जब नॉर्थ ब्लॉक में तत्कालीन गृह मंत्री श्री पी. चिदंबरम ने मुझसे कहा कि वे मुझे स्पेशल DG CRPF बनाकर जम्मू कश्मीर भेज रहे हैं तब हम दोनों को ही आने वाली विभीषिका का कोई अनुमान नहीं था। अक्टूबर 2009 में जब मैं जम्मू पहुँचा तब पूरे राज्य में CRPF की 70 बटालियनों की भारी भरकम तैनाती थी।CRPF का मुख्य दायित्व शहरों, क़स्बों और सड़कों की सुरक्षा करना था।पूरे कश्मीर में CRPF क़ानून व्यवस्था की स्थिति में तथा आतंकवाद के विरुद्ध स्थानीय कश्मीर पुलिस की लौह भुजा के समान थी। आर्मी सीमा पर तथा राष्ट्रीय राइफल्स के रूप में जम्मू कश्मीर के कठिन निर्जन इलाकों में तैनात थी।सेना का श्रीनगर में 15 कोर और नगरोटा (जम्मू ) में 16 कोर का मुख्यालय था।पूरे नॉर्दन कमांड के कमांडर ले. जनरल बी एस जसवाल से मैं हेडक्वार्टर उधमपुर में जाकर मिला।
2009 की गर्मियों में शोपियां की हिंसा के बाद जाड़े का प्रारंभ अपेक्षाकृत शांति के साथ हुआ। 31 दिसंबर को सोपोर के पास जनवारा में CRPF की 177 Bn B कम्पनी के चार जवान मारे गए तथा इस घटना के बाद भ्रमण के समय मैं सोपोर में एम्बुश में फँस गया था। 7 जनवरी, 2010 को लाल चौक में दो आतंकवादी एनकाउंटर में मारे गए।इन और कुछ आतंकवादियों के मारे जाने की घटनाओं को छोड़कर कश्मीर घाटी में शांति बनी रही। 11 जून को गनी स्टेडियम, श्रीनगर में कुपवाड़ा ज़िले के माछिल में 30 अप्रैल के सेना के तथाकथित फ़र्ज़ी एनकाउंटर के विरोध में कुछ नवयुवक पथराव कर रहे थे।पत्थरबाज़ तुफैल अहमद मट्टू नामक लड़के की पुलिस के अश्रु गैस का गोला लग जाने से मृत्यु हो गई।पाकिस्तान के इशारे पर अलगाववादी हुर्रियत कॉंफ़्रेंस पूरे कश्मीर घाटी में उग्र हिंसा करने के लिए अवसर की प्रतीक्षा में थी। उनके उकसाने पर 20 जून को नूरबाग़, श्रीनगर स्थित CRPF की 161 Bn E कंपनी के कैंप पर भीड़ ने ज़बरदस्त पथराव करते हुए संतरी की राइफ़ल छीनने का प्रयास किया।
इसके जवाब में फ़ोर्स की गोली से दो लोगों की मृत्यु हो गई। इस घटना पर उसी दिन शाम को पाँच बजे मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अधिकारियों की एक बैठक बुलायी जिसमें मैं जम्मू से श्रीनगर पहुंचकर सम्मिलित हुआ। विधि मंत्री तथा पुराने श्रीनगर से विधायक अली मोहम्मद सागर के तेवर बहुत आक्रामक थे और सारा क्रोध वे मेरे ऊपर ही निकाल रहे थे। सौभाग्य से घटना की वीडियो क्लिपिंग मेरे IG अस्थाना ने मुझे दीं जो मैंने वहाँ स्क्रीन पर दिखाई और मैंने प्रश्न किया कि इस स्थिति में क्या किया जा सकता है। फिर भी मुख्यमंत्री ने निर्देश दिये कि भविष्य में फ़ायरिंग न की जाए।मैंने नूर बाग़ कैंप में जाकर कार्रवाई करने वाले जवानों को पुरस्कृत किया।
अगले दिन मैंने जम्मू कश्मीर के DG तथा मेरे बैचमेट श्री कुलदीप खोडा तथा ADG इंटेलिजेंस श्री राजेंद्र कुमार के साथ समस्या पर गंभीर विचार किया।25 जून को मैं गवर्नर श्री एन एन वोरा और मुख्यमंत्री श्री उमर अब्दुल्ला से अलग-अलग मिला और उन्हें क़ानून व्यवस्था की विपरीत परिस्थितियों में CRPF की समस्याओं से अवगत कराया। संयोगवश उसी दिन सोपोर क़स्बे में आर्मी द्वारा एनकाउंटर करते समय भीड़ द्वारा भारी हिंसा की गई जिसे नियंत्रित करने के लिए CRPF की 179 Bn को गोली चालनी पड़ी और उसमें दो लोग मारे गए।
