी IG CID से IG ग्वालियर रेंज के पद पर पदस्थापना तत्कालीन DGP श्री एस सी त्रिपाठी ने करवाई थी।पूर्व में मैं ग्वालियर का SP रह चुका था। श्री त्रिपाठी ने मेरी क्षमताओं पर भरोसा करते हुए पदस्थापना के पूर्व मुझे रघुबर गड़रिया गैंग का सफ़ाया करने का दायित्व दिया और कहा था कि मुझे विश्वास है कि आप यह कर सकते हैं। यह कठिन कार्य कुछ ही समय में करने के लिए योजना और पूर्ण समर्पण की आवश्यकता थी।
मैंने चार्ज लेते ही अनुभवी निरीक्षक CID श्री अशोक भदौरिया के नेतृत्व में एक अत्यधिक समर्पित पुलिस कर्मियों का छोटा दल गठित किया तथा इस दल को प्रतिदिन प्रेरित करता रहा। यह दल जंगलों में घूम कर सूचनाएँ एकत्र करता था। क्षेत्र में इनके कुछ संपर्कों से डाकू गैंग का एक सदस्य हमारा सहयोगी बन गया। वह शहर में दवा आदि लाने के बहाने से आकर हमें लगातार जानकारी देता रहा था। इस कार्य में बहुत धैर्य की आवश्यकता होती है।उस सदस्य से सूचना प्राप्त हुई कि रघुवर ने गैंग के एक भाग को अपने चचेरे भाई दयाराम गड़रिया के नेतृत्व में दूसरे क्षेत्रों में घूमने का आदेश दिया है जिससे पूरे गैंग पर एक साथ कार्रवाई न हो सके।
एक दिन उसने बहुप्रतीक्षित समाचार दिया कि 11 और 12 नवम्बर की मध्य रात्रि में गैंग थाना घाटी गाँव के ग्राम घेंगडी में आने वाला है। भारत न्यूज़ीलैंड क्रिकेट मैच के समय स्टेडियम के एक कोने में मैंने और SP प्रदीप रूनवाल ने योजना बनाई और एडिशनल SP आर पी सिंह तथा निरीक्षक अशोक भदौरिया को रात में दस्यु विरोधी विशेष दल की दो पार्टियाँ बनाकर घात लगाने के निर्देश दिये। हमारी सूचना सही और सटीक स्थान की थी। सुबह प्रातः हल्के प्रकाश में जब गैंग दोनों पार्टियों के बीच में आ गया तो ललकारने के बाद गोलियां चलीं और कुछ ही क्षणों में दस्यु सम्राट रघुवर गड़रिया अपने साथियों विजय पहलवान, बद्री प्रसाद और सियाराम और एक अज्ञात के साथ ढेर हो गया।
मैं और पुलिस अधीक्षक श्री प्रदीप रूनवाल अधीरता से वायरलेस की प्रतीक्षा कर रहे थे।वायरलेस पर सूचना मिलते ही हम लोग घटना स्थल पर पहुँचे।घटना स्थल पर अपने जवानों को गले लगाकर मैंने उनका धन्यवाद ज्ञापित किया। कुछ ही देर में सूचना बिजली की तरह फैल गई और अनेक पत्रकार वीडियो कैमरे के साथ घटनास्थल पर पहुँच गए। मैंने वायरलेस से ADG श्री सिंह साहब को सूचना भिजवाई तो पता चला कि वे ग्वालियर पुलिस मेस से हवाई अड्डे के लिए रवाना हो गए हैं।
उन्हें जब रास्ते में सूचना मिली तो वे भोपाल का कार्यक्रम स्थगित कर सीधे घटनास्थल पर आए और अत्यंत हर्षित होकर उन्होंने पुलिस पार्टी का उत्साहवर्धन किया। मैंने इस अवसर पर पुनः विनोद पूर्वक उनसे कहा कि आप ही ने कहा था इसी लिए रात में ही काम कर दिया। क्या संयोग था ! अगले ही दिन स्वयं पुलिस महानिदेशक DGP श्री ए सी त्रिपाठी ग्वालियर आए और इन्दरगंज के मिनी कंट्रोल रूम में पुलिस पार्टी का उत्साहवर्धन किया और वहीं पर प्रेसवार्ता की। पुलिस सेवा में मेरे लिए यह गर्व का क्षण था।