27 जून को सोपोर में ही 177 Bn की एक कंपनी पर हिंसक भीड़ के आक्रमण को रोकने के लिए गोली चालन में 1 व्यक्ति मारा गया और फिर अगले ही दिन इसी क़स्बे में 92 बटालियन की कंपनी के गोली चलाने से एक और व्यक्ति की मृत्यु हुई।इसी दिन बारामूला में स्थानीय पुलिस की फ़ायरिंग में एक व्यक्ति मारा गया है।29 जून को दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग में तीन लोग गोली से मारे गए। अलगाववादी नवजवानों को उग्र हिंसा के लिए भड़का रहे थे और हमारी कार्रवाई से और हिंसा भड़कती थी तथा यह एक दुष्चक्र बन गया। अली मोहम्मद सागर ने टेलीविज़न पर CRPF के तथाकथित ग़ैर ज़िम्मेदार और अनियंत्रित नेतृत्व पर जमकर हमला किया जो सीधे-सीधे मेरी कटु आलोचना थी।
स्थानीय अंग्रेज़ी और उर्दू के समाचार पत्र लोगों को भड़काने का पूरा काम करते थे।मैं अंग्रेज़ी समाचार पत्रों के अतिरिक्त उर्दू के अख़बारों की सुर्ख़ियाँ पढ़ा करता था।
अधिकांश उग्र हिंसक भीड़ का निशाना CRPF की ड्यूटी पर तैनात फ़ोर्स या उनके रहने के कैंप हुआ करते थे। श्रीनगर में बाहर से सुबह चोरी छुपे ट्रैक्टरों में पत्थर आते थे।पाकिस्तान समर्थक एजेंट कुछ लोगों को पैसा देकर पत्थर फिकवाना प्रारंभ करवाते थे और उन्हें देखकर और भीड़ एकत्रित होकर हिंसक हो जाती थी। पथराव के बीच में हैंड ग्रिनेड भी फेंकते थे।CRPF के द्वारा पहले लाठीचार्ज, अश्रुगैस, रबर बुलेट और अंत में फ़ायरिंग की जाती थी। मैं प्रतिदिन कश्मीर पुलिस के कंट्रोल रूम जाकर बैठने लगा जहाँ से DG श्री खोडा के साथ संयुक्त निर्देश दिए जाते थे। 6 जुलाई को कंट्रोल रूम जाते समय बरजु़ला क्षेत्र में मैं पत्थर फेंकती और डंडे लिए हुए भीड़ से घिर गया लेकिन सौभाग्यवश गश्त करने निकली हुई CRPF ने मुझे बचा लिया। 7 जुलाई को भारत के गृह सचिव श्री जी के पिल्लई ने श्रीनगर के नेहरू गैस्टहाउस में मीटिंग लेकर हम लोगों का मनोबल बढ़ाया और क़ानून के अनुसार कार्रवाई करने का समर्थन किया।
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30 जुलाई खूनी शुक्रवार सिद्ध हुआ जब अनेक स्थानों पर एक साथ हिंसा हुई। अलगाववादियों के सिरमौर सैयद अली शाह गिलानी की हुर्रियत कांफ़्रेंस हर सप्ताह हड़ताल और विरोध का साप्ताहिक कैलेंडर जारी करती थी। इसके प्रत्युत्तर में प्रशासन की ओर से लगातार कर्फ्यू लगाया जाता था।मसर्रत आलम भूमिगत रहते हुए हिंसक कार्यक्रम आयोजित करता रहता था।
कश्मीर में स्थित आर्मी की पंद्रहवीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल नरेश मरवाह से मेरी अच्छी मित्रता हो गई और वे सहायता के लिए तत्पर थे। शहर में कर्फ्यू पालन में सहयोग करने के लिए आर्मी ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों में लोगों को नहीं आने देती थी।
जम्मू कश्मीर में एक यूनीफाइड कमांड बनी हुई है। इसके अध्यक्ष मुख्यमंत्री होते हैं तथा इसमें राज्य के चीफ़ सेक्रेटरी, DGP, ADG इंटेलिजेंस के साथ आर्मी, CRPF, BSF, RAW, तथा इंटेलिजेंस ब्यूरो के वरिष्ठतम अधिकारी होते हैं। सामान्यतया इसकी बैठक वर्ष में एक दो बार होती है परंतु अगस्त के पहले पखवाड़े में स्थिति इतनी बिगड़ गई कि इसकी प्रतिदिन बैठक होना शुरू हो गई। इनमें दिन भर की गतिविधियों के साथ अगले दिन की योजना पर विचार होता था। हर बैठक में CRPF को गोली नहीं चलाने के निर्देश दिए जाते थे।
राजमार्गों पर जगह जगह अवरोध खड़े कर दिए जाने के कारण मैं DGP श्री खोडा के साथ हेलीकॉप्टर से घाटी के दूसरे क्षेत्रों में जाकर CRPF का मनोबल बढ़ता रहता था और उन्हें उचित कार्रवाई के निर्देश देता था।इन संयुक्त दौरों का बड़ा प्रभावकारी परिणाम रहा। मैंने डलगेट स्थित DIG CRPF के कार्यालय में कश्मीर के सभी कमांडेंट्स तथा वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक ली और उन्हें बताया कि गत वर्ष जारी किये गए उस परिपत्र पर ध्यान न दें जिसमें किसी भी स्थिति में गोली चालाना प्रतिबंधित कर दिया गया था। मैंने उन्हें कहा कि क़ानून में दिए गए सभी अधिकारों का प्रयोग देश के हित में किया जाना बहुत आवश्यक है। मेरी इस मीटिंग से सभी अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश मिल गये ।
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CRPF के अनेक घायल जवानों के लिए आर्मी अस्पताल के अतिरिक्त मैंने अपने टैक हेडक्वार्टर में उपचार हेतु एक अस्थाई अस्पताल खुलवा दिया। बहुत तैयारी और परिश्रम से अमरनाथ यात्रा सफलतापूर्वक सम्पन्न करवाई जो एक बड़ी उपलब्धि थी।सारा दिन विभिन्न मीटिंग, भ्रमण और आदेश निकालने में ही चला जाता था। देर रात को मैं दिन भर की रिपोर्ट और आगामी योजना बनाने का काम करता था।सुबह जल्दी ब्रिस्क वॉक के बाद योग करते हुए मैं प्रतिदिन अपने बैचमेट स्पेशल सेक्रेटरी, भारत सरकार श्री यू के बंसल को पूरे कश्मीर की स्थिति की जानकारी देता था और वे गृह मंत्री श्री चिदंबरम को स्थिति से अवगत कराते थे।
सितंबर में कश्मीर की अर्थव्यवस्था का आधार सेब का सीज़न आ गया परन्तु पूरी घाटी में कर्फ्यू लगे होने के कारण मैदानी इलाकों में सेब ट्रकों से नहीं जा पा रहा था। लगातार बाज़ार बंद रहने से व्यापार और पर्यटन ठप्प हो गया था।लगभग 120 लोग गोली चालन में मारे गए। लोगों का उत्साह ढीला पड़ने लगा।उचित समय देखकर 20 सितम्बर को गृह मंत्री श्री पी चिदंबरम एक सर्वदलीय सांसदों का डेलीगेशन लेकर आए जिसमें अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, सीताराम येचुरी, रामबिलास पासवान और असदुद्दीन ओवैसी आदि सम्मिलित थे।ये सभी श्रीनगर के प्रसिद्ध ग्रैंड होटल में रुके थे जहाँ से पहाड़ और झील दोनों का सुंदर दृश्य दिखाई देता है।इन लोगों ने ग्रैंड होटल में नाश्ते के समय मुझसे बातचीत की। सीताराम येचुरी एवं श्री पासवान गिलानी से भी मिलने गए। पूरी घाटी में शांति लौट आई। 18 अक्टूबर को अंडरग्राउंड मसर्रत आलम भी गिरफ़्तार हो गया। 20 अक्टूबर, 2010 को मैं जम्मू कश्मीर को विदा कह कर DG NCRB का पद ग्रहण करने के लिए नई दिल्ली रवाना हो गया।