अब मेरा पूरा ध्यान दयाराम पार्ट गैंग के ऊपर पूरी शक्ति के साथ लग गया। ग्वालियर के SP श्री प्रदीप रूनवाल और शिवपुरी के SP श्री आर एस मीणा ने जंगलों में पुलिस की सघन कार्रवाई निरंतर जारी रखी। इस गैंग से पहला एनकाउंटर ग्वालियर ज़िले के आरोन थाने के जंगलों में हुआ जिसमें सारा सामान छोड़कर गैंग भाग निकलने में सफल हो गया। अंततोगत्वा 15 अप्रैल, 2000 को ग्वालियर ज़िले के थाना करहिया के ग्राम रिठोदन के जंगल में गैंग को पुलिस ने घेर लिया और दयाराम गड़रिया अपने साथियों राम बाबू, गोपाल और प्रताप के साथ हथियार सहित गिरफ़्तार कर लिया गया। इस गैंग को इन्दरगंज मिनी कंट्रोल रूम में मैंने पत्रकारों के समक्ष प्रस्तुत किया।अब पुलिस के सशक्त सूचना तंत्र के कारण मेरी रेंज के ज़िलों में डकैती या अपहरण का अपराध नहीं हो सका।मैंने अपनी पूरी शक्ति जनता की विविध समस्याओं को दूर करने में लगा दी।
दयाराम गैंग को डबरा उप जेल में रखा गया था। वहाँ से उसे लगातार ग्वालियर सेशन कोर्ट पेशी पर लाया जाता था। संसाधनों की कमी के कारण इन्हें पुलिस स्कॉर्ट में सामान्य बसों से 45 किमी लाया जाता था। सामान्यतया दुर्दांत डाकुओं के विरुद्ध न्यायालय में कोई साक्ष्य नहीं देता है परन्तु पुलिस के संरक्षण के कारण साक्षियों ने खुलकर कथन दिये। इस गैंग के विरुद्ध न्यायालय में पुलिस ने काफ़ी अच्छा अभियोजन किया और इन्हें तीन बार आजीवन कारावास का दण्ड दिया गया। सज़ाओं से घबराकर दयाराम ने पेशी के समय भागने की योजना बनायी।
मार्च 2001 में जिस बस से इन्हें पेशी पर लाया जा रहा था उसमें गैंग के अनेक समर्थक बैठ गए और मार्ग में जौरासी घाटी के जंगलों के बीच इनके समर्थकों ने मिर्ची उछाल कर बस में हंगामा किया जिससे इन्हें भागने का अवसर मिल गया। यह बहुत बड़ी चूक सिद्ध हुई। दयाराम ने अपने गैंग की शक्ति बढ़ाकर क्षेत्र में लोगों को आतंकित करना प्रारंभ कर दिया और पाँच महीनों बाद अगस्त 2001 में इस गैंग ने शिवपुरी ज़िले के सुभाषपुरा थाने के ग्राम करसेना में चार रावत समुदाय के लोगों को गोली से उड़ा दिया।कुछ राजनैतिक लोगों ने निजी कारणों से पुलिस अधिकारियों के स्थानांतरण की माँग की। शिवपुरी और ग्वालियर दोनों के SP का स्थानांतरण कर दिया गया।
उनके स्थानांतरण के तुरंत बाद मैं भोपाल में DGP श्री त्रिपाठी से मिला और उनसे मैंने कहा कि मेरा स्थानांतरण क्यों नहीं किया गया है जबकि सारी कार्रवाई मेरे निर्देशन में होती थी। फिर मेरा स्थानांतरण कर दिया गया। 31 अगस्त, 2001 को लगभग ढाई वर्ष के कार्यकाल के बाद मैंने अपना IG ग्वालियर रेंज का पदभार श्री एस एस शुक्ला को सौंप दिया।
मेरे ग्वालियर से आने के तीन वर्ष बाद सितम्बर 2004 में इस गैंग ने ग्वालियर के भंवरपुरा गाँव में 13 गुर्जर समुदाय के लोगों की जघन्य हत्या कर दी। तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री बाबूलाल ग़ौर को घटनास्थल पर जाना पड़ा। उस समय मैं पदोन्नति के बाद पुलिस मुख्यालय में ADG योजना एवं प्रबंध के पद पर था। इस घटना के बाद सरकार ने मुझे अपने भोपाल के कार्यभार के साथ-साथ पूरे ग्वालियर चंबल संभाग के दस्यु विरोधी अभियान का प्रभारी बना दिया। मैं परिवहन आयुक्त बनने तक प्रभारी बना रहा। 5 अगस्त, 2006 को दयाराम गड़रिया मझेरा के पास पुलिस मुठभेड़ में मारा गया।